बचपन में हम संयुक्त परिवार में रहा करते थे। उस समय हम दादी-नानी से रोज कहानियाँ सुना करते थे। आज का समय एकल परिवार का हो गया है। अब ज्यादातर परिवार के साथ दादा–दादी या नाना-नानी नहीं रहते हैं और न ही उनकी कहानियाँ होती है। आज मुझे एक कहानी याद आई जिसे हमारी दादी मुझे सुनाया करती थी। दादी से तो वैसे हमने अनेकों कहानियाँ सुनी है। आज मैं उस कहानी को लिखने की कोशिश करने जा रही हूँ जो बहुत ही मसहूर लोक कथा है। यह लोक कथा मेरे ख्याल से सभी यू.पी और बिहार के लोग बचपन में जरुर सुने होंगे क्योंकि ये अति प्रसिद्ध लोक कथा है।
एक छोटी सी चिड़िया ‘गौरेया’ अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ घोंसले में रहती थी। वह रोज सुबह उन्हें छोड़कर दाना चुंगने जाया करती थी। एक दिन वह दाना के लिए कुछ दूर चली गई वहाँ उसे बड़ी मुश्किल से दाल का एक दाना मिला। जब दाना लेकर वह लौटने लगी तब उसके मुँह का एक मात्र दाना गिरकर खूंटा (जमीन में गड़ा लकड़ी का एक टूकड़ा जो जानवरों को बांधने के लिए प्रयोग किया जाता है) में फंस गया। गौरया ने बहुत कोशिश की लेकिन दाल निकाल नहीं पाई। वह सोंचने लगी अब मेरे बच्चे क्या खाएंगे ? यह सोंचकर वह बहुत बेचैन होने लगी। जब दाल नहीं निकल पाया तो उसके मन में एक विचार आया कि अगर खूंटा को चिर दें तो दाल निकल जाएगा। यह सोचकर गौरेया बढ़ई के पास गई और सारी घटनाएँ सुनाकर बोली-
बढ़ई! बढ़ई! तू खूंटा चीर, खूंटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पीहीं का लेके परदेश जाईं।
बढ़ई बोला कि तुम्हारे एक दाल के लिए मै खूंटा चिरने नहीं जाऊंगा। चिड़िया ने बढ़ई को बहुत समझाने बुझाने की कोशिश की लेकिन बढ़ई नहीं माना। फिर चिड़िया राजा के पास गई और राजा को अपनी पूरी कहानी बताई।
राजा! राजा! बढ़ई डॉट, बढ़ई ना खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पीहीं का लेके परदेश जाईं।
तब राजा ने बोला कि तुम्हारे एक दाल के लिए मैं बढ़ई को डॉटने नहीं जाऊंगा। तू जा अपने घर। चिड़िया ने राजा को बहुत समझाने बुझाने की कोशिश की लेकिन राजा नहीं माना। फिर चिड़िया रानी के पास गई और अपनी पूरी कहानी सुनाई
रानी! रानी! तू राजा बुझाव,
राजा ना बढ़ई डांटे,
बढ़ई ना खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पीहीं का लेके परदेश जाईं।
चिड़िया की बात सुनकर रानी बोली कि इतनी सी छोटी बात के लिए मैं राजा के पास जाऊं? नहीं मैं ऐसा नहीं करूंगी। गौरइया ने रानी को बहुत समझाने बुझाने की कोशिश की लेकिन रानी नहीं मानी। तब गौरइया साँप के पास गई और अपनी पूरी कहानी सुनाते हुए विनती किया
सांप! सांप! तू रानी डंस,
रानी ना राजा बुझाव,
राजा ना बढ़ई डांटे,
बढ़ई ना खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पीहीं का लेके परदेश जाईं।
तब साँप ने गौरइया से कहा नहीं-नहीं तुम्हारे एक दाल के लिए मैं रानी को नहीं डसूंगा। मैं ऐसा नहीं करूंगा। गौरइया ने साँप को समझाने बुझाने की बहुत कोशिश की लेकिन साँप नहीं माना। तब गौरइया लाठी के पास गई और अपनी पूरी कहानी सुनाते हुए विनती किया
लाठी! लाठी! तूं सांप पीट !
सांप ना रानी डंसे
रानी ना राजा बुझावे,
राजा ना बढ़ई डांटे,
बढ़ई ना खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पीहीं का लेके परदेश जाईं।
तब लाठी ने गौरइया से कहा कि तुम्हारे एक दाल के लिए मैं साँप को मारुँ? नहीं मैं ऐसा नहीं करूंगा। गौरइया ने लाठी को समझाने बुझाने की बहुत कोशिश की लेकिन लाठी नहीं माना। तब गौरइया आग के पास गई और अपनी पूरी कहानी सुनाते हुए बोली
आग! आग ! तू लाठी जार,
लाठी ना सरप पीटे,
सरप ना रानी डंसे,
रानी ना राजा बुझावे,
राजा ना बढ़ई डांटे,
बढ़ई ना खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पीहीं का लेके परदेश जाईं।
तब आग ने गौरइया से कहा कि तुम्हारे एक दाल के लिए मैं लाठी को जलाऊँ? नहीं, नहीं मैं ऐसा नहीं करूंगा। गौरइया ने आग को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन आग नहीं माना। तब गौरइया समुन्द्र के पास गई और अपनी पूरी कहानी सुनाते हुए बोली
समुन्दर ! समुन्दर! तू आग बुझाव,
आग ना लाठी जारे,
लाठी ना सरप पीटे,
सरप ना रानी डंसे,
रानी ना राजा बुझावे,
राजा ना बढ़ई डांटे,
बढ़ई ना खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पीहीं का लेके परदेश जाईं।
तब समुन्दर ने गौरइया से कहा कि तुम्हारे एक दाल के लिए मैं आग को बुझाने जाऊँ? नहीं मैं ऐसा नहीं करूंगा। गौरइया ने समुन्दर को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन समुन्दर नहीं माना। तब गौरइया हाथी के पास गई और अपनी पूरी कहानी सुनाते हुए बोली
हाथी ! हाथी ! तू समुंद्र सोख,
समुंद्र ना आग बुझावे,
आग ना लाठी जारे,
लाठी ना सरप पीटे,
सरप ना रानी डंसे,
रानी ना राजा बुझावे,
राजा ना बढ़ई डांटे,
बढ़ई ना खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पीहीं का लेके परदेश जाईं।
तब हाथी ने गौरइया से कहा कि तुम्हारे एक दाल के लिए मैं समुंद्र को सोखने जाऊँ? नहीं मैं ऐसा नहीं करूंगा। गौरइया हाथीको समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन हाथी नहीं माना। तब गौरइया जाल के पास गई और अपनी पूरी कहानी सुनाते हुए बोली
जाल ! जाल ! तू हाथी छान,
हाथी ना समुंद्र सोखे,
समुंद्र ना आग बुझावे,
आग ना लाठी जारे,
लाठी ना सरप पीटे,
सरप ना रानी डंसे,
रानी ना राजा बुझावे,
राजा ना बढ़ई डांटे,
बढ़ई ना खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पीहीं का लेके परदेश जाईं।
तब जाल ने गौरइया से कहा कि तुम्हारे एक दाल के लिए मैं हाथीको छानने जाऊँ? नहीं मैं ऐसा नहीं करूंगा। गौरइया हाथीको समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन हाथी नहीं माना। तब गौरइया चूहे के पास गई और अपनी पूरी कहानी सुनाते हुए बोली
चूहा ! चूहा ! तू जाल काट
जाल ना हाथी छाने,
हाथी ना समुंद्र सोखे,
समुंद्र ना आग बुझावे,
आग ना लाठी जारे,
लाठी ना सरप पीटे,
सरप ना रानी डंसे,
रानी ना राजा बुझावे,
राजा ना बढ़ई डांटे,
बढ़ई ना खूंटा चीरे,
खूंटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पीहीं का लेके परदेश जाईं।
अब गौरइया की बैचेनी बढ़ने लगी थी। कहाँ जाएँ! क्या करे? कोई भी उसका साथ नहीं दे रहा था। तभी उसे एक अपने पुराने साथी चूहे की याद आई उसने सोंचा चूहा उसकी मदद जरुर करेगा। यह सोचकर गौरइया चूहे के पास गई। पंचतंत्र में हिरण्यक चूहे ने ही बहेलिये की जाल काटकर चिड़ियों को बचाया था। वह उत्सुक होकर चूहे के पास पहुँची और अपनी सभी बातें बताई। चूहे ने चिड़िया की बातें बड़े ध्यान से सुनी और कहा की चलो मैं तुम्हारी मदद करूंगा और तुरंत मदद के लिए चल पड़ा। जब चूहा जाल को काटने लगा तब जाल ने विनती करते हुए कहा
हमरा के काट ओट मत कोई
हम अपने से हाथी छानब लोई
जाल तुरंत हाथी को छानने के लिए निकल पड़ा। जाल को देखते ही हाथी बोलाकि
हमरा के छान ओन मत कोई
हम अपने से समुंद्र के सोखम लोई।
इसप्रकार हाथी समुंद्र को सोखने के लिए निकल पड़ा। हाथी को देखकर समुंद्र डर गया और बोला कि
“हमरा के सोख ओख मत कोई
हम अपने से आग बुझाईम लोई’।
अब समुंद्र आग बुझाने के लिए चल दिया। समुंद्र को देखते ही आग बोला कि
हमरा के बुझाव ओझाव मत कोई,
हम अपने से लाठी जारम लोई ।
अब आग लाठी को जलाने के लिए तैयार था जैसे ही आग लाठी को जलाने पहुंचा तो डरकर लाठी बोला कि
हमरा के जलाव ओलाव मत कोई
हम अपने से सांप के पीटम लोई।
अब लाठीसांप को मारने के लिए निकल पड़ा। जब सांप ने लाठी को देखा तो देखते ही बोला कि
हमरा के पीट ओट मत कोई,
हम अपने से रानी के डंसम लोई ।
अब सांप रानी को डंसने के लिए तैयार था और जैसे ही रानी को डंसने के लिए उनके पास गया, सांप को देखते ही रानी ने बोलाकि
हमरा के डंस ओस मत कोई
हम अपने से राजा के बुझाईब लोई।
जब रानी राजा को समझाने पहुंची तो राजा ने कहाकि
हमरा के समझाव-बुझाव मत कोई
हम अपने से बढ़ई के डॉटब लोई।
राजा बढ़ई को डाँटने के लिए उसे अपने दरबार में बुलाया तो बढ़ई हाथ जोड़ कर बोला कि
हमरा के डॉट ओट मत कोई
हम अपने से खूंटा चिरम लोई।
अब बढ़ई खूंटा चीरने के लिए राजी था।वह अपना हथियार लेकर चिड़िया के साथ खूंटा चीरने पहुंचा। बढ़ई को देखते ही खूंटा बोला कि
हमरा के चिर ओर मत कोई,
हम अपने से फाटम लोई ।
अब खूंटा स्वयं फट गया और चिड़िया अपना दाल का दाना लेकर अपने बच्चों के पास उड़ गई। जीतने वाले लोग कोई अलग काम नहीं करते हैं बल्कि वे हर काम को अलग तरीके और लग्न से करते हैं। बचपन की सुनी यह कहानी व्यवस्था में फैले अराजकता के प्रति आम नागरिक की लाचारी भी हो सकती है जो अपने भोजन के एक मात्र उपलब्ध संसाधन को पाने के लिए दर-दर भटकता है तब जाकर उसकी गुहार को कोई सुनता है। कई बार तो इस जीवन संघर्ष में पीसकर वह स्वयं ही मिट जाता है। फिर भी संघर्ष करने पर सफलता अवश्य मिलती है भले ही संघर्ष कठिन क्यों न हो।
शिक्षा : मेहनत करने वाले की कभी हार नहीं होती