हिन्दी गद्य विधा का वैश्विक स्तर पर महत्व

जन जन की है भाषा हिन्दी, जन समूह की जिज्ञासा हिन्दी ।

जन जन में रची बसी है, जन मन की  अभिलाषा  हिन्दी ।।

वैश्विकरण का शाब्दिक अर्थ होता है किसी भी स्थानीय या क्षेत्रीय वस्तुओं का विश्व स्तर पर रूपांतर होना, 21वीं शताब्दी को अगर वैश्विकरण की शदी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। आज वैश्विकरण के दौर में हिन्दी का महत्व और भी बढ़ गया है। हिन्दी सम्पूर्ण भारत की जन–जन की भाषा है और अब तो हिन्दी विश्व स्तर पर एक प्रभावशाली भाषा बनकर उभरी है। हिन्दी भाषा का एक गौरवपूर्ण इतिहास है। विश्व में सर्वप्रथम सभ्यता व संस्कृति का विकाश भारत की भूमि पर ही हुआ था। जिस उपजाऊ धरती पर ऋग्वेद, सांख्य, योग, दर्शन आदि का जन्म हुआ हो ऐसे देश की भाषा का अंदाज सहज रूप से नहीं लगाया जा सकता है। विश्व भाषा के रूप में हिन्दी का विकास उसके गुणों के कारण ही हुआ है और हो रहा है।

हिन्दी को वैश्विक भाषा का दर्जा मिलने के कई कारक हैं– हिन्दी व्यापार और व्यवसाय के लिए सहायक भाषा है। भारत दुनिया का एक बहुत बड़ा बाजार है यहाँ के सभी लोग हिन्दी में बातें करते हैं, इसीलिए हिन्दी का महत्व व्यापारियों के लिए अधिक सहायक सिद्ध होता है। आज वैश्विकरण के दौड़ में हिन्दी का महत्व और भी बढ़ गया है। हिन्दी विश्व स्तर पर एक प्रभावशाली भाषा बनकर उभरी है। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी हिन्दी का स्थान प्रथम है। आज विश्व में सबसे अधिक पढ़े जाने वाले समाचार पत्रों में आधे से अधिक हिन्दी भाषा में हैं। ‘दैनिक भास्कर’ समाचार पत्र की रोज 1 करोड़ 60 लाख प्रतियां छपती हैं। जबकि अंग्रेजी पत्र ‘टाइम्स आफ इंडिया’ की 75 लाख प्रतियां छपती हैं। इसका आशय यह है कि पढ़े–लिखे वर्ग में भी हिन्दी के महत्व को समझा जाने लगा है। भारत में सबसे अधिक बिकने वाला समाचार पत्र हिन्दी भाषा के हैं जबकि अंग्रेजी समाचार पत्र का स्थान दसवां है। आज भारतीय महाद्वीप ही नहीं बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया, मॉरीसस, चीन, जापान, कोरिया, श्रीलंका, रूस, नेपाल, खाड़ी देशों और अमेरिका तक हिन्दी कार्यक्रम उपग्रह चैनलों के जरिये प्रसारित होता है। हिन्दी के दर्शक भी भारी तादाद में हैं। हिन्दी अब नई प्रौद्योगिकी के रथ पर सवार होकर विश्वव्यापी बन रही है। कम्प्युटर युग के प्रारम्भ में कहा जाता था की अब हिन्दी पिछड़ जाएगी क्योंकि कम्प्युटर पर केवल अंग्रेजी में ही कार्य किया जा सकता है लेकिन अब स्थिति बदल गई है। ‘अंतरजाल’ के माध्यम से हिन्दी के कई वेबसाइट है। ‘यूनिकोड’ के माध्यम से कम्प्यूटर पर अब किसी भी भाषा में कार्य करना आसन हो गया है। आज ई–मेल, ई–कामर्स, ई–बुक, इंटरनेट, एस एम एस एवं वेब जगत में भी हिन्दी का प्रयोग बहुत ही सरलता से पाया जा सकता है। आज किसी भी देशी या विदेशी कंपनी को अपना कोई उत्पाद बाजार में उतरना होता है तो उसकी पहली नज़र हिन्दी के क्षेत्र पर पड़ती है। उन्हें बखूबी पता है कि हिन्दी आम लोगों के साथ–साथ उपभोक्ता की भी भाषा है। इसी के परिणाम स्वरूप धीरे–धीरे हिन्दी वैश्विक अथवा ग्लोबल बनती जा रही है। इसके अतिरिक्त, गूगल, ओरेकल, सन, आईबीएम आदि जैसी विश्वस्तरीय कम्पनियाँ अत्यंत व्यापक बाजार और भारी मुनाफे को देखते हुए हिन्दी को अधिक बढ़ावा दे रही हैं। विश्व में आज हिन्दी का विकास उसके गुणों के कारण ही हो रहा है।

भाषा संस्कृति का दर्पण है। किसी भी भाषा को देखकर उसकी संस्कृति का अनुमान लगाया जा सकता है। भारतीय संस्कृति का आधार ‘शांति’, ‘अहिंसा’ और ‘सत्य’ है। भारत की सांस्कृतिक समरसता ही इस देश की आत्मा रही है। यह समरसता विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों, रीति-रिवाजों, सामाजिक संस्थाओं, उधोग-धंधो, ज्ञान-विज्ञान आदि में व्याप्त है। साहित्यिक, धार्मिक तथा सामाजिक चेतना के लिए हिन्दी की पहचान दुसरे देशों में भी है जैसे- फ्रांस, चीन, आस्ट्रेलिया, इजरायल आदि।  यूरोपीय देशों में भी हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में बहुत महत्वपूर्ण काम किये गये हैं। इनमे फ्रांस का नाम पहले आता है। वर्तमान की बात करें तो अमेरिका के 35 विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है। इनमें प्रमुख है-  टेक्सास, हारवर्ड, होनोलूलू आदि। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्रवासी भारतीयों ने हिन्दी भाषा के प्रति निरंतर सहयोग एवं भारतीयता के प्रति अनुराग का परिचय दिया है। महात्मा गांधी के शब्दों में- ‘मेरा ये मत है कि हिन्दी ही हिंदुस्तान की राष्ट्र भाषा हो सकती है और होनी भी चाहिए।’ महात्मा गाँधी जी ने देश भर में ‘हिन्दी’ के प्रचार–प्रसार के लिए हिन्दी संस्थाओं और समितिओं का गठन किया। ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास’ की स्थापना उन्ही की प्रेरणा का फल है। फादर कामिल बुल्के के शब्दों में– ‘हिन्दी न केवल देश के करोड़ों लोगों की सांस्कृतिक और सम्पर्क भाषा है वरन बोलने और समझने वालों की संख्या की दृष्टि से दुनिया की तीसरी भाषा है।’ फादर कॉमिल बुल्के वेल्जियम के रहने वाले थे। वे हिन्दी के विद्वान और समाज सेवी थे। उन्होंने अपना विधिवत पहला शोध कार्य ‘राम कथा’ पर किया। बुल्के ने ‘राम कथा’ और ‘रामचरित मानस’ को बौद्धिक जीवन दिया। बुल्के ने अपनी थीसिस हिन्दी में लिखी थी। फादर बुल्के ने ‘संस्कृत भाषा को महारानी, हिन्दी को बहुरानी और अंग्रेजी को नौकरानी’ कहा है।

‘वैश्विकरण की एक और देन है- ‘अनुवाद’। आज अनुवाद की उपयोगिता का लाभ सबसे अधिक फिल्मों को मिल रहा है। परिणाम स्वरुप अंग्रेजी फ़िल्म ‘द ममी रिटर्न’ को 2001 में 23 करोड़ रुपयों का लाभ हुआ। इसी प्रकार कई फिल्मों का अनुवाद हिन्दी में तथा हिन्दी फिल्मों का अनुवाद कई अन्य भाषओं में हो रहा है। वैश्विकरण का जो प्रभाव भाषा पर पड़ता है वह एकतरफा नहीं है। विश्व के सभी भाषाओं पर एक दुसरे का प्रभाव है। गत पचास वर्षो में हिन्दी की शब्दों का जितना विस्तार हुआ है उतना विश्व की शायद ही किसी भाषा में हुआ हो। इस प्रकार हिन्दी हिन्दुस्तान में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के विराट फलक पर अपने अस्तित्व को आकार दे रही है। अब हिन्दी विश्व भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त करने की ओर आगे बढ़ रही है। अभी तक भारत और भारत से बाहर दस ‘हिन्दी विश्व सम्मलेन’ आयोजित हो चुके हैं। यह हिन्दी के व्यापकता की पहचान है। हिन्दी को अंतरराष्ट्रीय ऊचाई पर पहुँचाने में भारत के तीन बड़ी संस्थाओं का महत्वपूर्ण योग दान हैं। पहला – केन्द्रिय हिन्दी संसथान, आगरा । दूसरा – भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद्, नई दिल्ली जो भारतीय विदेश मंत्रालय के अधीन आता है। तीसरा – महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्व विधालय, वर्धा (महाराष्ट्र) है ।संयुक्त राज्य अमेरिका में सन 1975 ई. में हिन्दी भाषा का व्याकरण अमेरिकी निवासी ‘सैमुल कैलाग’ ने ‘हिन्दी का अनुशीलन’ तैयार किया। हिन्दी व्याकरण की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। सोवियत रूस और भारत की दोस्ती जग जाहिर है, क्योंकि इस मित्रता का आधार सांस्कृति है। महाकवि तुलसीदास के ‘रामचरित मानस’ का सफल अनुवाद ‘वेरनिन्कोव’ ने किया हैं। अन्य महत्वपूर्ण रुसी हिन्दी विद्वान वी. चेरनिगोव, वी क्रेस कोविन एवं बाबालिन है जिन्होंने पिछले कई दशकों से रूस में हिन्दी भाषा के विविध विषयों पर जैसे- आर्थिक, सामाजिक, राजनितिक पुस्तकें प्रकाशित की है। प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविधालय स्तर तक हिन्दी पढ़ाने की उतम व्यवस्था, रूस के विघटन के वावजूद आज भी सतत चल रहा है।

मॉरीसस एक हिन्दी बाहुल्य देश है। मॉरीसस की आबादी का उनहत्तर प्रतिशत लोगों की मातृभाषा हिन्दी ही है। मॉरीसस की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए वहाँ के खेल मंत्री ने कहा था– “मॉरीसस में हिन्दी के प्रति बहुत उत्साह है, हिन्दी हमारी संस्कृति, धर्म तथा उन्मुक्त चिंतन की भाषा है।” सुप्रसिद्ध लेखक डा. धर्मवीर भारती के शब्दों में– मैं संसार में मॉरीसस को विशेष महत्वपूर्ण दृष्टि से देखता हूँ क्योंकि यह एक ऐसा देश है जिसने अपनी आजादी की लड़ाई हिन्दी के सहारे लड़ी।” आज समय की मांग है कि हम सब मिलकर हिन्दी के विकाश यात्रा में शामिल हो जाए। हमारी आधुनिकता तब तक पूरी नहीं होगी जब तक हम अपनी भाषा को साथ में लेकर नहीं चलेगें। विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है, जहाँ हजारों भाषाओं, बोलियों तथा लिपियों का भारी खजाना है। इन भाषओं से हमारी विभिन्न संस्कृतियाँ और परम्पराएँ भी जुडी हुई है जो हरेक भारतीयों के सपने और उम्मीदों की धड़कने हैं। आज हम भले ही अंग्रेजी के चंगुल में फंस गए हो लेकिन हिन्दी भाषा में जो हमारे देश की मिट्टी की सोंधी–सोंधी सुगंध है वो किसी भी और भाषा में नहीं है। भारतेंदु के शब्दों में–

‘निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल।

भारत की सदियों पुरानी उक्ति है- ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ अथार्त सारा धरती हमारा परिवार है। आचार्य विनोबा भावे जी ने अभिव्यक्त किया था– ‘हिन्दी को गंगा नहीं समुंद्र बनाना होगा’। अब हमें उस दिन का अधिक इंतजार नहीं करना पड़ेगा, आज हिन्दी ने अपनी विश्व स्तरीय यात्रा पूरी कर ली है। विश्व मंच पर यह सम्मान हिन्दी को प्राप्त हो गया है। ये अलग बात है की विकाश का रथ कभी रुकता नहीं वल्कि निरन्तर अपने संघर्ष पथ पर चलता रहता है और हिन्द भी उसी मार्ग पर सदा आगे बढ़ रही है। आइए हम अपनी इस संकल्प को समझें –

हिन्दी हमारी आन है, हिन्दी हमारी शान है ।

विश्व  में हिन्दी से ही,  हमारी पहचान है।।

‘जय हिन्द’

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