तानसेन के गुरु ‘स्वामी हरिदास’

हम सभी जानते हैं कि भारत का महान मुग़ल शासक अकबर था। अकबर स्वयं तो अधिक पढ़ा लिखा नहीं था लेकिन वह बुद्धिजीवियों का बहुत प्रेमी था। कहा जाता है कि अकबर के दरबार में नौ गुणवान दरबारी थे। ये सभी नवरत्न अपने-अपने क्षेत्र में प्रवीण विद्वान थे। इन्हें नवरत्न के नाम से जाना जाता था। 1.अबुल फजल- प्रसिद्ध इतिहासकार 2.फैजी- फारसी कवि 3. तानसेन- एक विलक्षण संगीतज्ञ 4. राजा बीरबल- कुशल वक्ता 5. राजा टोडरमल- राजस्व और वित् मंत्री 6. राजा मानसिंह- भूमि संबंधी कार्य 8. अब्दुल रहीम खानखाना- विद्वान एवं कवि 9. मुल्ला-दो-प्याज।

आज मैं जिस रत्न की बात करने जा रही हूँ वे तानसेन हैं। एक बार अकबर ने तानसेन के संगीत से बहुत खुश होकर कहा “तुम दुनिया के सबसे अच्छा कलाकार हो। तुम्हारा संगीत बहुत कर्णप्रिय और महान है। जिसकी तुलना किसी और से नहीं की जा सकती है।” राजा की बात को सुनकर तानसेन अभिभूत हुए और कहा “यह केवल आपकी राय है। दुनिया में बहुत से कलाकार मुझसे भी बेहतर है।” अकबर ने कहा, “तानसेन मैंने बहुत संगीतकारों को सुना है लेकिन तुम्हारा संगीत उन सबसे बहुत ही बेहतर है।” तभी तानसेन ने कहा “महाराज! फिर तो आपको मेरे गुरु ‘स्वामी हरिदास’ को जरुर सुनना चाहिए। वह मुझसे भी बहुत अच्छा गाते हैं।” अकबर बहुत उत्सुक होकर बोले यदि ऐसा है तो मैं आपके गुरु का संगीत जरुर सुनूंगा। आपको  उनसे मेरे लिए संगीत गाने का अनुरोध करना होगा। तानसेन ने कहा कि स्वामी हरिदास दरबार में नहीं आएंगे और ना ही वो आपके लिए गायेंगे किन्तु यदि आप मेरे साथ उनके घर चलें तो आप उनका संगीत सुन सकते हैं।” इसबात पर अकबर, बीरबल के साथ स्वामी हरिदास जी के घर गए। अकबर ‘स्वामी हरिदास’ जी के घर कुछ दिनों तक रुके किन्तु गुरु ने उस बीच एक दिन भी कोई गीत नहीं गाया। अकबर गुरु हरिदास का संगीत सुनने के लिए अधीर और बैचेन हो रहे थे। उन्होंने तानसेन को बुलाया और कहा- “स्वामी हरिदास जी कब गायेंगे? हम सब यहाँ चार दिनों से हैं लेकिन अभी तक उन्होंने संगीत का एक शब्द भी नहीं गाया है। लगता है मुझे उनका संगीत सुने बिना ही लौट जाना पड़ेगा।” तब तानसेन ने कहा राजन! गुरूजी केवल उसी समय गाते हैं जब उन्हें लगता है कि यह गाने का सही समय है। हमें धैर्य रखना होगा।” अगले दिन सुबह अकबर गहरी नींद में सोए हुए थे तभी एक मधुर स्वर ने उन्हें नींद से जगा दिया। स्वामी हरिदास गीत गा रहे थे। उनकी आवाज इतनी मीठी और सुरीली थी कि सम्राट मंत्रमुग्ध हो गए। उन्होंने तानसेन से कहा- तुम सही कह रहे थे। वास्तव में स्वामी हरिदास तुमसे भी बेहतर गाते हैं। अकबर जब महल में वापस लौटने लगे तब रास्ते में बीरबल से कहा- तानसेन का संगीत अपने गुरु जैसा क्यों नहीं है? तभी बीरबल बोले- “जहाँपनाह! तानसेन का संगीत अपने गुरु जैसा इसलिए नहीं हो सकता है क्योंकि वो आपको खुश करने के लिए गाते हैं जबकि उनके गुरु भगवान को खुश करने के लिए गाते हैं।”

गीत और संगीत, साधना से ‘माधुर्य सौन्दर्य’ को प्राप्त करती है। दबाव में कलाकार बाह्य प्रदर्शन तो कर सकता है लेकिन कला का प्राकृतिक सौन्दर्य तो स्वतंत्र आत्मा की सुखद अभिव्यक्ति में ही मिल सकता है। आर्थिक, सामाजिक, राजनितिक या प्रशासनिक किसी भी तरह के दबाव में अभिव्यक्ति को नैसर्गिक सौन्दर्य प्राप्त नहीं हो सकता है। यही मूल कारण था कि तानसेन के संगीत विलक्षण होते हुए भी ‘स्वामी हरिदास’ जी की संगीत की बराबरी नहीं कर सकता है।

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.