आरती जगजननी मैं तेरी गाऊं ।।2।।
तुम बिन कौन सुने वरदाती।
मैं जाकर किसको विनय सुनाऊं।
आरती जगजननी मैं तेरी गाऊं॥आरती॥
असुरों ने देवों को सताया।
तुमने रूप धरा महामाया।
उसी रूप का मैं दर्शन चाहूँ ॥आरती॥
रक्तबीज मधु कैटब मारे।
अपने भक्तों के काज सँवारे।
मैं भी तेरा दास कहाऊं ॥आरती॥
आरती तेरी करूँ वरदाती।
हृदय का दीपक, नैयनो की बाति।
मैं निसदिन प्रेम की ज्योति जगाऊं ॥आरती॥
ध्यानु भगत मैया तेरा यश गावै।
जो ध्यावै माँ, सो फल पावै।
मैं भी दर तेरे सीस झुकाऊं ॥आरती॥
आरती तेरी माँ जो कोई गावै ।
चमन अमन सुख सम्पति पावै ।
मैया जी के चरण कमल रज चाहूँ ॥आरती॥
तुम बिन कौन सुने वरदाती।
किस को जाकर विनय सुनाऊं ॥आरती॥