हिंदी की उत्पत्ति: हिंदी भाषा के उद्भव और विकास की जब भी बात की जाती है तब हमें आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाने वाले महान साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र की वे पंक्तियाँ याद आने लगती हैं - "निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति के मूल । बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत… Continue reading हिंदी : उद्भव एवं विकास
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एक प्रमुख हिंदी लेखक के साथ साक्षात्कार
बात सन् 2018 की है 'दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा' हैदराबाद से मैं लघु शोध के लिए प्रवेश-परीक्षा पास कर चुकी थी। अब शोध विषय के चयन करने की बारी थी। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि किस विषय का चुनाव करूँ। मैं परेशान और चिंतित थी। मैंने अपने गाइड से सम्पर्क किया… Continue reading एक प्रमुख हिंदी लेखक के साथ साक्षात्कार
भारतीय संस्कृति और राष्ट्र
भूमिका- भारतीय संस्कृति प्राचीन एवं गौरवपूर्ण है। विश्व संस्कृति के इतिहास में इसका विशिष्ठ स्थान है। इस संस्कृति को समृद्ध और समुन्नत बनाने में हमारे ऋषियों, मुनियों, साधू-संतों, दार्शनिकों, विचारकों, आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। गुरु वेदव्यास, बाल्मीकि, कालिदास, स्वयंभू, पुष्पदंत, संत तुलसीदास, संत कबीर दास, गरुनानक देव, गुरुगोविंद सिंह, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, जयशंकर… Continue reading भारतीय संस्कृति और राष्ट्र
समकालीन हिंदी उपन्यासों में अभिव्यक्त आदिवासी जीवन
भूमिका- भारत विभिन्नताओं में एकता का देश है। सदियों से भारतीय समाज में अनेक वर्ण, जाति, धर्म तथा संप्रदाय के लोग एक साथ मिलकर रहते आये हैं। आदिवासी समुदाय भी अनेक क्रिया-कलापों के साथ संगठित रूप से रहते हैं। आज भी बहुत से आदिवासी जंगलों पहाड़ों और दुर्गम प्रदेशों में रहकर अपना जीवन यापन करते… Continue reading समकालीन हिंदी उपन्यासों में अभिव्यक्त आदिवासी जीवन
डॉ राम मनोहर लोहिया
लोहिया दर्शन डॉ राम मनोहर लोहिया विश्व की उन विभूतियों में से थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानव सेवा में लगा दिया। वे महान राजनीतिक योद्धा, देशभक्त, स्वतंत्र चिंतक तथा निडर नेता थे। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के साथ-साथ नेपाल और गोवा के स्वतंत्रता संग्राम में भी रूचि दिखाई। जीवन परिचय- जन्म- 23 मार्च… Continue reading डॉ राम मनोहर लोहिया
डॉ. भीमराव अंबेडकर
अंबेडकर का प्रारंभिक जीवन - जन्म - 14 अप्रैल, 1891 ई. के इंदौर के पास मऊ छावनी में हुआ था। अंबेडकर अपने माता-पिता की 14 वीं संतान थे। इनका परिवार कबीर पंथ को मनानेवाला मराठी मूल का था। निधन - 6 दिसंबर, 1956 ई. को हुआ था। पिता का नाम - रामजी… Continue reading डॉ. भीमराव अंबेडकर
मोहनदास करमचंद गाँधी
गांधीदर्शन गाँधी दर्शन न केवल राजिनीति, नैतिक और धार्मिक है, बल्कि यह पारंपरिक आधुनिक तथा सरल एवं जटिल भी है। यह दर्शन कई पश्चिमी प्रभावों का प्रतिक है। जिसको गाँधी जी ने उजागर किया था। यह दर्शन प्राचीन भारतीय संस्कृति में निहित है तथा सार्वभौमिक नैतिक और धार्मिक सिद्धांतों का पालन करता है। मोहनदास करमचंद… Continue reading मोहनदास करमचंद गाँधी
हिंदी : उद्भव एवं विकास
हिंदी की उत्पत्ति: हिंदी भाषा के उद्भव और विकास की जब भी बात की जाती है तब हमें आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाने वाले महान साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र की वे पंक्तियाँ याद आने लगती हैं - "निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति के मूल । बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत… Continue reading हिंदी : उद्भव एवं विकास
भारतीय भाषाओँ के राष्ट्रीय कवियों
में राष्ट्रीय एकता की भावना 'राष्ट्रीय एकता' भारत की 'आत्मा' है और 'राष्ट्रीयता' भारतियों की 'भावना'। राष्ट्रीयता शब्द अंग्रेजी भाषा के 'नैशनलिटी' (Nationality) शब्द का हिंदी रूपांतर है। जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के 'नेशियो' (Natio) शब्द से हुई है। इस शब्द से 'जन्म' और 'जाति' का बोध होता है। राष्ट्रीयता सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक भावना… Continue reading भारतीय भाषाओँ के राष्ट्रीय कवियों
हिन्दी गद्य विधा का वैश्विक स्तर पर महत्व
जन जन की है भाषा हिन्दी, जन समूह की जिज्ञासा हिन्दी │ जन जन में रची बसी है, जन मन की अभिलाषा हिन्दी ││ वैश्विकरण का शाब्दिक अर्थ होता है किसी भी स्थानीय या क्षेत्रीय वस्तुओं का विश्व स्तर पर रूपांतर होना, 21वीं शताब्दी को अगर वैश्विकरण की शदी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी│… Continue reading हिन्दी गद्य विधा का वैश्विक स्तर पर महत्व