मकर संक्रांति

चला भास्कर मकर से मिलने धनु राशि को छोड़।
नई वर्ष की नई उमंगे जन-जीवन में जोड़ ।।

तील-तील बड़ा होने लगा दिन और रातें तील-तील छोटी।
सर्दी की अब हुई बिदाई गर्मी की स्वागत होती ।।

गंगा स्नान और दान-पुण्य कर दही चिवड़ा खाते।
आसमान में पतंगों का मेला लोग लगाते ।।

भारत त्यौहारों का देश है। यहां वर्ष में अनेक त्यौहार आते है और हम सभी भारतीय अपने-अपने त्योहारों को बहुत ही धूमधाम तथा आनंद के साथ मनाते है। मकर संक्रांति भी उन्हीं त्यौहारों में से एक है। हम सभी भारतीय इस त्यौहार को अपने-अपने रीति-रिवाजों के साथ मनाते है।

मकर संक्रांति का महत्व

मकर संक्रांति का यह पर्व प्रत्येक वर्ष जनवरी के महीने में ही समस्त भारत वर्ष में मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार संक्रांति सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने से होता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होने लगते हैं। उत्तरायण को देवों का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है और दक्षिणायण को देवों की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। मान्यता है कि इस दिन जो लोग दान-पुण्य करते हैं उन्हें सौ गुणा ज्यादा पुण्य प्राप्त होता है। मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा स्नान और गंगा घाट पर दान करने का बहुत ही महत्व है। सामान्यतः सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करता है किंतु मकर राशि में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत लाभकारी होता है। यह संक्रांति छ: छ: महीने के अंतराल पर होती है।

भारतवर्ष पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होते है। इसी कारण यहाँ रातें बड़ी और दिन छोटे होते हैं तथा मौसम सर्दी का होता है। किंतु मकर संक्रांति के दिन से रातें थोड़ी-थोडी छोटी और दिन थोड़ा-थोड़ा बड़ा होने लगता है और गर्मी का मौसम शुरू होने लगता है। सामान्यत: भारतीय पंचांग की पद्धति और सभी तिथियां चंद्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं किंतु मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। यही कारण है कि प्रति वर्ष संक्रांति 14  जनवरी को ही मनाया जाता है।

मकर संक्रांति का महत्व

ऐसी मान्यता है कि संक्रांति के दिन भगवान सूर्यदेव अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं। सूर्य देव मकर राशि के स्वामी हैं। महाभारत काल में भीष्म पितामह अपना देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किए थे। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। यह भी मान्यता है कि इस दिन यशोदा माँ ने श्री कृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था।

मकर संक्रांति के विविध रूपरंग विविध राज्यों में  

उत्तराखंड की मकर संक्रांति:

उत्तराखंड के बागेश्वर में इस दिन बहुत बड़ा मेला लगता है। इस दिन लोग गंगा स्नान करके तिल के लड्डू, अनाज आदि दान करते हैं। यहाँ भी इस पर्व के अवसर पर गंगा घाट पर मेला लगता है।

पंजाब में इस पर्व को लोहरी के नाम से जाना जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह पर्व नई फसल की कटाई के अवसर पर मनाया जाता है। यह संक्रांति से एक दिन पहले बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

तमिलनाडु में इस पर्व को पोंगल के रूप में चार दिनों तक मनाया जाता है।

पहला दिन – ‘भोगी पोंगल’ – इस दिन कुड़ा-करकट को जलाया जाता है।

दुसरा दिन – ‘सूर्य पोंगल’ – इस दिन लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

तीसरे दिन – ‘भट्टू पोंगल’ – इस दिन पशु धन की पूजा की जाती है।

चौथा दिन – ‘कन्या पोंगल’- इस दिन खूले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, इस खीर को ही पोंगल कहते है। इसी खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं।

महाराष्ट्र में इसे हुड्डा त्यौहार के नाम से जाना जाता है।

गुजरात और राजस्थान में इसे उत्तरायण के नाम से जाना जाता है।

बिहार और यूपी में यह पर्व खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग गंगा स्नान करके सूर्य को अरग देते हैं । काले तिल और अन्न का दान करते हैं। काले तिल को ग्रहण करने के पश्चात दही और चिवड़ा खाते है। इस दिन दो-तीन तरह की सब्जी बनाई जाती है, खास कर कोहड़ा (पीला कद्दू) की सब्जी जरूर बनती है। सभी फिर पतंग उड़ाने के लिए बाहर निकल पड़ते है। शाम के समय काले उड़द की दाल में खिचड़ी बनाकर सब लोग खाते हैं। इसलिए इस त्यौहार को खिचड़ी का त्यौहार कहते हैं। सभी राज्यों में यह पर्व किसी न किसी रूप में जरूर मनाया जाता है। इस दिन बड़े और बच्चे सभी पतंग उड़ाते है और पतंगों की कलाबाजियां दिखाते हैं।

अंत में मैं यह कहना चाहती हूँ कि आज-कल सभी त्यौहार मोबाइल के संदेशों में ही सीमट कर रह गया है। पहले हम सभी लोग त्यौहारों को एक साथ मिलकर मनाते थे लेकिन आजकल इस भाग दौड़ की दुनिया में सभी त्यौहार मोबाइल के संदेशों में ही सीमट कर रह गया है।

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