सात समन्दर पार (कहानी)

ऐसा लोग कहते हैं कि जोड़ी भगवान के घर से ही बनकर आता है। कहाँ तक सच है? हम सब को पता नहीं। एक मास्टर जी अपने परिवार के साथ शहर में रहने के लिए गए। मास्टर जी की पत्नी एक सुशील और धार्मिक विचार की महिला थी। उनके दो बेटे थे। बड़े का नाम ‘प्रभात’ और दुसरे बेटे का नाम ‘मानव’ था। दोनों बेटे सुशील, संस्कारी और पढ़ने-लिखने में अच्छे थे। मास्टर जी जिस विधालय में शिक्षक थे, उनके बच्चे उसी विधालय में पढ़ते थे। हर माता-पिता की इच्छा होती है कि उसका बच्चा अच्छे अंको से पास करे। शिक्षक और पिता होने के नाते मास्टर जी की भी यही इच्छा थी। सभी माँ बाप की तरह वे भी चाहते थे कि उनके बच्चे भी कक्षा में उत्तम अंको से पास करें। मास्टर जी का बड़ा बेटा 11वीं कक्षा में और छोटा बेटा 9वीं कक्षा में पढ़ता था। कुछ समय के बाद बच्चों की वार्षिक परीक्षा होने वाली थी। मास्टर जी बोले कि पढ़ने में ध्यान लगाओ, मेहनत करो, इधर-उधर घूमना फिरना बंद करो। माँ भी बच्चों को समझाती थी कि जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए शिक्षा अति आवश्यक है। परीक्षा का समय आया और बच्चों ने परीक्षा दिया। रिजल्ट निकलने वाला था। बच्चे खुश होकर विधालय गए। दोनों बच्चे अच्छे अंकों से उतीर्ण भी हुए। बड़ा बेटा प्रभात के 75 प्रतिशत और मानव के 90 प्रतिशत अंक थे। माँ तो खुश थी लेकिन मास्टर जी प्रभात के नंबर से खुश नहीं थे। दोनों बेटों को बुलाकर उन्होंने समझाया और गुस्सा भी हुए। मानव तो चुपचाप उनकी बातों को सुनता रहा लेकिन बड़ा बेटा प्रभात मास्टर जी के बातों का कुछ उल्टा जबाब दे दिया। उसके बातों से क्रोधित होकर मास्टर जी ने उसे एक तमाचा जड़ दिया। प्रभात ने उस समय तो कुछ भी नहीं कहा लेकिन कुछ दिनों के बाद वह घर छोड़कर कहीं चला गया। प्रभात ने किसी से कुछ भी नहीं कहा। जब रात तक घर नहीं लौटा तो सबलोग घबड़ाने लगे। प्रभात के दोस्तों से पता करने पर यह पता चला कि उसने अपने दोस्तों को भी कुछ नहीं बताया था। दो दिन हो गए, किसी को कुछ भी पता नहीं चला। आखिर प्रभात कहाँ गया? पड़ोसी, रिश्तेदार, घरवाले सभी परेशान हो रहे थे लेकिन प्रभात का कहीं पता नहीं चला। मास्टर जी
पुलिस चौकी गए और उन्होंने सारी घटनाएँ बताकर रिपोर्ट लिखवा दिया। पुलिस के द्वरा भी छान-बीन किया गया लेकिन प्रभात का कहीं भी पता नहीं चला। दिन, महीने, साल गुजरने लगे, प्रभात को ‘धरती निगल गई या आसमान’ किसी को समझ नहीं आ रहा था।

कई वर्ष बाद एक दिन मास्टर जी अपने घर में सब के साथ बैठकर बातें कर रहे थे कि अचानक फोन की घंटी बजी। मास्टरजी जब फोन उठाने लगे तो उन्होंने देखा कि यह नंबर तो बाहर के किसी देश का है। उन्होंने जैसे ही फोन उठाया, आवाज आई बाबूजी मैं प्रभात बोल रहा हूँ! इतने सालों के बाद अपने बेटे की आवाज सुनकर मास्टर जी के आँखों से दुःख, दर्द और करुणा के आंसू बहने लगे मास्टर जी बोले, बेटा तू कहाँ है? प्रभात बोला, बाबूजी आप घबड़ाइए नहीं मैं ठीक हूँ और जल्दी ही आप सबसे मिलने आ रहा हूँ। बेटा तुम वहाँ कैसे पहुंचे? प्रभात बोला, बाबूजी ये सब कहानी मैं वहाँ आने के बाद आप सब को बताऊंगा। मास्टर जी बोले कि तुम कब आ रहे हो? प्रभात बोला बाबूजी मैं 15 दिन बाद आऊंगा। माँ और मानव से भी बात करा दीजिए। बेटे की आवाज सुनते ही माँ के आँखों से आंसू बहने लगे। माँ प्रणाम! प्रभात बोला, माँ आप रोना नहीं आप के अशिर्वाद से मैं बिल्कुल ठीक हूँ। माँ बेटा कुछ देर तक बातें करते रहे। माँ बातें करती जा रही थी और उसके आँखों से झरने बहते जा रहे थे। समझ में नहीं आ रहा था कि ये खुशी के आँसू थे या दुःख के। कुछ देर तक बातें करने के बाद प्रभात ने कहा माँ मानव से भी बात करा दीजिए। बाबू! मानव अभी बाहर गया हुआ है। हम सब उसे ये खुश खबरी दे देंगे। माँ पूछी बेटा पहले ये बताओ कि तुम कब तक आओगे? प्रभात ने माँ को बताया कि वह 15 दिनों बाद घर पहुँचेगा। फिर माँ को प्रणाम करके, उनसे अनुमति लेकर प्रभात ने फोन रख दिया। इतने दिनों बाद प्रभात की खबर, वह भी उससे बात-चित करने के बाद भी माँ बाप को सबकुछ सपना जैसा लग रहा था। समय बीतने लगा और पलक बिछाए परिवार के लोग उस दिन की प्रतीक्षा करने लगे। आखिरकार वो दिन भी आया जब प्रभात घर लौट आया। 

इतने वर्षों बाद जब प्रभात अपने घर पहुँचा तो घर में खुशियों का ठिकाना नहीं था। सभी पड़ोसी और रिश्तेदारों की भीड़ लगी थी। प्रभात अकेले नहीं था उसके साथ उसकी विदेसी पत्नी ‘एलीना’ भी साथ आई थी। सभी लोग प्रभात को कम एलीना को ही ज्यादा देख रहे थे और उसे बहुत आशिर्वाद दे रहे थे। मास्टर जी भी अपनी बहु और बेटे को देखकर फुले नहीं समा रहे थे। जब सभी लोग मिलजुल कर चले गए तब प्रभात ने मास्टर जी को सारी बातें बताई कि वह वहाँ कैसे पहुँचा।

बाबुजी! मैं गुस्से में जब घर छोड़कर गया तब सोंचा कि मुझे अब वापस घर नहीं जाना है। यह सोंचकर मैं मुम्बई चला गया। वहाँ मैं एक होटल में गया और मालिक से मिलकर बोला कि सर मैं घर छोड़कर आया हूँ और अब वापस घर नहीं जाना चाहता हूँ। आप मुझे कोई भी काम दे दीजिए मैं कोई भी काम कर सकता हूँ। होटल का मालिक मेरी बातों से प्रभावित होकर मुझे अपने होटल में ही काम दे दिया। उस होटल में कुछ विदेशी लोग भी आया करते थे। एक दिन एक विदेशी व्यक्ति मेरे स्वभाव से प्रभावित होकर मुझसे कुछ पूछा। मैं ने बहुत ही सहजता से इंग्लिश में ही उसको जबाब दिया। मेरी बातों से खुश होकर विदेशी व्यक्ति बोला कि बहुत अच्छा है। विदेशी व्यक्ति भारत में किसी काम से आया हुआ था और उसी होटल में रुका था। एक दिन उस विदेशी व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि क्या तुम मेरे साथ इंग्लैण्ड चलोगे? हम तुम्हें वहाँ पर अच्छी नौकरी दे सकते हैं। मैं ने हाँ कर दिया। दुसरे दिन विदेशी ने होटल के मालिक के पास जाकर पूछा कि मैं प्रभात को अपने साथ इंग्लैण्ड ले जाना चाहता हूँ? मैं इसकी जिंदगी बना दूंगा। क्या तुम तैयार हो? होटल का मालिक कई वर्षों से उस विदेशी को जानता था क्योंकि वह जब भी मुंबई आता था तो उसी होटल में ठहरता था। विदेशी मुझे अपने साथ इग्लैंड ले गया। वहाँ उसने मुझे अपना बिजनेश, घर, सबकुछ दिखाया। उसने अपनी बेटी से भी मिलवाया जिसे वह अपना ‘दिल’ कहता था। धीरे-धीरे मैं उनलोगों से घुल मिल गया और उनके सभी कामों को समझने और करने लगा। वे लोग मेरे काम से बहुत खुश थे। उसकी बेटी ‘एलिना’ भी मेरे काम और व्यवहार से बहुत खुश थी। मैं और एलिना एक दुसरे को पसन्द करते थे। यह बात ‘डेविड’ को मालूम था और वह भी यही चाहता था। सबलोग बहुत खुश थे। एक दिन मैं ने कहा सर! आप मुझे इजाजत दें, तो मैं एक बार अपने माँ-बाबुजी से मिलने भारत जाना चाहता हूँ। डेविड ने कहा हाँ, क्यों नहीं। जरूर जा सकते हो लेकिन क्या तुम वहाँ अकेले ही जाओगे? एलिना को अपने साथ नहीं ले जाओगे? मुझे तो समझ में नहीं आ रहा था लेकिन हकीकत सामने थी। डेविड ने एलिना से मेरे विवाह का प्रस्ताव रखा था और मैंने डेविड के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था। डेविड ने हम दोनों की शादी करवा दिया और हमलोगों को भारत भेजने के लिए राजी भी हो गया। एलिना डेविड की इकलौती बेटी है और उसके पालन पोषण के लिए उसने दूसरी शादी नहीं की थी। बेटी की शादी करने के बाद एलिना को खुश देखकर डेविड बहुत खुश रहता था। दोनों की शादी हो गई और डेविड की अनुमति लेकर प्रभात अपने पत्नी एलिना के साथ भारत अपने माता पिता से मिलने आया था।    

एलिना भारत में आकर प्रभात के माता पिता से मिलकर बहुत खुश थी। सब लोग एक साथ बहुत खुश थे।

दो दिल मिले दो संस्कृति मिली दो सपनों ने श्रृंगार किया ।
दो सुदूर देश के पथिकों ने संग संग चलना स्वीकार किया ।।

कुछ दिनों तक साथ रहने के बाद प्रभात और एलिना वापस इंग्लैण्ड जाने के लिए तैयार होने लगे। मास्टर जी बहुत भावुक हो गये और प्रभात से बोले कि बेटा मैं उस दिन अपने क्रोध पर नियन्त्रण नहीं रख पाया और तुम्हारे ऊपर हाथ उठा दिया। मुझे अपनी गलती का एहसास तब हुआ जब तुम घर छोड़कर चले गये। हमने तुम्हें सब जगह ढूँढने की कोशिश किया और जब तुम्हारा कहीं पता नहीं चला तब हम हारकर बैठ गये लेकिन ये दिन हमारे ऊपर कितना भारी रहा, इसे हम तुम्हें नहीं समझा सकते हैं फिर भी पिता के डाँटने की इतनी बड़ी सज़ा होगी, ये हमने कभी सोंचा ही नहीं था। मास्टर जी ने सहज ही हाथ जोड़ दिए और भरे गले से रूंधे आवाज में बोले कि बेटा मेरी उस गलती के लिए मुझे माफ़ कर देना। प्रभात पिता के चरणों में गीर पड़ा और बोला पिताजी आपका वो थप्पड़ मेरे जीवन का सबसे बड़ा आपका आशीर्वाद साबित हुआ, जिसने मेरी तकदीर बदल दी। गलती तो मेरी थी कि आपलोगों को अपनी खबर देने में इतनी देर कर दी, आप मुझे माफ़ कर दीजिए। पिता ने पुत्र को उठाकर गले से लगा लिया। दोनों बहुत देर तक ऐसे ही गले लगे रहे फिर दोनों बैठकर बहुत देर तक बातें करते रहे। कुछ दिनों तक परिवार के साथ रहने के बाद प्रभात और एलिना वापस इंग्लैण्ड चले गये।

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