में राष्ट्रीय एकता की भावना
‘राष्ट्रीय एकता’ भारत की ‘आत्मा’ है और ‘राष्ट्रीयता’ भारतियों की ‘भावना’। राष्ट्रीयता शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘नैशनलिटी’ (Nationality) शब्द का हिंदी रूपांतर है। जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘नेशियो’ (Natio) शब्द से हुई है। इस शब्द से ‘जन्म’ और ‘जाति’ का बोध होता है। राष्ट्रीयता सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक भावना है जो लोगों को एक सूत्र में बाँधती है। इसी भावना के कारण लोग अपने देश पर आने वाले संकट की स्थिति में अपना तन, मन, धन बलिदान करने के लिए तैयार रहते हैं। देश में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया है। हिंदी आज दुनिया में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। देश में 14 सितंबर को हर वर्ष हिंदी दिवस मनाया जाता है।
किसी भी देश का साहित्य वहाँ की राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक आदि परिस्थितियों के परिणाम स्वरूप बदलता रहता है। परिस्थितियाँ बदलने पर साहित्य भी उसी के अनुरूप नया रूप लेने लगता है। हिंदी साहित्य में राष्ट्रीयता की भावना आरम्भ काल से रही है। हिंदी, राष्ट्रीय चेतना के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।
गिलक्रिस्ट के अनुसार- “राष्ट्रीयता एक आध्यात्मिक भावना का सिद्धांत है, जिसकी उत्पत्ति उन लोगों से होती है जो साधारणतः एक जाति के होते है, जो एक भूखंड पर रहते हैं तथा जिसकी एक भाषा, एक धर्म, एक इतिहास, एक जैसी परंपराएँ एवं एक जैसे हित होते हैं तथा जिनके राजनीतिक समुदाय और राजनीतिक एकता के एक-से आदर्श हैं।”1
गोबिंद राम शर्मा के अनुसार- “जातियों में राष्ट्र के व्यक्तियों के साथ मिलकर रहने और सामूहिक रूप से अपने देश को उन्नत बनाने की इच्छा ही राष्ट्रीय भावना कहलाती है।”2
सन् 1000 से 1350 तक आश्रयदाताओं की गुणगान और प्रशंसा करने वाले कवि की कविताओं पर राष्ट्रीयता की मुहर लग जाती थी और उस कविता के नायक को सर्वश्रेष्ठ नायक मान लिया जाता था। समय के साथ इसमें बदलाव आया। भूषण स्वतंत्र काव्य चेतना के अंतर्गत सच्ची राष्ट्रीयता से प्रेरित होकर ऐसा काव्य लिख रहे थे, जिसे वास्तविक अर्थ में वीरकाव्य कहा जा सकता है। भूषण ने अपने समय के दो स्वातंत्र्य-चेता वीर (शिवाजी और छत्रशाल) को अपनी कविता का आलंबन बनाया। वे ‘छत्रसाल दशक’ में छत्रसाल की बरछी की प्रशंसा इसलिए करते हैं क्योंकि उसने ‘खलों’ को नष्ट किया है-
“रैयाराव चंपति कि छात्रसाल महाराज,
भूषण सकल कि बखानि बलन के।
पच्छी परछीने बर छीने हैं खलन के।।
छत्रसाल की तलवार ‘कालिका सी किलक’ है।3
कोई भी राजा किसी प्रशस्ति गायक कवि को सम्मान और संपत्ति चाहे जितनी दे दे उसे वह गौरव नहीं दे सकता था जो छत्रसाल ने भूषण को दिया। छत्रसाल ने भूषण की पालकी को अपना कंधा लगाया यह छत्रसाल और भूषण की राष्ट्रीयता को सम्मान था। भूषण मुक्तक वीर काव्य के कवि हैं। महाकवि भूषण ने तीन वीर काव्य लिखे ‘शिवराज भूषण’ ‘शिवा-बावनी’ तथा ‘छत्रसाल दशक’। ये तीनों काव्य उदात्त वीर भावना से परिपूर्ण हैं।
भारतेंदु युग से हिंदी के आधुनिक युग का प्रारंभ होता है। यहीं से आधुनिक राष्ट्र बाद का स्वर काव्य में सुनाई पड़ना शुरू हो जाता है। स्वयं भारतेंदु ने ‘भारत दुर्दशा’ नाटक लिखकर देशवासियों को देश के विषय में सोंचने के लिए विवश कर दिया। भारतेंदु अपनी ‘प्रबोधनी’ शीर्षक कविता में कृष्ण को जगाते हैं और नवीनता का अभिनन्दन करते हुए उसमें राष्ट्रीयता का समन्वय करके कहते हैं-
“डूबत भारत नाथ बेगी जागो जागो अब जागो।
आलस-दवेएहि दहन हेतु चहुँ दिशि सों लागों।।4
श्रीधर पाठक की कविता में भारत भूमि का सौंदर्य, कश्मीर सुषमा के रूप में व्यक्त हुआ है। उन्होंने भारतीय संस्कृति का गुणगान राष्ट्रीयता से ओतप्रोत होकर किया है। ‘निज स्वदेश’ कविता में वे कहते हैं-
“निज स्वदेश ही एक सर्व-पर ब्रह्म-लोक है,
निज स्वदेश ही एक सर्व-पर अमर-लोक है।
‘बलि बलि जाऊं’ कविता में वे भारत पर अपने आप को सौंप देने के लिए कहते हैं –
“भारत पे सैयाँ मैं बलि-बलि जाऊँ,
बलि-बलि जाऊं हियरा लगाऊँ
राष्ट्रीयता का प्रचंड स्वर मैथिलीशरण गुप्त की भारत-भारती में भी मिलती है। कवि सबको साथ मिलकर इस समस्या पर बिचार करने का आह्वान करते हैं-
“हम कौन थे, क्या हो गए, और क्या होंगे अभी।
आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएँ सभी।।5
मैथिलीशरण गुप्त का आधुनिक हिंदी काव्य में एक विशेष स्थान है। राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत उनकी रचनाओं के कारण उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ का उपाधि दिया गया था। उनकी अन्य रचनाएँ यशोधरा, जयद्रथ, साकेत, गुरुकुल आदि है। छायावादी कवियों की कविताओं में भी भारत के राष्ट्रीय जागरण एवं स्वतंत्रता प्रेम की शंखनाद सुनाई देता है। छायावादी युग में राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम अपने यौवन पर था। रॉलेन एक्ट का दमन, जलियावाला बाग़ काण्ड इसी युग की घटना है। महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन शुरू किया, लाला लाजपत राय ने ‘साइमन कमीसन’ का बहिष्कार करने के लिए आन्दोलन किया भगत सिंह को फांसी हुई थी। इस स्थिति से कवि अछूते कैसे रह सकते थे? ऐसी स्थिति में सभी छायावादी कवि अपने काव्यों में राष्ट्रीय चेतना का संदेश देने लगे। निराला के ‘वर दे वीणा वदनी! वर दे’, ‘भारती जय विजय करे’, ‘जागो फिर एक बार’, प्रसाद जी के ‘चन्द्रगुप्त’ नाटक में ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’, ‘हिमाद्री तुंग-श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती’ आदि कविताओं में राष्ट्रीयता की भावना प्रशस्त होने लगी। इस समय राष्ट्रीयता को मुख्य प्रवृति के रूप में अपनाने वाले अनेक कवि हुए जैसे- बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल सिंह ‘नेपाली’, सोहनलाल द्विवेदी, हरिकृष्ण प्रेमी, जगन्नाथ प्रसाद ‘मिलिंद’, श्याम नारायण पांडे, उदयशंकर भट्ट, केदारनाथ मिश्र आदि कवियों ने भी राष्ट्रीयता की भावना से काव्य को संपन्न किया। इसी प्रकार राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत ‘एक भारतीय आत्मा’ कहलाने वाले कवि माखनलाल चतुर्वेदी की कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ में देश पर बलिदान होने की प्रेरणा है। यह राष्ट्रीय भाव की अमर रचना है-
“चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊं,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊं।।
मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढाने, जिस पथ जाए वीर अनेक।।”6
सुभद्रा कुमारी ‘चौहान’ भी राष्ट्रीय आंदोलनों की नेता रहीं है। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध कविता झांसी की रानी में देश भक्तों का गुण गान करते हुए कहा है-
“दूर फिरंगी को करने कि सबने मन में ठानी थी,
चमक उठी सन संतावन में वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी।”7
प्रत्येक भारतियों को गर्व है कि वह भारत की भूमि पर जन्म लिया है। उसकी यह भावना देश प्रेम के रूप में दृष्टिगोचर होती है। निराला ने भी मातृभूमि के प्रति अपनी अगाध प्रेम को प्रकट करते हुए ‘भारती जय विजय करें’ में लिखा है-
“भारती जय विजय करें
कनक शस्य कमल करें।8
स्वतंत्रता संग्राम में तीब्रता के फलस्वरूप राष्ट्र प्रेम और देश भक्ति आदि विषयों की प्रधानता और बढ़ गई। हिंदी कवि नवजागरण से प्रभावित होकर राष्ट्रीयता के गीत लिखे। भारतेंदु युग में राष्ट्र से संबंधित कुछ भी लिखा जाता था तो रचनाओं को जब्त कर दिया जाता था और कवियों को क्रांतिकारी नाम देकर उसे जेल में डाल दिया जाता था। राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत काव्य लिखने की परंपरा द्विवेदी युग में आरम्भ होकर अपनी चरम शिखर तक पहुँच गई। संक्षेप में कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता आन्दोलन में जहाँ लाखों योद्धाओं ने अपनी प्राणों की आहुति देकर देश की रक्षा किया वहीं हिंदी साहित्य के साहित्यकार भी इस दौड़ में पीछे नहीं थे और अपनी लेखनी का जादू निरंतर चलाते रहे।
सन्दर्भ ग्रन्थ:
1. हिंदी कविता में राष्ट्रीय भावना, विद्यानाथ गुप्त, पृष्ठ सं – 6
2. ‘मधुमती’ सितंबर पृष्ठ सं. – 10
3. भूषण ग्रन्थावली
4. भारतेंदु – ‘प्रबोधनी’
5. भारत-भारती, वर्तमान खंड, मैथिलीशरण गुप्त पृष्ठ सं. – 10
6. ‘पुष्प की अभिलाषा’, माखनलाल चतुर्वेदी
7. झांसी कि रानी, सुभद्रा कुमारी चौहान
8. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, ‘गीतिका’ कविता से