चितौड़गढ़ को शुरवीरों का शहर कहा जाता है। यह मेवाड़ की राजधानी भी रहा है। चितौड़गढ़ वह वीर भूमि है, जिसने समूचे भारत में शौर्य, देशभक्ति और बलिदान का अनूठा उदहारण प्रस्तुत किया है। चितौड़गढ़ के इतिहास में जहाँ पद्मिनी के जौहर की अमर गाथायें, मीरा बाई की भक्ति और माधुर्य प्रेम की कहानी है, वहीं ‘पन्ना धाय’ जैसी एक मामूली ‘गुर्जर’ स्त्री की ‘स्वामिभक्ति’ की भी कहानी है। पन्ना धाय राणा सांगा के पुत्र राणा उदयसिंह की धाय माँ थीं। कहते हैं कि पुत्र को जन्म देने के बाद रानी कर्णावती अस्वस्थ रहने लगी और निरंतर एक वर्ष तक वे गम्भीर रूप से अस्वस्थ रही। तभी से उदयसिंह के लालन-पालन और दूध पिलाने के लिए पन्ना धाय को लाया गया। राणा सांगा के पुत्र उदय सिंह को पन्ना धाय माँ की तरह अपना दूध पिला कर उनका पालन-पोषण करती थी। इसीलिए वह ‘धाय माँ’ कहलाने लगी। पन्ना का पुत्र चन्दन और राजकुमार उदय सिंह साथ-साथ बड़े हुए। पन्ना धाय ने उदय सिंह की माँ रानी कर्णावती के साथ मिलकर ‘कुँवर’ की परवरिश करने का दायित्व ले लिया था। पन्ना पूरी लगन के साथ कुँवर का लालन-पालन और सुरक्षा करती रही। वह चितौड़ के कुम्भा महल में रहती थी।
राणा संग्राम सिंह एक वीर शासक थे लेकिन मित्र और शत्रु को परखने में उनकी क्षमता कम थी। वे किसी पर भी आंख मूंद कर विश्वास कर लेते थे। राणा संग्राम सिंह के इसी कमजोरी का फायदा उठाकर बनवीर चितौड़ का शासक बनना चाहता था। बात उस समय की है, जब चितौड़गढ़ का किला आतंरिक विरोध, कलह और षड्यंत्रों से जल रहा था। उसी समय राणा संग्राम सिंह के चचेरे भाई बनवीर ने एक षड्यंत्र रचकर राणा संग्राम सिंह की हत्या महल के अन्दर ही करवा दिया था। उसने राणा के वंशजों को एक-एक कर मार दिया और उदय सिंह को भी मारने के लिया अवसर की तलाश करने लगा। राजमहल के वातावरण को देखकर उदय सिंह की माँ को मन में संशय हुआ। उन्होंने अपनी खास दासी पन्ना धाय को उदय सिंह को सौंपते हुए कहा- ‘पन्ना अब ये राजमहल और चितौड़ का किला इस लायक नहीं रहा कि मेरे पुत्र तथा मेवाड़ के भावी राणा की रक्षा कर सके, तू इसे अपने साथ ले जा, और किसी तरह कुम्भलगढ़ भेजवा दे”।
पन्ना धाय ने रानी कर्णावती को वचन दिया कि वह राजकुमार उदय सिंह को अपने पुत्र चन्दन से अधिक स्नेह के साथ सुरक्षा करेगी और ठीक समय देखकर राजकुमार को कुम्भलगढ़ भेज देगी। एक दिन अचानक बनवीर को पता चला की उदय सिंह महल में नहीं है। यह जानकर वह चिंता में पड़ गया। उदय सिंह को मारकर राणा बनने का सपना बनवीर का टूटने लगा था। फिर उसने एक षड्यंत्र रचा। उसने किले में ही गीत, संगीत और मेले का आयोजन करवाया। बनवीर को पता था कि राजकुमार उदय सिंह संगीत के शौकीन हैं। वे किले में कही भी छिपे होंगे तो संगीत सुनने अवश्य आयेंगे। उधर पन्ना धाय के घर चन्दन और उदय सिंह दोनों बहुत ही खुशी और मजे से रह रहे थे। दोनों में बहुत बनती थी क्योंकि वे हम उम्र थे। दोनों बच्चे पन्ना धाय के साथ रहकर भोजन करते, खेलते और खुश रहते थे। दोनों को घर से निकले हुए कई दिन हो गए थे। जब दोनों ने महल में संगीत के आयोजन की बात सुनी तो सुनकर बहुत खुश हुए और पन्ना धाय से ज़िद करने लगे कि हम भी इस संगीत के आयोजन में जायेंगे। पन्ना धाय के विरोध करने के बाद भी वे दोनों किसान का वेश बदलकर संगीत सुनने के लिए घर से निकल गए। इधर पन्ना धाय का दिल वनबीर को याद करके डर से कांप रहा था। बाद में वही हुआ जिसका डर था। वनबीर के गुप्तचरों ने चन्दन के साथ बैठे उदय सिंह को पहचान लिया और पीछा करके यह जान लिया कि राज कुमार उदय सिंह कहाँ छिपा हुआ है। दोनों किशोरों के लौट आने के बाद पन्ना धाय ने चैन की सांस ली लेकिन रात में वे चैन से सो नहीं सकी। उस रात तो कुछ नहीं हुआ लेकिन दूसरे दिन पन्ना ने सुबह ही रानी जी को खबर भेजा की राजकुमार को कुम्भलगढ़ ले जाने के लिए अपने विश्वासपात्र किसी एक सेवक को भेजें। उसी सेवक ने पन्ना को बताया कि बनवीर को पता चल चुका है कि उदय सिंह यहां पर रह रहा है। पन्ना धाय शंकित थी कि आज रात कभी भी बनवीर उसके घर आकर कुंवर उदय सिंह की हत्या कर सकता है। पन्ना धाय ने कुंवर उदय सिंह से कहा कि आज आप चन्दन के बिछौने पर सोना और चन्दन आप के बिछौने पर सो जायेगा। “क्यों माँ”? दोनों ने एक ही साथ पूछा। “बस मैंने कहा न” पन्ना के इस आदेश को सुनकर दोनों सोचने लगे कि माँ ने कभी भी ऐसा आदेश नहीं दिया। यह सोचकर दोनों एक दुसरे के स्थान पर सो गए। दोनों के सोने के बाद पन्ना धाय ने उदय सिंह का स्वर्ण मुकुट चन्दन के बिछौने के पास ही रख दिया। पन्ना के आँखों से नींद चली गई थी। रात के दूसरे पहर बितते ही दरवाजे पर जोर-जोर से खटखटाहट की आवाज हुई। पन्ना ने दरवाजा नहीं खोला तो बनवीर ने दरवाजा तोड़ दिया।
पन्ना धाय अपने कर्तव्य और राजवंश दोनों के प्रति सजग थी। इस बात की सूचना पन्ना धाय को पहले ही मिल चुका था कि बनवीर उदय सिंह की हत्या कर सकता है। पन्ना धाय किसी भी तरह उदय सिंह को बचाना चाहती थी। इसलिए उनहोंने उदय सिंह की जगह अपने बेटे चन्दन को सुला दिया था। बनवीर विक्रमादित्य की हत्या करने के बाद रक्त रंजित तलवार लेकर उदय सिंह के कक्ष में पहुँचा था और धाय माँ से पूछा कि उदय सिंह कहां है? पन्ना धाय ने उदय सिंह के पलंग की ओर इशारा किया जहाँ पर पन्ना धाय का बेटा चन्दन सोया हुआ था। बनवीर ने पन्ना धाय के बेटे को उदय सिंह समझकर मार दिया। पन्ना अपनी ही आँखों के सामने अपने पुत्र के वध को पत्थर बन कर देखती रही। उन्होंने अपने आंसू को भी रोक लिया था। जिससे कही बनवीर को शक ना हो जाए। बनवीर के वहां से चले जाने के बाद धाय ने अपने कलेजे के टुकडे के मृत शरीर को चूमकर प्यार किया। उसी समय उदय सिंह धाय के पास आकर बोले क्या हुआ धाय कौन आया था? बताओ धाय माँ यह रक्त कैसा, तब चन्दन को खून से लतपथ देख कुंवर बोले क्या हुआ चन्दन उठ मेरे भाई उठ मेरे दोस्त”। तभी पन्ना होश संभालकर बोली- कुवर सा तुम जल्दी से इस जूठी पतलों वाली टोकरी में बैठकर यहाँ से निकल जाओ। देर मत करो कुंवर सा बनवीर आपके जान के पीछे पड़ा है”—। कुंवर धाय माँ से बोले, आपने जान बुझकर मुझे अन्दर जमीन पर सुलाया था और चन्दन को ….”। यह कहकर कुंवर उदय सिंह सुबक-सुबक कर रोने लगे। धाय माँ ये कैसी स्वामिभक्ति है। आपने अपने बेटे का बलिदान दे कर मुझे क्यों बचाया? धाय ने कहा कुंवर सा देर मत करो और उदय सिंह को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के लिए निकल पड़ी। अपने पुत्र के मृत्यु के पश्चात पन्ना कुंवर उदय सिंह को लेकर देवलिया गई। देवलिया के रावत राय सिंह ने उनकी बड़ी खातिरदारी किया लेकिन जब पन्ना धाय ने कुंवर उदय सिंह को शरण देने की बात कहा तब रावत राय सिंह बनवीर के डर से उनको शरण देने से मना कर दिया। उसी समय पन्ना उदय सिंह को लेकर डूंगरपुर चली गई। वहाँ के राजा रावल आसकरण सिंह ने भी बनवीर के डर से शरण नहीं दिया, आखिर में पन्ना धाय उदय सिंह को लेकर कुम्भलगढ़ पहुंची, जहाँ उन्हें शरण मिला। कुम्भलगढ़ के किलेदार आशादेपुरा ने अपने माँ से इजाजत लेकर कुंवर उदय सिंह को अपने यहाँ रखना स्वीकार कर लिया। उदय सिंह किलेदार का भांजा बनकर बड़ा हुआ। तेरह वर्ष की उम्र में मेवाड़ी उमरावों ने उदय सिंह को अपना राजा स्वीकार कर लिया और उनका राज्याभिषेक कर दिया। सन् 1542 ई. में उदय सिंह मेवाड़ के वैधानिक महाराज बन गए। मेवाड़ के इतिहास में जिस गौरव के साथ प्रातः बेला में महाराणा प्रताप को याद किया जाता है, उतना ही गौरव से पन्ना धाय का नाम भी लिया जाता है। जिसने स्वामिभक्ति को सबकुछ मानते हुए अपने पुत्र का बलिदान कर दिया। ये वही धाय माँ थी जिन्होंने अपने बेटे का बलिदान देकर मेवाड़ के राजवंश की रक्षा की थी।