शब्द में बहुत बड़ी शक्ति होती है
कबीर दास जी ने सच ही कहा है-
“शब्द सम्भारे बोलिए, शब्द के हाथ न पाँव।
एक शब्द औषधि करे, एक शब्द करे घाव”।।
‘शब्द’ स्वयं गूंगा है, स्वयं मौन रहता है
शब्द स्वयं तो चुप रहता है,
दूसरे के द्वारा बोला जाता है
शब्द दुःख का कारण बन कर रुला देता है
तो कभी यही शब्द
खुशियों का शौगात देता है।
शब्द से ही रिश्ते बनते हैं,
तो शब्द ही रिश्ते बिगाड़ते भी हैं।
शब्दों से मिलता है सम्मान,
शब्दों से ही मिलता है अपमान।
शब्द बना देते हैं सभी कार्य,
और कभी शब्द ही बिगाड़े सभी कार्य।
शब्द कभी बन जाता है ताकत
शब्द कभी बन जाता है कमजोरी
शब्द कभी रुलाता है
शब्द कभी हँसता है
शब्द रिश्ते जुड़वाते हैं
शब्द रिश्ते तुड़वाते हैं
यही शब्द गर्त में गिराता है
तो शिखरों पर भी ले जाता है
आओ बनाये ‘शब्दों’ का एक नया पुल
जिसपर चढ़ कर खुशियों का आसमान मिले।
वाह! बेहतरीन | समय मिले तो मैंने भी ऐसा कुछ लिखा है , पढ़ें और टिप्पणी करें !
https://rkkblog1951.wordpress.com/2019/09/18/शब्द-2/
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