मिडिया पर आई एक नई किताब, कहते हैं जिसे आनन ग्रंथ (फेसबुक)। यह आनन ग्रंथ निराला है, लगता है सबको प्यारा है। लॉग इन करके मित्र बनाते, और बढ़ाते अपनी पहचान। औरों की बात हम सुनते हैं, अपनी बात सुनाते है। सबकी होती सबसे पहचान, साझा करते सब अपनी बात। मित्र बनाते हैं सब मिलजुल,… Continue reading आनन ग्रंथ (फेसबुक) कविता
Category: poems
मेरी कविताएँ
हे! पुरुष (कविता)
हमारे समाज में ज्यादातर कवि, लेखक और गीतकारों ने सिर्फ नारियों के ही गुणों का बखान अपने कविताओं, गीतों और कहानियों में किया है, जबकि पुरुष के बिना समाज की परिकल्पना ही नहीं की जा सकती है। पुरुष के बिना घर परिवार सुना-सुना रहता है। पुरुष घर, परिवार और समाज के शान और सरताज होते… Continue reading हे! पुरुष (कविता)
लौट जायेंगे हम (कविता)
जी को उदास न कीजिए, जी भर के जीना सीखिए। छोड़िये उलहना देना औरों को, बस धन्यवाद करना दीजिए। गुजरिए जिन रास्तों से होकर, प्यारा सा संदेश दीजिए। देख कर हर जन-जन को, जरा सा मुस्करा दीजिए। उम्र का हर दौड़ बेहतरीन है, हर उम्र का स्वाद लीजिये। लौट जायेंगे हम सब एक दिन, हर… Continue reading लौट जायेंगे हम (कविता)
स्मृति (कविता)
निकली थी घर से अकेले, जीने को जिंदगी लेकिन आपकी यादें, और याद आने लगी । मन से आपकी स्मृति, कभी निकलती नहीं सुगंध आपके एहसास की, कभी कम होती नहीं । बरसों बीत गए आपके साथ रहकर, एक ही घर में उन यादों की प्रतिबिम्ब, नयनों से ओझल होती नहीं । हुलस कर लिखती… Continue reading स्मृति (कविता)
‘शब्दों’ का खेल निराला
शब्द में बहुत बड़ी शक्ति होती है कबीर दास जी ने सच ही कहा है- “शब्द सम्भारे बोलिए, शब्द के हाथ न पाँव। एक शब्द औषधि करे, एक शब्द करे घाव”।। ‘शब्द’ स्वयं गूंगा है, स्वयं मौन रहता है शब्द स्वयं तो चुप रहता है, दूसरे के द्वारा बोला जाता है शब्द दुःख का… Continue reading ‘शब्दों’ का खेल निराला
गाँव तो गाँव होना चाहिए (कविता)
गाँव तो गाँव होना चाहिए, नदियाँ, पोखर और तालाब होनी चाहिए। बुजुर्ग बरगद ‘बाबा’ की सेवा होनी चाहिए, हर डाल पर गिलहरियों का बसेरा होना चाहिए। सभी परिंदों की भी अपनी घोंसले होनी चाहिए, उल्लुओं और झींगुरों की आवाज आनी चाहिए। न उजारे हम बाँस के बसवारी को, जिससे चरचराहट की आवाज आनी चाहिए। बचा… Continue reading गाँव तो गाँव होना चाहिए (कविता)
हिन्दी अभियान (कविता)
हिन्दी है अभिमान देश का हिंदी है स्वाभिमान देश का अनुपम और अति दिव्य है अति सरल है, अति सरस है हिन्दी है अब शान देश का हिन्दी है अभिमान देश का । उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम हिन्दी ही है जान देश का चारों दिशाओं चारों ओर को जोड़ने का अभियान देश का ।।
‘हिन्दी’ का जख्म’ (कविता)
मैं ‘हिन्द’ की ‘हिन्दी रानी’ अपनों से ही जख्मी हूँ । मैं क्या कहूँ ऐ हिन्द वासियों समझो मेरी जख्मों को मैं हिन्दी हूँ अपनों से ही जख्मी हूँ । भूल गए मुझे अपने लोग अंग्रेजी को ही समझते अपनी शान । मुझसे होकर दूर अंग्रेजी की बढ़ाते हैं मान वाह रे कुदरत! तेरी कैसी… Continue reading ‘हिन्दी’ का जख्म’ (कविता)
सुषमा स्वराज (कविता)
सुषमा जी नारी में नारायणी थी, देशवासियों की वह प्यारी थी। वाणी में सरस्वती का वाश था, ‘शब्दों’ में उनके ओज थी। व्यक्तित्व उनके निराले थे, वो जनमानस की सहारा थी दुश्मन उनसे भय खाते थे लक्षमी और दुर्गा की मूरत थी ‘सोने में सुहागा’ सुषमा थी। सुषमा सत्य में स्वराज्य थी।
हम हंसना भूल गए हैं (कविता)
अपने आप में इतना उलझ गए हैं कि हम हंसना भूल गए हैं। दूसरों की खुशी देखकर, हम अपने सुख को भूल गए हैं। इसलिए.... दुसरों की बुराई देखने में, हम अपनी बुराई भल गए हैं। इसलिए.... मोबाईल में समय गवांकर, हम अपनों से दूर ही गए हैं। इसलिए.... सुख कि खोज में गाँवों को… Continue reading हम हंसना भूल गए हैं (कविता)