‘सुशांत’ छिछोरा तो नहीं था तू
कमजोर भी नहीं
जाते तो सभी हैं
किन्तु तरीका ठीक न था !
जाने की इतनी जल्दी क्यों पड़ी थी ?
बहुत कुछ करना था अभी बाकी
करना ही था छिछोरापन
तो फिर जिंदगी से ना करते !!
बड़ी आशाएँ थीं, तुमसे हमारी
उदाहरण थे, युवाओं के तुम
दिल के टुकड़े-टुकड़े कर के
सबको रूला कर चल दिए !!!
‘सुशांत’ इतना अशांत क्यों था?
तुम मिसाल थे बहादुरी और संघर्ष के
कमजोर कैसे हो गये इतने तुम
चले गये अनगिनत प्रश्न छोड़ के !!!!
👌
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पतंग जितनी ऊंची उड़ती है उतनी ही ऊँचाईं से फिर नीचे कहीं दूर गिर जाती है। रास्ते में परेशान मजदूर भी बहुत लंबी दूरी तय करने निकले थे कुछ थक कर बीच में ही गुम हुए ।वो मीडिया में भी नही दिखे। न मीडिया में कोई चर्चा हुई।शायद कोई चुनाव न थे तब । मजदूर और सुशांत ने खूब रुलाया। ये सियासत का खेल था या फिर जनता का दुख। गुमशुदा सी परेशानी में गए इन लोगों के परिवार को जीने का कुछ सुख मिले यही प्रार्थना है।😪🙏
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