आचार्य कुंतक : (समय - 10वीं शताब्दी के उत्तरार्ध) ये कश्मीर के निवासी थे। आचार्य कुंतक का मूलनाम - 'कुंतल' था। रचना - 'वक्रोक्ति जीवितम्' 'वक्रोक्ति जीवितम्' में कुल 4 अध्याय है, जिन्हें 'उन्मेष' कहा गया है। 'वक्रोक्ति जीवितम्' के दो भाग है- (i) कारिका (ii) सूत्र विशेष तथ्य: कुंतक 'ध्वनि' विरोधी आचार्य थे। इन्होंने… Continue reading वक्रोक्ति संप्रदाय
Author: इंदु सिंह
ध्वनि संप्रदाय
आचार्य अनंदवर्धन : (समय - 9वीं शताब्दी का मध्य भाग) 'ध्वनि' संप्रदाय के प्रवर्तक। * डॉ. भगीरथ मिश्र ने इनका इनका समय 9वीं शताब्दी का उतरार्द्ध माना है। * ये कश्मीर के राजा अवंती वर्मा के सभा पंडित थे। प्रमुख रचनाएँ: 1. ध्वन्यलोक 2. अर्जुन चरित (महा काव्य) 3. विषम वाण लीला… Continue reading ध्वनि संप्रदाय
रीति संप्रदाय
आचार्य वामन : (समय 8वीं शताब्दी के आसपास) रचना - 'काव्यालंकार सूत्रवृत्ति' (परिच्छेद 5 हैं) 'रीति' का अर्थ- प्रणाली, ढ़ंग, प्रकार अथवा मार्ग है। * आचार्य वामन ने 'काव्यालंकार सूत्रवृति' में 'रीति' संप्रदाय की प्रतिष्ठा की है। * उनके अनुसार पदों की विशिष्ट रचना ही रीति है- 'विशिष्टापद रचना रीति:।' * वामन के अनुसार 'रीति'… Continue reading रीति संप्रदाय
अलंकार संप्रदाय
प्रवर्तक - आचार्य भामह (समय- 6ठी शताब्दी) कश्मीर के निवासी थे रचना - 'काव्यालंकार' पिता का नाम - रक्रिल गोमी था। 'अलंकार' शब्द की व्युत्पत्ति 'अलं' तथा 'कृ' धातु से हुई है, इसका अर्थ' है 'सजावट'। 'अलंकार' शब्द में 'अलं' और 'कार' दो शब्द है। अलं का अर्थ 'भूषण' तथा कार अर्थ है करने वाला… Continue reading अलंकार संप्रदाय
भारतीय काव्यशास्त्र – प्रमुख संप्रदाय और सिद्धांत : ‘रस संप्रदाय’
'काव्यशास्त्र' काव्य और साहित्य का दर्शन तथा विज्ञान है। भारतीय काव्यशास्त्र के अंतर्गत काव्य या साहित्य को उसके विभिन्न अवयवों की व्याख्या विभन्न संप्रदायों और उनके संस्थापक आचार्यो द्वारा की गई है। भारतीय काव्यशास्त्र का आधार संस्कृत भाषा है। संस्कृत काव्यशास्त्र का आरंभ भरतमुनि के 'नाट्यशास्त्र' से माना जाता है। भरतमुनि 'रस-सिद्धांत' के प्रवर्तक थे।… Continue reading भारतीय काव्यशास्त्र – प्रमुख संप्रदाय और सिद्धांत : ‘रस संप्रदाय’
आधुनिकतावाद (Modernism)
'आधुनिकतावाद' शब्द अंग्रेजी के 'मॉडर्निज्म' का हिंदी रूपान्तर है। इसका अर्थ होता है- अनुपयोगी परंपराओं का त्याग एवं इहलौकिक दृष्टिकोण। परिभाषाएँ- हिंदी साहित्यकोश भाग-1 - "सामान्य प्रयोग में आधुनिक शब्द को बहुत दूर तक समय सापेक्ष मान लिया जाता है-----आधुनिकता की पहली और अनिवार्य शर्त स्वचेतना है।" डॉ. बच्चन सिंह के शब्दों में… Continue reading आधुनिकतावाद (Modernism)
यथार्थवाद (Realism)
जीवन की सच्ची अनुभूति 'यथार्थ' है। जब इसका अभिव्यक्तिकरण कलात्मक ढ़ंग से होता है, तब वह यथार्थवाद कहलाता है। 'यथार्थवाद' अंग्रेजी के 'रियलिज्म' शब्द का हिंदी रूपांतरण है। यह शब्द दो शब्दों 'यथा'+'अर्थ' के योग से बना है। जिसका अर्थ है- 'जो वस्तु जैसी है उसे उसी रूप में ग्रहण करना' यथार्थवाद है।' 'यथार्थवाद'… Continue reading यथार्थवाद (Realism)
संरचनावाद (Structuralism)
मानव विज्ञान की ऐसी पद्धति जो संकेत विज्ञान (संकेतों की एक प्रणाली) और सहजता से परस्पर संबंध भागों की एक ऐसी पद्धति के अनुसार तथ्यों का विश्लेषण करने का प्रयास करती है। स्वीडन के प्रसिद्ध भाषाविद द 'फर्निनांद सस्यूर' इसके प्रवर्तक माने जाते हैं। 'संरचनावाद' शब्द अंग्रेजी के 'स्ट्रकचरलिज्म' शब्द का हिंदी रूपांतरण… Continue reading संरचनावाद (Structuralism)
विखंडनवाद (Deconstruction)
'विखंडनवाद' के प्रवर्तक 'जॉक देरिदा' थे। जन्म - 1930 ई. में अल्जीरिया के यहूदी परिवार में हुआ था निधन - 2004 ई. * ये हाशिये से वंचित समूह (द्वितीय विश्व युद्ध और यहूदी) की संस्कृति से संबंधित थे। * 19 वर्ष कि अवस्था में वे अध्ययन के लिए फ्रांस चले गए। * 'अल्बैर कामू' और… Continue reading विखंडनवाद (Deconstruction)
क्रोचे का अभिव्यंजना सिद्धांत
बेनदेतो क्रोचे- (आत्मवादी दार्शनिक) जन्म - 1866 ई. इटली निधन - 1952 ई. बेनदेतो क्रोचे, इटली के प्रसिद्ध दार्शनिक थे। उन्होंने आत्मवादी दर्शन के आधार पर सौंदर्य-सिद्धांत की व्याख्या किया है, जो अभिव्यंजनावाद के (Expressionism) नाम से प्रसिद्ध है। 'अभिव्यंजनावाद' का मूल स्रोत वस्तुतः 'स्वछंदतावाद' की उस प्रवृति में है, जो रुढ़ि परंपरा,… Continue reading क्रोचे का अभिव्यंजना सिद्धांत