निकली थी घर से अकेले, जीने को जिंदगी
लेकिन आपकी यादें, और याद आने लगी ।
मन से आपकी स्मृति, कभी निकलती नहीं
सुगंध आपके एहसास की, कभी कम होती नहीं ।
बरसों बीत गए आपके साथ रहकर, एक ही घर में
उन यादों की प्रतिबिम्ब, नयनों से ओझल होती नहीं ।
हुलस कर लिखती हूँ प्रतिदिन, आपको पाती
ये आदत पुरानी है, जो छोड़ने से भी छुटती नहीं ।
मिलती हूँ आपसे नींद में, हर रोज रात को
फिर भी मिलने की चाह, ख़त्म होती नहीं ।
एहसास भी दिल से, आपकी जाती नहीं
तस्वीर आपकी मेरे मन से, हटती नहीं ।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
आपने याद दिला दिया वो शेर :
दिल के आईने में है तस्वीर-ऐ-यार
जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली
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