गणेश चतुर्दशी का त्योहार भारत के सभी राज्यों में अपने-अपने विधि अनुसार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पुरानों के अनुसार यह त्योहार गणपति बाप्पा के जन्मदिन के शुभ अवसर पर मनाया जाता है। महाराष्ट्र में ‘गणेश पूजा’ जगत प्रसिद्ध है। यह उत्सव भाद्रपद मास की चतुर्थी से लेकर अनन्त चतुर्दशी तक मनाया जाता है। गणेश जी को अनेक नामों से जाना जाता है जिसमें गजानन, गौरीनंदन, गणपति, गणनायक, सिद्धिविनायक, शंकरसुवन, लम्बोदर, महाकाय, विनायक, एकदंत, पार्वतीनंदन, विघ्नेश, मोदकदाता, गजवदन आदि अधिक लोकप्रिय हैं। भगवान गणेश सब देवो में प्रथम पूज्य हैं अतः किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले विघ्नहर्ता शुभकर्ता गणेश जी की आरधना बहुत जरुरी है ताकि वह कार्य निर्विघ्न संपन्न हो। गणेश जी के विषय में बहुत कहानियाँ मशहूर हैं फिर भी लक्ष्मी जी के साथ उनकी पूजा क्यों होती है ये बहुत लोग नहीं जानते हैं।
हम सभी जानते है कि विघ्नहर्ता गणेश भगवान भोले शंकर और माता पार्वती के पुत्र हैं। शास्त्रों के अनुसार लक्ष्मी जी ‘धन’ की देवी हैं। भगवान गणेश माता लक्ष्मी जी के ‘दत्तक-पुत्र’ हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार लक्ष्मी जी को स्वयं पर अभिमान हो गया कि सारा जगत उनकी पूजा करता है और उन्हें पाने के लिए लालायित रहता है। उनकी इस भावना को भगवान विष्णु समझ गए। भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी का घमण्ड व अहंकार ध्वस्त करने के उद्देश्य से उनसे कहा कि ‘देवी भले ही सारा संसार आपकी पूजा करता है और आपको पाने के लिए व्याकुल रहता है किन्तु आपमें एक बहुत बड़ी कमी है। आप स्त्री के रूप में अभी तक अपूर्ण हैं।’ जब माता लक्ष्मी ने अपनी उस कमी को जानना चाहा तो विष्णु जी ने उनसे कहा कि आप नि:सन्तान होने के कारण अपूर्ण है। जब तक कोई स्त्री मां नहीं बनती तब तक वह पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकती है। यह जानकर माता लक्ष्मी को बहुत दु:ख हुआ। माता पार्वती के दो पुत्र थे। लक्ष्मी जी ने अपनी पीड़ा अपनी सखी पार्वती जी को बताई और उनसे उनके दो पुत्रों में से गणेश को उन्हें गोद देने को कहा। पार्वती जी जानती थी कि लक्ष्मी जी एक स्थान पर अधिक समय तक नहीं रह सकती हैं। इसलिए वे बच्चे की देखभाल अच्छे से नहीं कर सकती हैं लेकिन माता लक्ष्मी का दु:ख दूर करने के उद्देश्य से पार्वती जी ने अपने पुत्र गणेश को उन्हें गोद दे दिया। इससे लक्ष्मी माँ बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने माता पार्वती से कहा कि वे गणेश का पूरा ध्यान रखेंगी तभी से भगवान गणेश माता लक्ष्मी के ‘दत्तक-पुत्र’ माने जाने लगे। गणेश को पुत्र रूप में पाकर माता लक्ष्मी अतिप्रसन्न हुईं और उन्होंने गणेश जी को यह वरदान दिया कि जो भी मेरी पूजा के साथ तुम्हारी पूजा नहीं करेगा मैं उसके पास नहीं रहूंगी। इसलिए सदैव लक्ष्मी जी के साथ उनके ‘दत्तक-पुत्र’ भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है।