सबसे पहले भगवान से यह प्रार्थना करती हूं कि हे! प्रभु, हे! भगवान किसी के जीवन में ऐसा दुःख नहीं देना जिससे वह उबर नहीं सके। यह भी कहा जाता है कि भगवान जब दुःख देता है तब उस दुःख से उबरने के लिए रास्ते भी वही बनाता है, या कहें कि हिम्मत भी वही देता है। एक माँ के जिंदगी में सबसे दुःखद पल होता है माँ के जीते जी उसके बच्चे की जिंदगी खत्म हो जाना। इससे बड़ा शायद कोई और दुःख हो ही नहीं सकता है।
मैं अपने पहले बच्चे की माँ बनने वाली थी। पहली बार माँ बनने का सुख क्या होता है इस पल को वही औरत महसूस कर सकती है जो खुद माँ बनी हो या माँ है। घर के सभी लोग कहते थे कि बेटा होगा। मैं चाहती थी कि मुझे सुंदर सी बिटिया हो। जिसका रुप रंग मेरे पति जैसा हो। मेरे पति मुझसे बहुत सुंदर हैं। सचमुच भगवान ने मेरी मनोकामना सुन ली। मुझे सुन्दर सी प्यारी सी बेटी हुई। जिसका नाम ‘गुड़िया’ रखा था। मेरे ससुर उसका नाम ‘चंद्रकला’ रखे थे। क्योंकि मेरा नाम इन्दु है और मेरे पति का नाम चन्द्रमा दोनों के नाम को मिलाकर उन्होंने बड़ा सुन्दर सा नाम रखा था। ‘चंद्रकला’ जिसका अर्थ होता है ‘चाँद की कला’। सच मेरी गुड़िया रानी अपने पिता जैसी ही थी। हम सब बहुत खुश थे। खासकर मेरे ससुराल के लोग क्योंकि मेरी कोई ननद नहीं थी। मुझे अपनी बेटी को देखकर सुभद्रा कुमारी चौहान की ‘मेरा नया बचपन’ कविता याद आता था। जिस प्रकार सुभद्रा कुमारी चौहान अपने बचपन को अपनी बेटी में देखकर महसूस करती थीं। ठीक उसी तरह मैं भी अपने बचपन को अपनी बेटी में देखकर महसूस करती थी और खुश होकर ‘मेरा नया बचपन’ कविता गुनगुनाने लगती थी।
“बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी।
गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी।
चिंता-रहित खेलना-खाना व फिरना निर्भय स्वच्छंद।
कैसे भूला जा सकता है बचपन का
अतुलित आनंद?
ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी?
बनी हुई थी वहाँ झोंपड़ी और चीथड़ों में रानी॥
किये दूध के कुल्ले मैंने चूस
अँगूठा सुधा पिया।
किलकारी किल्लोल मचाकर सूना घर आबाद किया।।
रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे।
बड़े-बड़े मोती-से आंसू जयमाला पहनाते थे।।
मैं रोई, माँ काम छोड़कर आईं, मुझको उठा लिया।
झाड़-पोंछ कर चूम-चूम कर गीले गालों को सुखा दिया॥
दादा ने चंदा दिखलाया नेत्र नीर-युत दमक उठे।
धुली हुई मुस्कान देख कर सबके चेहरे चमक उठे।। बार बार आती है…?
सुभद्रा कुमारी चौहान
मैं अपनी बेटी से बहुत-बहुत प्यार करती थी। कभी-कभी हमारे गांव और घर के लोग बोल भी देते थे। अरे! जितेन्द्र बहु तू बेटी से इतना ज्यादा प्यार क्यों करती है। यह सुनकर मैं मन ही मन में बहुत खुश हो जाती थी। बात उस समय की है, जब हम अपने पति और दोनों बच्चों के साथ असम राज्य के सिलचर में रहते थे। मरे पति उस समय एयरफोर्स में कार्यरत थे। मेरी बेटी दूसरी कक्षा पास करके तीसरे कक्षा में गई थी। बेटा LKG में पढ़ता था तभी हमारे पति का तबादला ‘विजय नगर’ हो गया जो चाइना और वर्मा के बार्डर इलाके में पड़ता है। उस जगह परिवार नही ले जा सकते थे। इस कारण हमें बच्चों को लेकर गांव आना पड़ा। गांव में अच्छा स्कूल नहीं होने के कारण हमने अपनी बेटी को बोकारो, झारखंड मेरी मां के पास भेज दिया। नामांकन हो गया था मैं खुश थी कि उसके वर्ष बर्बाद नहीं होंगे। पत्र के द्वारा भाई ने सूचित किया कि दीदी गुड़िया का एडमिशन हो गया है। अगले सप्ताह से वह स्कूल जाने लगेगी। मैं पत्र पढ़कर खुश हुई। मैंने गुड़िया को पत्र लिखा बेटा आप अच्छी तरह से पढ़ाई करना। मामा-मामी, मौसी और नानी के साथ ठीक से रहना। अगले महीने मैं आपसे मिलने आउंगी। पत्र का जबाब देना। तुम्हारी माँ। अभी पत्र का जबाब आने में देर थी। झारखंड में हमारे घर के बगल में पड़ोसी ने हमारी लाड़ो की हत्या कर दी। गुड़िया के मौत को मैं हत्या हीं कहूंगी। उसके घर में एक गाड़ी थी। गाड़ी की कोई चोरी न कर ले, इस वजह से वह हर रोज अपने गाडी में करंट लगा देता था। यह बात किसी को भी मालूम नहीं था। गुड़िया खेलने गई खेलते-खेलते वह गाड़ी पर चढ़ने लगी वैसे ही उसे करंट लगा और वह …..?
उस दिन मुझे आभास भी हुआ था। कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, मन व्याकुल हो रहा था, कुछ समझ नहीं आ रहा था कि करे तो क्या करें? कहाँ जाएँ? यह घटना गुड़िया के स्कूल जाने से एक दिन पहले ही घटी थी। आज का समय बहुत अच्छा है। सेकेंड में ही हम जहां कहीं भी कोई हो समाचार का आदान-प्रदान कर लेते हैं। परन्तु उस समय सिर्फ पत्र और तार आदि ही थे। फोन तो बड़े-बड़े लोगों के घरों में ही होते थे।
गुड़िया के मौत के चार पांच दिन बाद मेरा देवर आया। उसने मुझे प्रणाम किया। मैं पूछी आप अचानक आ गए। क्या कोई जरुरी बात है? उन्होंने कहा हाँ! इसलिए तो आया हूँ। तभी मेरे देवर मुझे पकड़कर रोते हुए बोला भाभी गुड़िया अब इस दुनिया में नहीं है। मैं बोली ऐसे कैसे हो सकता है? वह बिना मेरे से बताए, मुझे छोड़कर कैसे जा सकती है। नहीं भगवान तू मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकता है। मैंने तो कभी भी किसी के साथ कोई बुरा नहीं किया है। भगवान ऐसे कैसे गुड़िया को बुला सकता है। अभी तो मैं उससे मिलने जाने वाली थी। मैं अपने देवर को बोली तुम अभी बोकारो चलो अभी मैं गुड़िया से मिलने जाऊँगी, मैं बहुत बोली चलो मुझे अभी देखना और मिलना है। उसे क्या हुआ था? वो कैसे इस दुनिया और अपनी मम्मी को छोड़ के चली गई? उसने तो कहा था, आपसे मैं भी मिलना चाहती हूँ? चलो नरेंद्र! मुझे गुड़िया के पास ले चलो मुझे उससे मिलना है, मैं देखना चाहती हूँ, वो कैसी है? तभी नरेंद्र बोला भाभी, अब आप उसे नहीं देख सकती। मैं उसका अंतिम संस्कार करके आ रह हूँ, तुमने बिना मुझे दिखाये उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया। ये क्या कर दिया नरेंद्र तुमने मुझे एक बार मेरी लाड़ो का मरा हुआ मूँह तो देख लेने देते। एक बार मैं उसे चूम लेती प्यार कर लेती। ये कैसा जुल्म किया तुम लोगों ने मेरे साथ। एक तो भगवान ने मेरे उपर जुल्म कर दिया। उसे दूर ले जाकर मौत दे दिया और दूसरा तुमलोगों ने मुझे मेरी बेटी का मरा हुआ मूँह भी नहीं दिखाया। हे! भगवान तुमने ये कैसा जुल्म किया एक माँ के उपर। सबसे बड़ी दुःख की बात यह थी कि किसी ने मेरी बेटी का मरा हुआ मूँह भी नहीं दिखाने की कोशिश किया था। मेरा देवर अंतिम संस्कार करके आया था। यह सब जानकर मैं एक जिंदा लाश हो गई थी। एक माँ के लिए इससे बड़ा दुःख और क्या हो सकता है कि माँ अपने बच्चे का मरा मूँह भी नहीं देख सकी। देखने से संतोष तो कर लेती कि हाँ अब मेरा बच्चा इस दुनिया में नहीं है। मुझे तो आज भी संतोष नहीं है। आज भी मुझे मेरा दिल मुझे ही कोषता है। मैंने गुड़िया को क्यों भेजा, नहीं भेजना चाहिए था। दूसरी बात मुझे मेरे बच्चे का मरा हुआ मूँह भी दिखाना जरूरी नहीं समझा। इससे बड़ा दुःख और क्या हो सकता है?
यह मेरी जिन्दगी का सबसे दु:खद घटना है जिससे मैं अभी तक ना तो उबर सकी हूँ और ना ही जिते जी उबर सकूंगी, हाँ मरने के बाद जरुर उबर जाउंगी। कम से कम जीते जी तो नहीं ….? आज भी मुझे लगता है कि कहीं से मेरी गुड़िया आकर बोलेगी मां … मैं आ गई। मैं तो आपको डरा रही थी। मुझे देखिए मां! और मैं पलट कर सच में देखने लगती हूँ ….? फिर निराश और हताश हो जाती हूँ। उसकी बचपन की सारी बातें मेरे आँखों के सामने फ़िल्म की तरह घूमने लागता है। आज भी कोई पर्व-त्योहार आता है तब अन्दर ही अन्दर मेरी आत्मा उसे याद कर के रोने लगती है। काश! आज मेरी बेटी होती। 11 सितम्बर 1989 मेरी जिन्दगी में वो अंधकार लेकर आया जिसको कोई भी रौशनी उजाला में नहीं बदल सकता है। जब-जब सितम्बर का महिना आता है तब-तब ये घाव हरे हो जाते हैं। इसी महिने में पितृपक्ष भी आता है जिसमें अपने पित्तरों को याद किया जाता है। लगभग पन्द्रह से बीस दिन पहले से ही मुझे मेरी बेटी के सपने आने लगते हैं। गुड़िया बेटी हम आज भी आप को बहुत याद करते हैं। आप! जहाँ भी हो भगवान आप की आत्मा को शान्ति प्रदान करें, यही परमेश्वर से मेरी प्रार्थना है। आज 13 सितम्बर 2019 है और दो दिन पहले 11 सितम्बर 2019 को आप को बीदा हुए तीस वर्ष हो गये। 11 सितम्बर 1989 को एकदशी तिथि था। हमें विश्वास है कि एकदशी तिथि को इस दुनिया से विदा होने के बाद आपको देवत्व प्राप्त हुआ होगा। हम आप को कभी भी भुला नहीं सकेंगे। कल 14 सितम्बर 2019 से पितृपक्ष का आरम्भ हो रहा है और हर वर्ष की तरह पन्द्रहों दिन पापा आपको सुबह-सुबह अवश्य याद करते रहेंगे। अपने सभी पित्तरों को पानी देते हुए आपको भी पानी देते हैं । हाँ आप भी हमारे पित्तरों में शामिल हो गई हैं । हे परमेश्वर! हमारी बेटी की आत्मा को शान्ति देना यही हमारी करबद्ध प्रार्थना है।
अत्यंत दुखद …!
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Achhi stori
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मैम ये जानते हुये भी की ये आपके जीवन कि हृदय विदारक घटना है… फिर भी इसको like करना पढ़ रहा है। क्योंकि अपनी खुशियां लिखना आसान है ….अपना दुख नहीं
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ayushishakha 77 आप सच कह रहे है। धन्यवाद।
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इंदु जी, ये बहुत ही हृदय विदारक घटना है। महसूस करती हूँ तो लगता है कि वाकई दिल से इसको निकाल पाना असम्भव है। पर हमें अपने दुःखों का इलाज कर अपने मन और आत्मा को शांत करना चाहिए। ये हमारा अपने प्रति कर्त्तव्य है,ऐसा मुझे लगता है।
अतः इसके लिए एक रास्ता सुझाई देता है। आप यदि किसी मासूम अनाथ बच्ची को अपनाकर उसे माँ का प्यार दे तो उसकी माँ की कमी भी पूरी होगी और आपकी बेटी को पाने की प्यास भी शांत हो सकेगी। और कौन जानता है कि ‘गुड़िया’ इस जन्म में अपनी माँ को खोज रही हो और अपनी माँ के प्यार को पाने की भूखी हो। हो सकता है वो मासूम अनाथ ‘गुड़िया’ ही हो जो आपके प्यार का इंतज़ार कर रही हो।
मेरी किसी भी बात का यदि बुरा लगे तो मैं क्षमप्रार्थी हूँ।कृपया मुझे क्षमा कीजिएगा।
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प्रिय RUBYJAIN ji Namaskar मैं आपकी सुझाव और भावनाओं का सम्मान करती हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद।
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Heart touching ❤❤
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Richa मेरी जिंदगी की सबसे दुःख भरी दुर्घटना । भगवान किसी को भी ऐसा दुःख नही दे।
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अत्यन्त दुखद घटना ।आपको भगवान हिम्मत दे।
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धन्यवाद Muskan ji. यह सत्य है कि जो दुःख देता है वही सहने की शक्ति भी।
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Didi jaha v hogi aache se hogi mausi 😊
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धन्यवाद Jyoti beta
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भगवान उसकी आत्मा को शांति दे।
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