कवि ‘घाघ’ की कहावतें

भारत कृषि प्रधान देश है। हमारे देश की कृषि का मुख्य आधार ऋतुएँ हैं। अच्छी वर्षा होगी तभी अन्न का उपज भरपूर होगा, अतः इसका ज्ञान होना कृषि के लिए अनिवार्य है। हमारे किसानों को इन सब बातों की जानकारी नहीं थी। उन्हें इस बात का पता नहीं होता था कि  वर्षा कब होगी, कितना होगी, होगी की नहीं होगी। इस समस्या के निदान के लिए लोक भाषा में कहावतों का प्रचलन हुआ। ये ऐसी कहावतें थी जिन्हें लोग आँख मुंद के विश्वास करते थे। उस समय के महान कवि घाघ व भडूरी थे जिनकी कहावतों से किसानों को मौसम की जानकारी प्राप्त हो जाती थी। कहा जाता है कि वैज्ञानिकों के मौसम संबंधी अनुमान गलत हो सकते थे लेकिन ग्रामीण किसानों कि धारना थी कि घाघ की जो कहावतें थी वे सत्य साबित होती थी। उनकी मौसम और कृषि की जानकारी से सम्बन्धित मशहूर कहावतें इसप्रकार हैं

1. उतरा उतर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि।

  भली विचारी चितरा, परजा लेई बहोरि।।

अथार्त- उतरा और हथिया नक्षत्र में यदि वर्षा नहीं भी बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो खेती में अच्छी उपज होती है।

2. पुरुवा रोपे पूर किसान। आधा खखरी आधा धान।।

अर्थ- पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा खखडी पैदा होता है।

3. भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होए।

   ऊबड़- खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।

अथार्त- यदि भादों के छठ तिथि को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड-खाबड़ जमींन में भी उस दिन बुआई कर देने से बहुत पैदावार होता है।

4. शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।

   तो यों भाखै भडूरी, बिन बरसे ना जाए।।

अथार्त- यदि शुक्रबार की बदरी, शनिवार तक छाए रह जाए तो वह बादल बिना बरसे नहीं जाता है।

5. सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।

  महंग नाज अरु स्वल्प जाल, विरला विलसै कोय।

अथार्त- यदि श्रावन कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिनी नक्षत्र हो तो समझ लेना चाहिए की अनाज महंगा होगा और वर्षा कम होगी, कुछ लोग ही सुखी रहेंगें।

6. दुश्मन की किरपा बुरी, भली मित्र की त्रास।

  आंडगर गर्मी करें, जल बरसन की आस।।

अथार्त- शत्रु की दया की अपेक्षा मित्र की फटकार अच्छी है, जैसे- गर्मी अधिक पड़ने से दुख तो होता है लेकिन वर्षा बरसने की आस होने लगती है।

7. खेती, पाती, बीनती और घोड़े की तंग।

  अपने हाथ संभारिये, लाख लोग हो संग।।

अथार्त- खेती, प्रार्थना-पत्र तथा घोड़े के लगाम को अपने ही हाथ में रखना चाहिए। किसी दुसरे पर विश्वास कर के नहीं छोड़ना चाहिए। भले ही लाखों लोग आपके साथ क्यों न हों।

8. ओझा कमिया, वैद किसान। आडू बैल और खेत मसान।।

अथार्त- नौकरी करने वाला ओझा, वैध का काम करने वाला किसान, बिना बधिया किया हुआ बैल (सांढ़) और मरघट के पास का खेत हानिकारक होता है।

9. गहिर न जोतै बोवै धान। सो घर कोठिला भरै किसान।।

अथार्त- खेत को बिना गहरा जोतकर धान बोने से धान की पैदवार अच्छी होती है।

10. पुरुआ धान ना रोपो भइये, एक धान सोलह पैया।

अथार्त- पूर्वा नक्षत्र में धान नहीं रोपना चाहिये, नहीं तो एक धान में सोलह पैया (मरा हुआ धान) निकलेगा।

11. काला बादल जी डरावे, भूरा बादल पानी लावै।

अर्थात- काले बादल सिर्फ डराते हैं और वारिश नहीं करते हैं लेकिन भूरा बादल बहुत पानी बरसाता है।

12. तीन सिंचाई तेरह गोड़, तब देखो गन्ने का पोर।

अर्थात- गन्ने की अच्छी फसल पाने के लिए कमसे कम तीन बार सिंचाई और तेरह बार गुड़ाई (खुदाई) करनी चाहिए तात्पर्य यह है कि सिंचाई के साथ साथ गुड़ाई भी आवश्यक है। जितनी ही गुड़ाई होगी खेत उतना ही अधिक पानी सोंखेगा जो गन्ने की फसल को लाभ पहुँचाता है।

13. गोबर, राखी, पाती सड़े, फिर खेती में दाना पडे।

अर्थात- दो फसलों के बीच में जो समय मिलता है, उसमें खेत में गोबर, राख और फ़सलों की पत्तियाँ डालकर उसे सड़ने देना चाहिए। आज के दिन में इसे ही हमलोग ऑर्गेनिक खेती कहते हैं, जिसका ज्ञान सैकड़ों वर्ष पूर्व अपने अनुभव से इन कवियों ने अपनी कहावतों के माध्यम से दे दिया था।

15. छोड़े खाद, जोत गहराई, फिर खेती का मजा दिखाई।

अर्थात- खाद डालकर खेत की गहराई से जुताई करने पर फ़सल की अच्छी पैदावार होती है।

16. गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दुनी फली।

अर्थात- गोबर, मल और नीम की खली खेत में डालने से फ़सल की अच्छी पैदावार होती है। यह भी ऑर्गेनिक खेती का ही उदाहरण है, जिसे कवि घाघ आज से कई सौ साल पहले जानते थे।

17. सन के डंठल खेत छीटावै, तिनते लाभ चौगुना पावै।  

अर्थात- सन (पटसन का एक प्रकार) जो रस्सा या जुट बनाने के काम आता है उसकी डंठल कोमल होती है और खेत में सड़ने के बाद प्राकृतिक खाद का काम करती है, जिससे अच्छी पैदावार होती है। जब सभी किसानों को सिर्फ व्यवहारिक ज्ञान था और संस्थागत शिक्षा का अभाव था, उस समय पीढ़ियों से अर्जित अनुभव आधारित व्यवहारिक ज्ञान को जन-जन तक पहुँचाने के लिए लोक भाषा में कहावतें बहुत ही उपयोगी साबित हुई। इसे याद रखना बिना पढ़े लिखे लोगों के लिए आसान होता था तथा इसकी लोकप्रियता बढ़ जाती थी। इन कहावतों को माध्यम बनाकर कृषि और ज्योतिष ज्ञान को जन साधारण तक पहुँचाने का सफल प्रयास कवि घाघ और कवि भदूरी ने किया। इसलिए तत्कालीन समाज में उनकी लोकप्रियता बनी हुई थी।

3 thoughts on “कवि ‘घाघ’ की कहावतें”

  1. मैंने बचपन में यह कविता पढ़ी थी जो काफी खोज्ने के बाद आज मिली। अति सुंदर, बचपन की याद आ गई।

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    1. मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि आप कवि घाघ जी को ढूंढ रहे थे और वे आपको मिल गए। कवल कुमार जी आपकी खुशी से मैं भी खुश हूं।
      आपको बहुत-बहुत धन्यवाद

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  2. maha kavi ghagh ek kavi hi nahi balki ek scientist the unki likhi bate aj bhi 100% sahi sabit ho rahi hain . unke jiwan ka sahi praman aj nahi hai , hota to sarkar se guhar lagate ki unki yad me kuch karen.

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