आज सत्तर वर्षो के बाद भारत पूर्णरूप से स्वतंत्र हुआ है। इस दिन का इंतजार हर भारतवासी को था और मुझे भी। मैं तो इस दिन का इंतजार तक़रीबन सैंतीस वर्षों से कर रही थी। आशा तो नहीं था कि कभी जम्मू-कश्मीर से 370 और 35A हटाया जा सकेगा लेकिन हमारे प्रधान मंत्री, गृह मंत्री और अजित डोवाल जी ने यह भी कर दिखाया जो एक सपने जैसा लगता है। आज मुझे रंजना वर्मा जी की कविता की एक पंक्ति याद आ रही है-
“राह पर पाँव जो बढ़ाते हैं। लक्ष्य उनके करीब आते हैं”।।
सच में आज वह दिन आ ही गया। आज मैं सुबह से ही टी.वी के पास बैठकर उस शुभ समाचार का इंतजार कर रही थी जिसकी कश्मीरी पंडितों के साथ मुझे ही नहीं बल्कि पूरे भारतवासियों को कई वर्षों से इंतजार था। बात उस समय कि है जब मैं अपने पति और एक साल की बेटी के साथ श्रीनगर में रहती थी। मेरे पति वायुसेना में कार्यरत श्रीनगर में पोस्टेड थे। ये उनकी पहली पोस्टिंग थी। वे वहाँ पर दो वर्षों से रह रहे थे। उस समय वहाँ पर तीन-चार वर्षों के लिए पोस्टिंग होती थी। उन्होंने सोचा कि अपने परिवार को भी एक बार श्रीनगर घुमा दें। बाद में पता नहीं मौका मिले या ना मिले। यह बात सन् 1982 की है। उस समय श्रीनगर में उग्रवादी, आतंकवादी आदि गतिविधियाँ नहीं थी। वहाँ कई धर्म और जाति के लोग बहुत ही खुसी से मिलजुल कर रहते थे। वहाँ सबसे अधिक आबादी मुस्लिम और कश्मीरी पंडितों की थी। मैं उस समय लालचौक के नजदीक जवाहर नगर में रहती थी। जिस मकान में हम रहते थे वह भी एक मुश्लिम अंकल का ही मकान था। उस मकान में हम दो तीन फौजियों का परिवार एक साथ रहता था। हमें कभी भी कुछ ऐसा महसूस नहीं हुआ था कि हम अलग-अलग धर्म और जाती के लोग हैं। हम सब एक दूसरे के दुःख-सुख में शामिल होते थे। हमारे घर मालिक ‘अंकल-आंटी’ का व्यवहार भी सभी किरायदारों के प्रति अच्छा था। अंकल की चार बेटियाँ और दो बेटे थे। अंकल की तीन बेटियों और दो बेटों की शादी हो चुकी थी। उनकी सबसे छोटी बेटी ‘फैंसी’ थी जो मेरी हम उम्र थी। फैंसी हमारी अच्छी दोस्त थी। आज भी मुझे उसकी याद आती है। हम दोनों एक दूसरे से बहुत बातें किया करते थे। अंकल जी के दो पोते थे बड़ा का नाम याद नहीं आ रहा है लेकिन उनके छोटे पोते का नाम ‘सब्बू’ था। उसका जब मुसलमानी हुआ था तब हम सब को अंकल आंटी ने बुलाया था। हमारे जैसे कई फौजियों का परिवार बाहर ही रहता था क्योंकि उन दिनों हवाई अड्डा के अन्दर वायुसेना के बहुत कम क्वार्टर्स थे और सरकारी क्वार्टर्स बहुत दिनों की प्रतीक्षा के बाद मिलता था।
एक बात थी कि वहाँ की नई पीढ़ी हम फौजियों से थोड़ा चिढ़ते थे। ये मुझे कई बार छोटी-छोटी घटनाओं से महसूस होती थी। एक दिन मैं कुछ सामान लेने के लिए एक दुकान पर गई थी। मैंने जब सामान का कीमत दुकानदार से पूछा तो उसने दूसरे के दुकान से अधिक बताया। मैं बोली भईया आप इसका दाम अधिक बोल रहे हैं तो उसने तुरंत मुझे गुस्से से बोला- ‘ओये’ तुम जाकर कैंटीन से ले लो। उसकी इस बात से मुझे बहुत गुस्सा आया। मैं भी उस दुकानदार को बोली- ओये तुझे भी कुछ चाहिए तो बताना मैं कैंटीन से मंगवा दूंगी। यह कहकर मैं चुप-चाप घर आ गई। मैं कभी भी किसी से डरती नहीं हूँ क्योंकि मैं कभी झूठ नहीं बोलती हूँ। “मेरी दादी और मेरे बाबुजी हमेशा सिखाया करते थे कि कभी झूठ नहीं बोलना क्योंकि एक झूठ बोलने के बाद सौ झूठ बोलना पड़ता है। हाँ, जहाँ तुम्हारे झूठ बोलने से किसी व्यक्ति की या तुम्हारी जान की रक्षा हो सके” तब वह झूठ भी सत्य के समान हो जाता है। जिस समय मैं कश्मीर गई थी उस समय हमारी उम्र भी कम थी, दूसरी राजपूतानी, तीसरी फौजी की बेटी और फौजी की पत्नी भी इन सब का प्रभाव तो हमारे जीवन पर था। आज भी मैं वैसी ही हूँ। मैं उस कश्मीर में रहती थी जब सच में वह ‘धरती का स्वर्ग’ था। आज भी मुझे उन दिनों की याद आती है। जब हम दो तीन परिवार के लोग एक साथ मिलकर हर रविवार को कहीं न कहीं घूमने जरुर जाते थे। कभी शालीमार बाग, कभी निशात बाग, गुलमार्ग, पहलगांव, सोनमार्ग, चाश्मेसाही और शंकराचार्य मंदिर आदि। हमलोग शंकराचार्य मंदिर हमेशा जाया करते थे। श्रीनगर में ही शंकराचार्य पर्वत है जहाँ विख्यात हिन्दू धर्म सुधारक और अद्वैत वेदांत के प्रतिपादक ‘आदि शंकराचार्य’ सर्वज्ञानपीठ के आसन पर विराजमान हुए थे। यह मेरा सबसे प्रिय स्थान था। डल झील औए झेलम नदी में आने जाने, घूमने और बाजार जाने का जरिया खास तौर पर वहाँ छोटी-छोटी सी नावें थी जिसे वहाँ के लोग ‘शिकारा’ कहते हैं। रंग-बिरंगी फूलों से सजी हुई डल झील पर चलती-फिरती घर थी जिसे ‘हाउसबोट’ कहा जाता है। मैं आज भी महसूस करती हूँ कि शालीमार और निशात बाग देखने के बाद मुझे आज तक कोई दूसरा बाग देखने का मन ही नहीं करता है। आज भी मुझे कोई कहता है कि चलो किसी बाग या पार्क में घूमने चलेते हैं तो मुझे लगता है कि जिसने शालीमार और निशात बाग को देखा हो उसे कोई दूसरा बाग देखने का मन ही नहीं करेगा।
केशर के खेत, अखरोट के बगान, सेव का बगीचा, उद्यानों में चिनार के पेड़ों की कतारें आदि से कश्मीर की सुन्दरता दोगुनी बढ़ जाती है। जब कश्मीर में ‘स्नों फाल’ होता था उस समय ऐसा लगता था जैसे सारा कश्मीर घाटी दूध में नहाई हो। वाह! क्या दृश्य होते थे। मैं आज भी कभी-कभी अपने एल्बम में उन दिनों की तस्वीर को देखती हूँ और उसकी सुन्दरता को महसूस करती हूँ।
हमारे पति के कार्यकाल का वहाँ चार साल पूरा होने वाला था तभी उनकी पोस्टिंग पुणे आ गई। कश्मीर छोड़ने से पहले मैं अपने पति से बोली थी कि एक बार और शंकराचार्य मंदिर घुमने चलते हैं। पता नहीं फिर हम सब कश्मीर आ पाएंगे या नहीं। उस समय मैं अपने दूसरे बच्चे की माँ बनने वाली थी। हम शंकराचार्य मंदिर दर्शन के लिए गए। हमने भगवान से प्रार्थना किया कि हे भगवान! मुझे पुत्र देना मौका मिला तो मैं दूबारा आपके दर्शन करने जरुर आऊँगी लेकिन हमें उसके बाद अभी तक मौका ही नहीं मिला। उसके बाद 9 जनवरी सन् 1990 का वह काला दिन आया जिस दिन अलगावादियों ने धरती के स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर को जहन्नुम बना दिया। वहाँ पर रहने वाले ‘हिन्दू पंडित’ कश्मीरियों के साथ जो किया गया वो पूरा भारतवर्ष जानता है। आज करीब 30 वर्ष हो गए हैं लेकिन आज तक उन कश्मीरी पंडितों को अपनी जन्म धरती नसीब नहीं हुआ है। उस समय तक हमें 370 और 35A अनुच्छेद के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं था। आज हमारे देश के प्रधान मंत्री मोदी जी नहीं होते तो शायद अभी भी बहुत लोग नहीं जानते की 370 और 35A अनुछेद क्यों और किसने लगाया था। उसे हटाना तो मुमकिन ही नहीं था लेकिन मोदी जी के शासन काल में वह सभी कार्य सम्भव हुए जो असंभव थे। यदि कुछ लोग कहते हैं कि ‘मोदी है तो मुमकिन है’ तो कुछ भी गलत नहीं कहते हैं। मोदी जी ने ये साबित कर दिया है कि ‘मोदी है तो मुमकिन है’। किसी ने सच ही कहा है-
खुद को कर बुलंद इतना कि खुद खुदा पूछे, बोल तेरी रजा क्या है।
कश्मीरी पंडितों की आह, दुःख, दर्द को भी भगवान ने सुन ली। अब हम सब भी वहाँ आराम से जा सकते है। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग था, आज भी भारत का अभिन्न अंग है और भविष्य में भी अखण्ड भारत का अभिन्न अंग बना रहेगा ऐसी परिकल्पना हम कर सकते हैं। अब सभी भरतीयों को कश्मीर में स्वतंत्र भ्रमण की आजादी मिलेगी। देश के अन्य पर्यटन स्थलों की तरह कश्मीर में भी पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा जिससे स्थानीय लोगों की आर्थिक हालात सुधरेंगे और वादियों में खुशनुमा माहौल बनेगा। मेरी भी प्रबल इक्षा है कि फिर से एक बार कश्मीर जाऊँ और कुछ दिन प्रकृति की उन सुन्दर रचना का आनन्द ले सकूं।