पिता की परिवार में भूमिका

हम सभी हमारे जीवन में हर चीज की परिभाषा लिखते और पढ़ते हैं । ये परिभाषाएँ तथ्य पर आधारित होती हैं लेकिन हमारा भारतवर्ष ही एक ऐसा देश है, जहाँ कुछ परिभाषाएँ भावनाओं से बनती हैं जैसे- प्यार, लगाव और भावनाओं की परिभाषाएँ आदि । आज ऐसी ही परिभाषा हम लिखने की कोशिश करने जा रहे हैं । ‘बाबूजी (पिता) की परिभाषा’ । “पिता हम उस महान व्यक्ति को कहते हैं, जो अपने बच्चों की आवश्यकताओं, अरमानों और सपनों को पूरा करने के लिए अपनी अरमानों का गला घोट देता है और अपने बच्चों में ही अपनी पहचान बनाने की इक्षा रखता है ।” माँ शब्द सुनते ही हम सभी के अन्दर प्रेम की भावना जागृत होने लगती है । कहते हैं बच्चा पहले ‘माँ’ शब्द ही बोलना सीखता है और माँ की छाया में ही बड़ा होता है लेकिन यह सम्पूर्ण सत्य नहीं है । कई बच्चे तो पहले ‘बाबा’ और ‘पापा’ भी बोलते हैं । माँ के लिए कई कहानियाँ, कविताएँ, गानें आदि सुने और लिखे भी गए हैं लेकिन क्या हमने कभी पिता के लिए कोई कविता, कहानी या गाने सुनी है ? हाँ लेकिन बहुत कम । तो क्या हमारी जिंदगी में पिता का कोई महत्व नहीं होता है ? पिता अपने प्यार को दर्शाता नहीं है पर वह माँ से भी ज्यादा अपने बच्चों को प्यार करता है । पिता अपनी खुशियों का त्याग कर अपने बच्चों के लिए दिन रात मेहनत करता है । पिता के दिल में भी परिवार के लिए त्याग, सद्- भावना और समर्पण भरा होता है लेकिन सहज पुरुषार्थ की प्राकृतिक गुणों के कारण वह कभी इन बातों को प्रत्यक्ष रूप में प्रकट नहीं कर पाता है । पिता एक उम्मीद, एक आस, एक हिम्मत और विश्वास है । पिता संघर्ष की आँधियों में हौसलों की दीवार की तरह है जो परेशानियों से लड़ने के लिए हौसला देता है । पिता परिवार की जिम्मेदारियों से लदी उस रथ का सारथी है जो परिवार में सबको बराबर का हक़ दिलाता है । हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता दोनों का स्थान सर्वोच्च है । जिस गणपति बप्पा की प्रार्थना हम हर शुभ कार्य के पूर्व करते हैं वही भगवान गणेश अपने माता-पिता स्वरुपी सृष्टी की परिक्रमा कर माता-पिता की श्रेष्टता को सिद्ध किये और ऐसा करके स्वयं ‘प्रथम पूजनीय’ और श्रेष्ठ बन गए । भगवान गणपति जी को कोटि-कोटि प्रणाम । पिता का प्यार माँ की तरह दिखाई नहीं देता है लेकिन पिता ही बच्चों को अन्दर से मजबूत और दुनिया में अच्छे-बुरे की परख करना सिखाता है । अक्सर घर में गलतियों पर टोकने वाला जैसे – बाल बढ़ाने, दोस्तों के साथ घुमने और टी. वी. देखने के लिए डाँटने और गुस्सा करने वाले पिता ही होते हैं, जिनकी छवि बचपन में हमें कठोर लगती है । जीवन में आगे बढ़ने के लिए अनुशासन का सहारा लेना ही पड़ता है । जब हम बड़े होने लगते है तो समझ आने लगती है कि हमारे पिता के कठोर व्यवहार के पीछे उनका स्नेह होता है । पिता खुद को कठोर बनाकर बच्चों को कठिनाईयों से लड़ना सिखाता है और उसे कर्मठ तथा मजबूत बनाता है । अपने बच्चों को खुशी देने के लिए वह अपनी खुशियों की परवाह नहीं करता है । पिता कभी माँ का प्यार देता है, कभी शिक्षक के रूप में हमारी गलतियों को ठीक करता है तो कभी दोस्त बनकर कहता  है कि किसी बात की चिंता मत करना मैं तुम्हारे साथ हूँ । पिता अपने बच्चों के लिए एक कवच है, जिसकी सुरक्षा में रहकर बच्चे अपने जीवन को एक दिशा दे सकते हैं । कई बार तो बच्चों को यह भी महसूस नहीं होता कि पिता बच्चों की सुख-सुविधाओं की व्यवस्था कैसे और कहाँ से करता है । यह बात उन बच्चों को तब समझ में आती है जब वे खुद पिता बनते हैं । शायद इसीलिए पिता को ईश्वर का रूप कहते हैं । कोई व्यक्ति चाहे कितना भी बुरा क्यों न हो लेकिन अपनी संतान को वह अच्छी बातें और अच्छी संस्कार ही देता है । ऐसे कई उदहारण है जैसे कोई व्यक्ति शराबी, जुआरी या नालायक होता है लेकिन ज्योंही वह पिता बन जाता है तो वह अपनी सभी गन्दी आदतों को छोड़ देता है ताकि उसके संतान पर उसकी बुराई की छाया न पड़े । पिता ही दुनिया का एक मात्र ऐसा शख्स है जो चाहता है कि उसका बच्चा उससे भी ज्यादा तरक्की करे । माँ विश्व में अद्भुत और अनोखी होती है क्योंकि वह बच्चे को नौ महीनें अपनी कोख में पालती-पोषती है और उसे इस नयी दुनिया से परिचित कराती है यानी उसे जन्म देती है । अपना दूध पिलाकर उस बालक रूपी पौधे को सींचती और संवारती है । ठीक उसी प्रकार पिता भी अपने बच्चे को ऊंचाई पर पहुँचाने के लिए अपनी ताकत लगा देता है । जिस प्रकार सूर्य प्रतिदिन उदित होकर अपनी प्रकाश और उर्जा से समस्त संसार को जीवन प्रदान करता है । समस्त प्राणियों के जीवन को सुचारू रूप से चलाने की व्यवस्था करता है ठीक उसी प्रकार पिता का भी परिवार में स्थान होता है । जिसकी दिनचर्या अपने परिवार को सुचारू रूप से चलाने के लिए ही होती है । वह सिर्फ बीज प्रदान कर संतान निर्माण ही नहीं करता है बल्कि उसे हर रोज अपनी आजीविका से सींच कर एक विशाल वृक्ष तैयार करने में अपनी पूरी शक्ति लगा देता है । पिता एक असीमित विषय है जिस पर जितना भी लिखा जाये उतना ही कम है । पिता के अनेक संतान हो सकते हैं परन्तु अपने सभी संतानों के लिए पिता का भाव एक सामान होता है । पिता की हृदय की यही विशालता है । पिता चाहे – अमीर-गरीब, सफल-असफल, शिक्षित या अशिक्षित कैसा भी हो लेकिन उसकी इक्छा हमेशा पुत्र को हर क्षेत्र में अपने से अधिक सफल और ऊँचा देखने की ही होती है । एक बात तो दुनिया को मानना ही पड़ेगा कि पिता के प्यार को दौलत से नहीं तौला जा सकता है ।

आज के इस भौतिकवादी युग में रिश्तों की अहमीयत नहीं के बराबर हो गई है । सबकुछ एक मज़बूरी बनकर रह गया है और जब इस मज़बूरी की बांध टूट जाती है तो पिता वृद्धावस्था में वृद्धाआश्रम में शरण लेने के लिए मजबूर हो जाता है । विशेष रूप से ऐसे परिवार में जहाँ बेटों की संख्या दो या दो से अधिक है, वहाँ बुजुर्ग माँ-बाप की स्थिति अधिक दयनीय है । भगवान कृष्ण, शरद चन्द्र चटोपाध्याय तथा स्वामी विवेकानन्द जैसे कई महापुरुष अपने माता पिता की आठवीं सन्तान थी । स्वामी रामदेव और हमारे वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी जी भी अपने माता-पिता की कई संतानों में से एक हैं । माता-पिता कई तरह की आर्थिक आभाव के बावजूद भी अपने कई संतानों का एक साथ पालन-पोषण कर लेते हैं लेकिन कई सन्तान मिलकर भी अपने बुजुर्ग माँ-बाप की अच्छी तरह देख-भाल करने के बजाय उनका जीवन और भी कष्टमय बना देते हैं । इसमें पिता की स्थिति सबसे दर्दनाक तब हो जाती है जब माता-पिता में से एक माता गुजर जाती है और पिता अकेला रह जाता है । पिता के गुजर जाने के बाद अकेली माँ के दिन तो फिर भी गुजर जाते हैं लेकिन माँ के गुजरने के बाद अकेले पिता की स्थिति ज्यादा दयनीय हो जाती है । आज न जाने क्यों हम इतने कठोर हो गए हैं । आज का समय बदल चुका है, पिता बच्चों से कठोरता से बातें भी नहीं कर सकता  है । भले ही बातें बच्चों की भलाई के लिए ही क्यों न हो । इसका दूरगामी परिणाम गलत होता है ।

आज कल पिता बच्चों की पढाई में उनके साथ-साथ रहते हैं, मानो बच्चों का परीक्षा नहीँ माता-पिता की परीक्षा हो । बच्चों को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं । बच्चों को भी चाहिए की वे अपने पिता की कुर्बानी को समझें, किसी ‘फादर्स डे’ की अनिवार्यता को नहीं ।  आज हमारी नई पीढ़ी के लोग ‘फादर्स डे’ मनाते हैं जो वर्ष में एक बार आता है लेकिन हमारी सोंच से हर दिन ही ‘फादर्स डे’ है । आज हमारा समाज शिक्षित तो है लेकिन संस्कार कहीं खोता जा रहा है । प्रतिदिन अपने माता-पिता को खुश रखना ही सबसे बड़ा ‘फादर्स डे’ है । “माँ-बाप के बिना जिंदगी अधूरी है, माँ धूप से बचाने वाली छाँव  है तो पिता ठंढी हवा का वह झोंका है जो चेहरे से शिकवा की बूंदों को सोख लेता है।”

सौ बात की एक बात यह है कि ‘धरती हमारी माँ है तो सूर्य हमारे पिता’ । सूर्य के बिना धरती और धरती पर जीवन की परिकल्पना अर्थ हीन है । उसीप्रकार पिता के बिना परिवार की परिकल्पना नहीं की जा सकती है ।

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