‘प्रेम’- इस ढाई अक्षर के प्रेम शब्द को परिभाषित करना अत्यंत ही कठिन है। ‘प्रेम’ शब्द का कोई रंग, रूप या आकर नहीं होता है। इसे हम सब भावना के द्वरा ही महसूस करते हैं। प्रेम को ‘रूप’ और ‘आकर’ हम मनुष्य ही दे सकते हैं जैसे माँ-पिता, भाई-बहन, दादा-दादी, चाचा-चाची, प्रेमी-प्रेमिका के प्रेम सम्बन्ध आदि। इसे कई रूप में देखा जा सकता है। कई दार्शनिकों ने अपने-अपने मतानुसार प्रेम को परिभाषित किया है-
यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो के शब्दों में– ‘प्रेम एक दिमागी बीमारी है’।
मदर टरेसा के शब्दों में- ‘प्रेम एक ऐसा फल है जो हर जगह हर मौसम में मिलता है और इसे हर व्यक्ति प्राप्त कर सकता है’। प्रेम की अनुभूति अपने आप में अनोखी और अद्वितीय होती है। यह कब, कहाँ, कैसे और किससे हो जाए पता ही नहीं होता। इन सभी प्रश्नों का उत्तर ना तो किसी ने दिया है, ना कभी देगा और ना ही दिया जा सकेगा। आदि-अनादि काल से ही संत, महात्माओं, कवियों, लेखकों, कलाकारों और मनोवैज्ञानिकों आदि ने अपने-अपने विचार को कविता, कहानी, लेख, गीतों, कलाकृतियों, के द्वरा कई रूप दिया है। यह ‘प्रेम’ अपने आप में अनोखी और अनूठी है।
ये प्रेम कहानी एक ही कक्षा में पढ़ने वाले पाँच दोस्तों की है। इसमें दो लड़कों और तीन लड़कियों की एक मित्र मंडली थी। राज, सुमन, सुधा, किरण और चंदा। पाँचों अपनी दोस्ती के लिए एक उदहारण थे। ये सभी मिलकर हर काम को एकसाथ करते थे। पढ़ाई-लिखाई, खाना-पीना, कहीं पर भी आना-जाना आदि। उनमें आपस में कभी भी कोई अनबन नहीं होती थी। वे सभी मिलकर विधालय और सहपाठियों का भी हर सम्भव मदद किया करते थे। अपने अच्छे स्वभाव और व्यवहार के कारण वे कक्षा के सभी विद्यार्थियों और शिक्षकों की नजरों में भी रहते थे। समय बीतता गया और उनकी आपसी दोस्ती भी बढ़ती गई। दो वर्ष बाद उन दोस्तों में से एक लड़का और एक लड़की की आपस की दोस्ती प्यार में बदल रहा था। वे दोनों एक दुसरे को चाहने लगे थे। इस बात का पता बाकी लोगों को भी कुछ दिनों बाद महसूस होने लगा। कहते हैं कि प्यार हो या खुशबू छिपाने से नहीं छुप सकता है। एक दिन राज ने अपने दोस्त सुमन से कहा ‘सुमन मुझे सुधा बहुत अच्छी लगती है’, वैसे तो तीनों लडकियाँ स्वभाव से अच्छी हैं लेकिन मैं जो कहना चाहता हूँ, उसे समझो मैं सुधा को चाहने लगा हूँ। वैसे भी सुधा सबसे सुन्दर थी। कद में लम्बी, नाक-नक्श भी लंबे, लम्बे घने बाल, बड़ी-बड़ी आँखें आदि। सच में जरुर भगवान ने उसे फुर्सत में ही बनाया होगा। दुसरी दो लड़कियों का नाम चंदा और किरण था। वे उन दोनों को शुरू से ही भाई कहती थीं। बचपन से ही सिर्फ सुधा राज और सुमन को नाम से बुलाती थी। एक बार वे सब मिलकर फिल्म देखने गए। एक बात तो थी कि सुमन और राज हमेशा सब दोस्तों की हर तरह से सुरक्षा का ध्यान रखते थे। फिल्म देखने के बाद सब अपने–अपने घर चले गए। उसी दिन राज ने सुधा को एक ख़त दिया था। दुसरे दिन जब सब मिले तो इस बात का पता चला। सब बहुत खुश हुए और दोनों को मुबारक बाद कहकर मजाक भी उड़ाने लगे। धीरे-धीरे दोनों का प्यार बढ़ने लगा। एक बात और थी कि वे दोनों कभी भी अकेले नहीं मिलते थे। जब दोनों को मिलना होता था तो सब दोस्त हमेशा एक साथ ही मिलते थे। इस प्यार में कोई लालच या धोखा नहीं था। सच्चे प्यार में भावना, एहसास और भरोसा होता है, जो राज और सुधा के प्यार में भी दीख रहा था। उस वर्ष इन्टर का अंतिम वर्ष चल रहा था। सभी के मन में विचार आ रहा था कि इन्टर की पढ़ाई के बाद पता नहीं कब, कौन, कहाँ और किस महाविधालय में अपना नामांकन लेगा। अब फ़ाइनल परीक्षा के सिर्फ दो महीने बचे थे। सभी ने प्रण लिया कि अब हम सभी सीरियसली पढ़ाई करेंगे और सबने परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी थी। सभी ने परीक्षा दिया और सेकेण्ड डिवीज़न में पास किए। सिर्फ सुधा फर्स्ट डिवीज़न में पास हुई थी। सभी अपने-अपने रिजल्ट से खुश थे। सबको पता था कि जितना पढ़ाई में मेहनत किए हैं, उस के अनुसार जो भी नम्बर आया है, वो सही है। उन दिनों वैसे भी इतना कम्पटीशन नहीं था। पढाई ‘टेंसन फ्री’ होती थी। रिजल्ट के कुछ दिनों बाद सब लोग डिग्री में नामंकन लेने में व्यस्त हो गए। सुधा ने दुसरे शहर के ‘वोमेंस कॉलेज’ में, राज और सुमन उसी शहर के एक अच्छे कॉलेज में तथा किरण ने भी उसी शहर के ‘वोमेंस कॉलेज’ में नामांकन लिया। अब सब लोग अपने-अपने काम में व्यस्त हो गये। कभी-कभी ही कोई किसी के घर आता-जाता था, तब सबका समाचार एक दुसरे से मिल जाता था। उस समय आज की तरह मोबाईल नहीं होता था। ‘लैंड लाइन’ फोन होते थे लेकिन वह भी सबके घर में नहीं था। उस समय सिर्फ किरण के घर में सरकारी फोन था। चंदा कभी-कभी सुधा से मिलने जाती थी। डिग्री के बाद सब का सम्पर्क कम होने लगा था। सब एक ही शहर में थे लेकिन मिल नहीं पाते थे। इस बीच चंदा की शादी हो गई थी और उसको एक बेटी भी हो गई थी। सुधा को कहीं से पता लगा कि चंदा अपने ससुराल से घर आई है। सुधा, चंदा से मिलने गई। दोनों में बहुत सारी बातें हुई और यह पता चला की राज और सुधा शादी करना चाहते हैं। सुधा की माँ इस शादी के लिए तैयार नहीं थी क्योंकि दोनों अलग-अलग जाति के थे, जबकि राज के घर वाले ऊँची जाति के होने के बावजूद भी इस शादी के लिए तैयार थे। राज के घरवाले अपने बेटे की खुशी में ही खुश थे। अगर राज और सुधा चाहते तो छुप कर शादी कर सकते थे लेकिन परिवार के बदनामी के डर से दोनों कोई भी गलत कदम नहीं उठाना चाहते थे। सब मिलकर सुधा के घर वालों को बहुत समझाने और मनाने की कोशिश किया लेकिन सुधा की माँ इस शादी के लिए तैयार नहीं थी। उसके पिता इस शादी के लिए राजी थे लेकिन घर में उनकी एक भी बात नहीं चलती थी। धीरे-धीरे सभी लोग अपनी-अपनी दुनियाँ में व्यस्त हो गए। किरण अपने गांव चली गई, चंदा अपने ससुराल चली गई। सुमन की नौकरी बैंक में हो गई थी और उसे ट्रेनिंग के लिए दुसरे शहर जाना पड़ा। अब किसी का कोई समाचार नहीं मिलता था। महीनों और सालों के बाद मिलना हो पाता था। चंदा को कभी-कभी कुछ बातों का पता चल जाता था। उसके माता-पिता भी उसी शहर में रहते थे। एक वर्ष बाद चंदा अपने माँ के घर आई। अपने घर वालों से सबके बारे में पूछी। घर वाले बोले कि पता नहीं आजकल राज और सुमन कुछ दिनों से नहीं आ रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह थी कि सभी को एक दुसरे के घर वाले भी जानते थे। इसलिए सबको सभी के विषय में जानकारियाँ मिल ही जाती थी। चंदा को अपने छोटे भाई से पता चला कि राज की दिमागी हालत अब ठीक नहीं है। यह सुनकर चंदा को बहुत दुःख हुआ वह पूछी कैसे क्या हुआ उसको? उसके छोटे भाई ने कहा कि पता नहीं लेकिन मुझे कहीं से पता चला कि वो पागल हो गये हैं। यह बुरी खबर सुनकर चंदा राज के घर गई। वहाँ सिर्फ राज की बड़ी भाभी थी। भाभी और चंदा दोनों रोने लगे। बहुत देर तक दोनों रोते रहे फिर भाभी बोली कि सुधा के कारण राज नशा करने लगा था। चंदा भाभी से पूछी कि राज कहाँ है? तब भाभी ने बताया कि वह एक जगह पर नहीं रहता है, हमेशा बाहर चला जाता है। अपने आप से कुछ-कुछ बोलता रहता है और इधर-उधर घूमते रहता है। अब तो वह किसी से बातें भी नहीं करता है और लोगों को पहचानता भी नहीं है। चंदा बहुत दुखी होकर अपने घर चली गई। चंदा यह सब सुनकर बहुत परेशान हुई और सुधा के घर गई लेकिन वहाँ सुधा के घर पर ताला लगा था। उसने पड़ोसियों से पूछा कि ये लोग कहाँ हैं? पड़ोसियों ने कहा कि वे सब यहाँ से कहीं और चले गए। कहाँ गए यह किसी ने नहीं बताया। चंदा ने बहुत कोशिश किया कि कहीं से पता चले कि सुधा कहाँ है लेकिन उस समय कुछ भी नहीं पता चला। कुछ दिनों बाद चंदा अपने पति के साथ सुमन के घर गई। सुमन ने बताया कि अब सुधा बहुत अकेले पड़ गई है। आजकल किसी डांस शिक्षिका से डांस सीखती है। सुमन से उस डांस शिक्षिका का पता लेकर चंदा अपने पति के साथ उस डांस शिक्षिका के घर भी गई। चंदा ने सुधा के विषय में पूछा कि क्या सुधा आपके यहाँ डांस सीखती है? इसपर उन्होंने कहा कि हाँ वो मेरे यहाँ डांस सीखती थी लेकिन अब तो यहाँ से कहीं और चली गई। उन्होंने बताया कि सुधा ने हमें मना किया है कि उसके बारे में किसी को भी कोई जानकारी न दें। चंदा ने बहुत मिन्नतें किया कि कम से कम उसका फोन नंबर ही दे दीजिए’ वो मेरी बेस्ट फ्रेंड है लेकिन डांस शिक्षिका ने कुछ भी सूचना देने से इनकार कर दिया। शिक्षिका बोली कि सुधा ने मुझे सख्त मना किया है कि उसके बारे में किसी को कोई जानकारी न दें। समय बीतने लगा कुछ वर्षों बाद मालूम हुआ कि सुधा ने किसी से शादी कर लिया है और अब वो अपने पति के साथ बैंगलोर (अब बेंगलुरु) में रहती है। राज विक्षिप्तावस्था में रहता था। घर, परिवार और दुनिया से दूर। अब हमेशा नशा करने लगा था। कुछ दिनों तक लम्बे उलझे बलों और गंदे फटे कपड़े पहने हुए सड़कों पर इधर-उधर घूमते हुए दीखता था। सुधा तो शहर छोड़ कर चली गई थी लेकिन राज उसके पुराने घर के आस पास अपने पागलपन में भी घूमता रहता था। एक दिन सड़क के किनारे एक पेंड़ के नीचे उसकी अर्धनग्न लाश मिली। सुधा का अब कोई खबर नहीं मिलता है कि कहाँ और किस अवस्था में है। इसप्रकार इस कहानी का अंत उसी दिन हो गया था जिस दिन राज ने जिंदगी की अंतिम साँस लिया था। अब बाकी दोस्तों का भी कुछ पता नहीं चलता है कि कौन कहाँ है और किस हालत में हैं।