सेवा में,
किन्नर गुरु 12.01.19
महोदय/महोदया,
मेरा शत्-शत् प्रणाम
माता-पिता भारतीय संस्कृति के दो ध्रुव है। जब ये दोनों मिलकर तीसरे की कामना करते है तो उनके दिल में बहुत सारे अरमान होते हैं। इसके साथ ही वे उसकी तैयारियों में लग जाते हैं। उन्हें नहीं मालूम होता है कि हमारे कोख में पलने वाला बच्चा लड़का है या लड़की। अपने संतान की आने की खुशी में उन्हें जो कुछ कहा जाता है वे वही करते हैं। माँ नौ महीने तक कई कठिनाइयों का सामना करती है। कहते हैं बच्चे के जन्म के साथ माँ का भी नया जन्म होता है।
हमें याद है जब हम छोटे थे। किसी के घर में जब बच्चा पैदा होता था तब किन्नर वहाँ नाचने-गाने आते थे और हम उस माहौल को देखकर बहुत खुश भी होते थे। उस समय हमें यह ज्ञात नहीं था कि किन्नर कौन हैं? इस तरह वे लोग सिर्फ बच्चे के जन्म पर तथा कहीं-कहीं शादी व्याह के अवसर पर ही क्यों नाचते-गाते हैं। कुछ समय के पश्चात् मेरे घर में भी मेरे छोटे भाई का जन्म हुआ तो किन्नर आए थे। उनमें से एक तो बहुत ही कम उम्र की थी। जब नाच-गाना ख़त्म हो गया तो छोटी वाली किन्नर मेरी माँ को पकड़कर रोने लगी। तब माँ ने उसे चुप कराते हुए कहा बेटा भगवान के आगे किसी का नहीं चलता है। तभी उनकी गुरु माँ धीरे से बोली चाची ये अभी-अभी आई है अपनी माँ को छोड़कर इसलिए अपनी माँ की याद करके रोने लगती है। जब वे सब चले गए तब मैं माँ से पूछी थी कि किन्नर आपको पकडकर क्यों रोने लगी। माँ बोली की वो अपनी माँ को छोड़कर आई है, शायद इसीलिए। मैंने और कई प्रश्न पूछे लेकिन माँ ने मुझे बताने से मना कर दिया लेकिन हमेशा से मेरे मन में ये प्रश्न था कि आखिर ये सब जिसके घर बच्चा होता है उसके घर में ही क्यों नाचती-गाती हैं। कारण क्या है? हमारे पड़ोस में एक चाची रहती थी उनसे भी मैंने जानने की कोशिश की लेकिन उन्होंने भी मुझे कुछ भी बताने से इनकार कर दिया। ये सब कहानी सन् 1979 की है। सिर्फ एक बात चाची बोली थी कि ये ना तो औरत होती हैं और ना ही मर्द। इसलिए इनको हिजड़ा, किन्नर आदि कहते हैं। मैं हमेशा इसी उधेड़ बुन में रहती थी कि आखिर ऐसा क्यों? वे लोग भी तो हमारे जैसे ही इंसान हैं। सिर्फ नाचना-गाना ही इनका पेशा क्यों है?
कुछ वर्षों के बाद मैं भी माँ बनी और मेरे बच्चे के जन्मोत्सव में भी वे सब फिर आईं जिसमें कुछ तो पुरानी थीं और उनमें कुछ नये लोग शामिल हो गये थे। उनके विषय में जानने की अब मेरी उत्सुकता ज्यादा बढ़ने लगी थी। मै जब भी किसी से उनके बारे में पूछना चाहती थी तो वे सब मुझसे बात नहीं करते थे और मेरी बातों को टाल देते थे। वे सब मेरे बाबूजी को ‘बाबू साहब’ कहती थीं। ‘बाबू साहब’ आपका नाती पैदा हुआ है इस बार आपसे बहुत कुछ उपहार लेना है। उन सबने बहुत नाचा-गाया और बच्चे की बलैया लिया फिर बच्चा को बाबूजी के गोद में दे दिया। बाबूजी उनके कहे अनुसार उनको उपहार दे दिए और वे सब खुश होकर चली गई।
किसी भी माँ-बाप को ये नहीं पता होता की उसका बच्चा कैसा होगा लेकिन हर माँ बाप एक स्वस्थ और सुन्दर बच्चे की कामना जरुर करते हैं। संयोग वश बच्चा अँधा, या विकलांग पैदा होता है तो लोग कहते हैं कि भगवान की यही मर्जी थी। उसे स्पेशल बच्चा मान कर स्वीकार कर लेते हैं लेकिन बच्चा अगर किन्नर पैदा होता है तो लोग उससे मुँह फेर लेते हैं। उनके मन में एक डर हो जाता है कि परिवार के लोग क्या कहेंगे? समाज क्या कहेगा? यह सब सोच कर लोग दुखी हो जाते हैं। क्यों? क्या यह बच्चा स्पेशल नहीं है? ये बच्चा तो ज्यादा स्पेशल है क्योंकि ये शिव का अर्धनारीश्वर रूप है। असल में लोग अपनी नहीं समाज की अधिक चिंता करते है। हम सब बचपन से पढ़ते आ रहे हैं कि- ‘मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है’। भारतीय दर्शन के अनुसार- समाज को प्रकृति से उत्पन्न होने वाली जीवित सत्ता माना गया है। इसके अनुसार समाज एक जैविक सृष्टी है यानि (लिविंग ऑरगैन) हैं। उदहारण के लिए मोटर कार में बहुत सारे उपकरण जोड़कर कारखाने में बनाया जाता है लेकिन घोड़ा कारखाने में नहीं बनता है। कार को चलाने के लिए बाहरी शक्ति लगानी होती है परन्तु घोड़े की अपनी आतंरिक शक्ति होती है। पौधे धरती से निकलते हैं किन्तु उनका विकास जड़ से होता है। सिर्फ फूल, पते, डालियों आदि को चिपका देने से पेड़ नहीं बन सकता है। उसी प्रकार समाज एक सम्पूर्ण शरीर है और हम सब उसके अंग है। शरीर का अस्तित्व अंगो के सहयोग पर निर्भर करता है। अगर एक अंग काम करना बंद कर दे तो शरीर का संतुलन बिगड़ जाएगा। हम सभी मानव समाज के अंग हैं लेकिन हमारे समाज के एक अंग को हमेशा से अलग कर दिया गया है जिसे हम किन्नर, हिजड़ा आदि कहते हैं। आखिर इसमें उनकी क्या गलती है? परिवार उसे रखना भी चाहे तो बाहर के लोग पड़ोसी और समाज यहाँ तक की उसको जन्म देने वाली उसकी माँ भी लोक लज्जा और समाज के डर से अपने जिगर के टुकड़े को अपने से दूर कर देती है। जहाँ उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करता पड़ता है। वे भी अपने और समाज के डर से अपने घरवालों का नाम तक नहीं लेते हैं। ये कैसा समाज है जो अपनों को अपनों से दूर कर दे। कोई भी नियम कानून भगवान नहीं बनाते हैं ये सारे नियम कानून हमारे द्वरा ही बनाया गया है। हम सब भगवान को ही दोषी क्यों ठहराते हैं? हम सब अपने स्वार्थ के लिए भगवान को भी नहीं छोड़ते हैं।
अजब विडम्बना है कि जिस देश में कंकड़ पत्थर से लेकर पशु पक्षी तक पूजे जाते हैं वहाँ इन्सान की इतनी दुर्दशा और तिरस्कार क्यों होता है? उसे जिन्दगी भर अपमान और तिरस्कार की जिन्दगी जीने के लिए विवश क्यों होना पड़ता है? उसे उस गलती की सजा क्यों दी जाती है जो उसने किया ही नहीं? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? क्या वो जिन्होंने अपने सुख के लिए उसे पैदा किया और दैवी कारणों के लिए उसे उसके हाल पर छोड़ दिया? या वो जो पूरी जिन्दगी उसी तरह के दुखों को सहने के बाद भी, उस नारकीय जिन्दगी में औरों को भी घसीट लाते हैं या हमारा समाज जो पशु, पक्षी, पेंड़, नदी और पहाड़ तो पूज सकता है उसे बचाने के लिए कई तरह का प्रयास कर सकता है लेकिन इन्सान को इन्सान समझने और समाज में उसे उसका उचित स्थान दिलाने की कभी कोई कोशिश भी नहीं करता या इस वर्ग के सभी लोग?
इस संदर्भ में सबसे हैरानी इस बात की होती है कि यह वर्ग हमेशा से हमारे समाज में हर काल में विधमान रहा है लेकिन किसी भी काल में इनके अधिकारों की बात को सामने नहीं रखा गया। इनके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, राजनीति जैसी बातों को कभी भी महत्व नहीं दी गई। ये बहुत ही अच्छी बात है कि इस समुदाय के लोग जात-पात, धर्म और गोत्र से बंधे नहीं हैं। इसलिए यदि इन्हें समाज की मुख्य धारा में लाया गया तो जातिगत संकीर्ण विचार वाले लोगों के लिए, ये लोग मिसाल साबित हो सकते हैं। मैं मानती हूँ कि हम सभी उनकी वर्तमान स्थितियों के लिए अपनी-अपनी जगह जिम्मेद्दार हैं लेकिन अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। देर से ही सही यदि अब भी हम अपनी जिम्मेदारियों को समझें तो बहुत कुछ किया जा सकता है। मेरे विचार में सभी अपनी अपनी योगदान दे सकते हैं जैसे
- माता पिता को मजबूत बनना होगा और इस वर्ग के बच्चों को भी उचित प्यार दुलार एवं शिक्षा देकर उन्हें आत्म निर्भर बनाने के प्रयास करने होंगे।
- यहाँ किन्नर गुरुओं की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण है। आप सबको ही सुधार लाना होगा। अगर किसी का बच्चा किन्नर पैदा होता है और वे लोग उस बच्चे को आप सबको देना चाहते हों तो आप सब उन्हें समझाइये कि वो अपना बच्चा अपने पास रखें। लोग ऐसा कहते हैं कि आप सब जबरदस्ती उस तरह के बच्चे को अपने में शामिल करती हैं। मै जानती नहीं हूँ, ऐसा सुना है। यदि ऐसा हो तो आपलोगों को भी अपने बिचार में बदलाव लाना होगा। आजकल कुछ लोग पैसा कमाने के लिए किन्नर बनकर बस, ट्रेन, स्टेशन आदि जगहों पर लोगों को बहुत बुरी तरह से तंग करते हैं जिससे आप सब की बदनामी हो रही है। इसलिए इस सब बातों में बदलाव लाना होगा। इस वर्ग के वरिष्ट सदस्यों, किन्नर गुरुओं को भी एक प्रण लेना होगा कि जो कुछ बुरा उनके माता-पिता, समाज या कानून ने उनके साथ किया वो इस तरह की नई पीढ़ी को उस दलदल में न घसीटें बल्कि वर्ग समूह को संयोजित करके उस तरह के बच्चों पर निगरानी रखें कि उनके साथ उनका परिवार या कानून उनके साथ कोई ज्यादती न करे और उनकी लालन पालन शिक्षा दिक्षा का उचित प्रबन्ध करे।
- कानून को भी इस वर्ग के लोगों को संरक्षण देना पड़ेगा। उन्हें विशेष वर्ग की दर्जा देकर उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए सहयोग देना पड़ेगा। उनके लिए रोजगार उपलब्ध कराना होगा और रोजगार के अभाव में उन्हें बेरोजगारी भत्ता देना होगा।
- मिडिया और साहित्यकारों की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण है। साहित्यिक जगत में समय-समय पर इस विषय पर चर्चायें जरुर हो रही हैं लेकिन मात्र इतना ही प्रयास काफी नहीं है इसे एक आन्दोलन का रूप देना होगा तभी सभी वर्ग के लोग किन्नर समाज की तकलीफों को महसूस करेंगे और उनको उनका उचित स्थान मिल पायेगा।
किन्नर का इतिहास कोई नया नहीं है पौराणिक ग्रंथों, वेदों, पुराणों, महाभारत, रामायण से लेकर इतिहास के हिन्दू मुस्लिम शासको से चली आ रही है। उस समय में भी इनको सिर्फ अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया गया लेकिन इनके लिए किसी ने नहीं सोचा। सन् 1994 में किन्नरों को मतदान की मंजूरी दी गई थी तब इनके राजनीति के रास्ते खुल गए थे। राजनीति के क्षेत्र में सफलता पाने वाली पहली किन्नर हिसार हरियाणा की ‘शोभा नेहरू’ है जो सन् 1995 में नगर निगम की चुनाव में पार्षद चुनी गई थीं। श्रीगंगानगर (राजस्थान) में भी किन्नर ‘बसंती’ पार्षद बनी थीं। सन् 2002 में मध्यप्रदेश में किन्नर विधायक महापौर थे। देश की पहली किन्नर विधायक ‘शबनम मौसी’ थी जो शाहडोल जिले से सुहागपुर विधान सभा सीट से चुनी गई थीं। रायपुर, छतीसगढ़ में सन् 2015 में निर्दलीय उम्मीवार के रूप में ‘मधु किन्नर’ ने मेयर का चुनाव जीता था। किन्नरों को समाज में उचित स्थान दिलाने के लिए कार्य करते हुए पहला मोडलिंग स्कूल खोलने वाली ‘रुद्राणी छत्री’ ने भी बहुत ही सराहनीय कार्य किया है। ‘लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी’ किन्नर अखाड़ा की गुरु ने कहा है कि अबतक जिस किन्नर को समाज में जन प्रतिनिधी के रूप में काम करने का अवसर मिला है, उसने अपना कार्य निर्विरोध और समाज हित में किया है और किसी भी किन्नर जन प्रतिनिधी के दामन पर कोई दाग नहीं लगा है। ये अपने आप में बहुत ही प्रशंसनीय बात है। इसे समाज को गम्भीरता से लेना चाहिए तथा उन्हें सामाजिक कर्यों में सम्मान जनक उत्तरदायित्व प्रदान करना चाहिए।
Awesome maasi maaa…. #FANTABULOUS…
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