संदर्भ ग्रंथ सूचि

शोध कार्य में ग्रंथ सूचि का महत्व निर्विवाद है। इसे संदर्भ ग्रंथ सूचि भी कहा जाताहै। ग्रंथ सूचि से तात्पर्य अंग्रेजी के शब्द 'बिब्लियोग्राफी' से बना है, जो बहुत ही व्यापक है। इसकी किसी एक निश्चित परिभाषा के संबंध में विद्वानों में मतभेद है। साहित्य एवं भाषा संबंधी शोध तथ्यों पर आधारित होता है। तथ्यों… Continue reading संदर्भ ग्रंथ सूचि

आत्मकथा

परिभाषा- 'आत्मकथा' किसी व्यक्ति की स्वलिखित जीवन की गाथा है। जब कोई रचनाकार अपनी स्वयं की कथा अपनी शैली में लिखता है, तो उसे 'आत्मकथा' कहते है। इसमें लेखक स्वयं की कथा को बड़ी आत्मीयता के साथ पाठक के सामने प्रस्तुत करता है। लेखक अपने जीवन की विभिन्न परिस्थितियों, पारिवारिक घटनाओं, आर्थिक तथा राजनीतिक पृष्ठभूमि… Continue reading आत्मकथा

रिपोर्ताज

'रिपोर्ताज' गद्य-लेखन की एक विधा है। हिंदी में रिपोर्ताज को 'सूचनिका' और 'रूपनिका' भी कहा जाता है। परन्तु इसका प्रचलित शब्द 'रिपोर्ताज' है। रिपोर्ताज 'फ़्रांसिसी' भाषा का शब्द है। फ़्रांस में यह शब्द अंग्रेजी के 'रिपोर्ट' शब्द के आधार पर द्वितीय विश्व युद्ध के समय बनाया गया। रिपोर्ताज की परिभाषाएँ: हिंदी साहित्य कोश के अनुसार-… Continue reading रिपोर्ताज

हालावादी काव्य

छायावाद के समानांतर चलने वाली काव्याधाराएँ हैं- 1. व्यक्ति चेतना प्रधान काव्यधारा/ हालावाद 2. राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा 3. समष्टि प्रधान/सामाजिक काव्यधारा हालावाद काव्यधारा- (1933-1936 ई.)       परिभाषा- छायावाद के समानांतर जिन कवियों ने निजी अनिभूति के आधार पर प्रेम, मस्ती एवं अहं से संबंधित काव्य लिखा उनके द्वारा रचित काव्य व्यक्ति चेतना प्रधान या हालावाद… Continue reading हालावादी काव्य

अष्टछाप

अष्टछाप की स्थापना- विं सं 1622 (1565 ई.) में हुआ था।    'अष्टछाप' महाप्रभु श्री वाल्भाचार्य एवं उनके पुत्र विट्ठलनाथ जी के द्वारा स्थापित 8 भक्तिकालीन कवियों का एक समूह था, जिन्होंने अपनी विभिन्न पद एवं कीर्तनों के माध्यम से भगवान् श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं का गुणगान किया और वे अष्टछाप कहलायें।   'कृष्णभक्ति शाखा'… Continue reading अष्टछाप

नाथ साहित्य

परिभाषा- आदिकाल में भगवान 'शिव' के उपासक भक्त कवियों के द्वारा जनभाषा में जिस साहित्य की रचना की गई या हुई उसे नाथ साहित्य के नाम से जाना जाता है। नाथ संप्रदाय को सिद्धों की परंपरा का विकसित रूप माना जाता है। नाथ साहित्य के प्रवर्तक गोरखनाथ को माना जाता है। इनकी साधना सिद्ध साधना… Continue reading नाथ साहित्य

सिद्ध साहित्य

आदिकालीन साहित्य: आदिकालीन साहित्य केकाव्य की निम्नलिखित धाराएँ हैं - 1. सिद्ध साहित्य 2. नाथ साहित्य 3. रास साहित्य 4. रासों साहित्य 5. लौकिक साहित्य 6. गद्य साहित्य 7. अपभ्रंश साहित्य  सिद्ध साहित्य- परिभाषा- आदिकाल में बौद्ध धर्म की महायान शाखा के वज्रयानी कवियों द्वारा अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए जो साहित्य जनभाषा… Continue reading सिद्ध साहित्य

दलित साहित्य : ‘मुर्दहिया’-तुलसीराम (आत्मकथा) एक समीक्षा

'दलित' वर्ग के लिए भारतीय समाज में अनेक शब्दों का प्रयोग किया जाता रहा है। जैसे- शूद्र, अछूत, बहिष्कृत, अंत्यज, पददलित, दास, दस्यु, अस्पृश्य, हरिजन आदि। दलित शब्द का शब्दिक अर्थ है- मसला हुआ, रौंदा या कुचला हुआ, नष्ट किया हुआ, दरिद्र और पीड़ित, दलित वर्ग का व्यक्ति।       'संक्षिप्त हिंदी सागर' में रामचंद्र वर्मा… Continue reading दलित साहित्य : ‘मुर्दहिया’-तुलसीराम (आत्मकथा) एक समीक्षा

हिंदी गद्य के उद्भव और विकास

हिंदी साहित्य का आधुनिक काल भारत के इतिहास के बदलते हुए स्वरूप से प्रभावित था। स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता की भावना का प्रभाव साहित्य पर भी पड़ा। भारत में औद्योगीकरण का प्रारंभ होने लगा था। आवागमन के साधनों का विकास हुआ। अंग्रेज़ी और पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव बढ़ा और जीवन में बदलाव आने लगा। भावना… Continue reading हिंदी गद्य के उद्भव और विकास

सगुण भक्ति की विशेषताएँ तथा सूरदास और तुलसीदास के भक्ति साहित्य

ईश्वर की 'सगुण' और 'साकार' रूप में विश्वास करने वाले भक्त कवियों को 'सगुण' भक्ति का नाम दिया गया है। वैष्णव भक्ति के उद्भव के साथ ही सगुण भक्तिधारा विकसित हो गई थी। भक्ति प्राचीनकालीन भारतीय वैदिक भक्ति का हि विकसित रूप है। 'सगुण' का अर्थ होता है परमसत्ता के सभी गुणों से संपन्न। अवतार… Continue reading सगुण भक्ति की विशेषताएँ तथा सूरदास और तुलसीदास के भक्ति साहित्य