सुषमा जी नारी में नारायणी थी,
देशवासियों की वह प्यारी थी।
वाणी में सरस्वती का वाश था,
‘शब्दों’ में उनके ओज थी।
व्यक्तित्व उनके निराले थे,
वो जनमानस की सहारा थी
दुश्मन उनसे भय खाते थे
लक्षमी और दुर्गा की मूरत थी
‘सोने में सुहागा’ सुषमा थी।
सुषमा सत्य में स्वराज्य थी।