जी को उदास न कीजिए, जी भर के जीना सीखिए। छोड़िये उलहना देना औरों को, बस धन्यवाद करना दीजिए। गुजरिए जिन रास्तों से होकर, प्यारा सा संदेश दीजिए। देख कर हर जन-जन को, जरा सा मुस्करा दीजिए। उम्र का हर दौड़ बेहतरीन है, हर उम्र का स्वाद लीजिये। लौट जायेंगे हम सब एक दिन, हर… Continue reading लौट जायेंगे हम (कविता)
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स्मृति (कविता)
निकली थी घर से अकेले, जीने को जिंदगी लेकिन आपकी यादें, और याद आने लगी । मन से आपकी स्मृति, कभी निकलती नहीं सुगंध आपके एहसास की, कभी कम होती नहीं । बरसों बीत गए आपके साथ रहकर, एक ही घर में उन यादों की प्रतिबिम्ब, नयनों से ओझल होती नहीं । हुलस कर लिखती… Continue reading स्मृति (कविता)
सफ़र जिंदगी का (कविता)
आज एक झलक देखी मैंने अपनी जिंदगी उससे पूछी ऐ जिंदगी! अभी तक जो मैंने जिया, क्या वही थी मेरी जिंदगी?
ठूँठ (कविता)
हरी भरी वसुंधरा पर, था खड़ा, एक ठूँठ वृक्ष कभी वो खुद को निहारता, कभी दिशाओं को देखता पुष्पहीन, पत्रहीन, असहाय सा था खड़ा ना वसेरा चिडियों का, ना लोगों के लिए ठिकाना जब थी मैं हरी भरी और खुशहाल पक्षियों के कलरव से गूंजती थी डाल-डाल पथिकों का होता था बैठक यहाँ लेकिन चुप… Continue reading ठूँठ (कविता)
पिता की परिवार में भूमिका
हम सभी हमारे जीवन में हर चीज की परिभाषा लिखते और पढ़ते हैं । ये परिभाषाएँ तथ्य पर आधारित होती हैं लेकिन हमारा भारतवर्ष ही एक ऐसा देश है, जहाँ कुछ परिभाषाएँ भावनाओं से बनती हैं जैसे- प्यार, लगाव और भावनाओं की परिभाषाएँ आदि । आज ऐसी ही परिभाषा हम लिखने की कोशिश करने जा… Continue reading पिता की परिवार में भूमिका
परिवार का बदलता स्वरूप
साधारण बोल - चाल की भाषा में संस्कार का अर्थ होता है शुद्धिकरण। संस्कार के दो रूप है -आतंरिक रूप और बाहरी रूप। बाहरी रूप का नाम रीति-रिवाज है जो हमारी आतंरिक रूप की रक्षा करता है। आतंरिक रूप हमारी जीवन चर्या में शामिल है जो कुछ नियमों पर आधारित होता है। इन नियमों के पालन में अनुशासन का बहुत महत्व होता है। अनुशासन और सामाजिक नियमों को सम्मान देकर ही मनुष्य आत्मिक उन्नति प्राप्त कर सकता है।