हिन्दी कहानी का विकास क्रम:
प्रेमचंद युगीन कहानियाँ (1916 – 1936 ई०)
मुंशी प्रेमचंद
जन्म: 31 जुलाई (1980 ई०) वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) लमही गाँव में हुआ था।
निधन: 8 अक्तुबर (1936 ई०) वराणसी (उत्तर प्रदेश)
उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था, जो लमही में डाकमुंशी थे।
- प्रेमचंद का वास्तविक नाम- धनपत राय श्रीवास्तव था।
- प्रेमचंद पहले ‘नवाबराय’ के नाम से उर्दू में लिखते थे।
- प्रेमचंद की आरम्भिक शिक्षा फ़ारसी में हुई थी।
- इनकी अधिकतर कहानियोँ में निम्न व मध्यम वर्ग का चित्रण है।
- डॉ॰ कमलकिशोर गोयनका ने प्रेमचंद की संपूर्ण हिंदी-उर्दू कहानी को प्रेमचंद कहानी रचनावली नाम से प्रकाशित कराया है।
- उनके अनुसार प्रेमचंद्र ने अपने जीवन में लगभग 300 से अधिक कहानियाँ लिखे है।
- इसी कारण इन्हें ‘कलम का जादूगर’ कहा जाता है।
- प्रेमचंद उपनाम से इनकी पहली कहानी ‘ममता’ है।
- प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह ‘सोजे वतन’ (राष्ट्र का विलाप) नाम से जून 1907 ई० में प्रकाशित हुआ।
- ‘सोजे वतन’ में पाँच कहानियों का संग्रह है- सोजे वतन, दुनिया का सबसे अनमोल रतन, शेख मखमूर, यही मेरा वतन है, तथा सांसारिक प्रेम और देश प्रेम।
- इसी संग्रह की पहली कहानी ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’ को आम तौर पर उनकी पहली प्रकाशित कहानी माना जाता रहा है।
- डॉ॰ गोयनका के अनुसार कानपुर से निकलने वाली उर्दू मासिक पत्रिका ‘ज़माना’ के अप्रैल अंक में प्रकाशित सांसारिक प्रेम और देश-प्रेम (इश्के दुनिया और हुब्बे वतन) वास्तव में उनकी पहली प्रकाशित कहानी है।
- ‘सांसारिक प्रेम और देशप्रेम’ कहानी को प्रेमचंद ने इटली के प्रसिद्ध देशभक्त ‘मेजिनी’के जीवन और संघर्षों को केन्द्र में रखकर लिखा है।
- ‘ढपोरशंख’, ‘विद्रोह’, ‘रामलीला’, ‘बड़े भाई साहब’, आदि वर्णात्मक शैली में है।
- ‘क़ानूनी कुमार’ और ‘जादू’ संवादात्मक शैली में है।
- ‘मोटेराम शास्त्री की डायरी’ डायरी शैली में है।
- ‘दो सखियाँ’ और ‘कुसुम’ पत्रात्मक शैली में है।
महत्वपूर्ण कहानी संग्रह:
सप्तसरोज- 1917 ई० में इसके पहले संस्करण की भूमिका लिखी गई थी। सप्तसरोज में प्रेमचंद की सात कहानियाँ संकलित हैं।
कहानियाँ- बड़े घर की बेटी, सौत, सज्जनता का दण्ड, पंच परमेश्वर, नमक का दारोगा, उपदेश तथा परीक्षा आदि।
नवनिधि- इसमें प्रेमचंद की नौ कहानियों का संग्रह है।
कहानियाँ- राजा हरदौल, रानी सारन्धा, मर्यादा की वेदी, पाप का अग्निकुण्ड, जुगुनू की चमक, धोखा, अमावस्या की रात्रि, ममता, पछतावा आदि।
प्रेमपूर्णिमा, प्रेम-पचीसी, प्रेम-प्रतिमा, प्रेम-द्वादशी
समरयात्रा- इस संग्रह के अंतर्गत प्रेमचंद की 11 राजनीतिक कहानियों का संकलन किया गया है।
कहानियाँ- जेल, कानूनी कुमार, पत्नी से पति, लांछन, ठाकुर का कुआँ, शराब की दुकान, जुलूस, आहुति, मैकू, होली का उपहार, अनुभव, समर-यात्रा आदि।
‘मानसरोवर’ भाग एक व दो और ‘कफन’। उनकी मृत्यु के बाद उनकी कहानियाँ ‘मानसरोवर’ शीर्षक से 8 भागों में प्रकाशित हुई।
(क). चंद्रधर शर्मा गुलेरी-
जन्म: 7 जुलाई, (1883 ई०) गुलेर गाँव, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश में हुआ था।
निधन: 39 वर्ष की आयु में 12 सितम्बर (1922 ई०) में काशी में हुई।
- पिता का नाम पंडित शिवराम शास्त्री और माता का नाम लक्ष्मीदेवी था।
- लक्ष्मीदेवी, पंडित शिवराम शास्त्री की तीसरी पत्नी थी।
- प्रतिभा के धनी चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने अपने अभ्यास से संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेज़ी, पालि, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं पर असाधारण अधिकार हासिल किया।
- उन्हें मराठी, बंगला, लैटिन, फ़्रैंच, जर्मन आदि भाषाओं की भी अच्छी जानकारी थी।
- साहित्य, दर्शन, भाषा विज्ञान, प्राचीन भारतीय इतिहास और पुरातत्त्व ज्योतिष सभी विषयों के वे विद्वान् थे।
- वे अपनी रचनाओं में स्थल-स्थल पर वेद, उपनिषद, सूत्र, पुराण, रामायण, महाभारत के संदर्भों का संकेत दिया करते थे। इसीलिए इन ग्रन्थों से परिचित पाठक ही उनकी रचनाओं को अच्छी तरह समझ सकता था।
महत्वपूर्ण कहानी संग्रह:
सुखमय जीवन (1911 ई०)
बुदधू का कांटा (1914 ई०)
उसने कहा था (1915 ई०) फ्लैश बैक पद्धति पर आधारित है।
चन्द्रधरशर्मा गुलेरी को हिन्दी साहित्य में सबसे अधिक प्रसिद्धि 1915 ई० में ‘सरस्वती’ मासिक में प्रकाशित कहानी ‘उसने कहा था’ से मिली। यह कहानी शिल्प एवं विषय-वस्तु की दृष्टि से आज भी ‘मील का पत्थर’ मानी जाती है।
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की मृत्यु पीलिया के बाद तेज़ बुख़ार से मात्र 39 वर्ष की आयु में 12 सितम्बर 1922 ई. में काशी में हुई।
(ख). जयशंकर प्रसाद-
जन्म: 30 जनवरी (1889 ई०)
निधन: 14 जनवरी (1937 ई०)
‘छाया’ कहानी संग्रह जयशंकर प्रसाद का प्रथम कहानी संग्रह है, जिसका प्रकाशन (1912 ई०) में ‘भारती भंडार’, इलाहाबाद से हुआ था।
इसमें संकलित कहानियों की कुल संख्या ग्यारह हैं-
तानसेन, चंदा, ग्राम, रसिया बालम, शरणागत, सिकंदर की शपथ, चित्तौर-उद्धार, अशोक, गुलाम, जहाँआरा, मदन-मृणालिनी।
कथा के क्षेत्र में प्रसाद जी आधुनिक ढंग की कहानियों के आरंभयिता माने जाते हैं।
सन् 1912 ई. में ‘इन्दु’ में उनकी पहली कहानी ‘ग्राम’ प्रकाशित हुई। उनके पाँच कहानी-संग्रहों में कुल मिलाकर सत्तर (70) कहानियाँ संकलित हैं। ‘
महत्वपूर्ण कहानी संग्रह:
छाया (1912 ई०) इस संग्रह में कूल 11 कहानियाँ संकलित है।
प्रतिध्वनि (1926 ई०) इस संग्रह में कूल 15 कहानियाँ संकलित है।
आकाशदीप (1928 ई०) इस संग्रह में कूल 19 कहानियाँ संकलित है।
आँधी (1931 ई०) इस संग्रह में कूल 11 कहानियाँ संकलित है।
इंद्रजाल (1930 ई०) इस संग्रह में कूल 14 कहानियाँ संकलित है।
मुख्य तथ्य:
- जयशंकर प्रसाद की प्रथम कहानी ‘ग्राम’ 1912 ई० में इंदु पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।
- इनकी ग्राम, तानसेन और रसियाबालम कहानियों पर बँगला कहानी शैली का प्रभाव है।
- ‘गुण्डा’ कहानी में भारत के ईष्ट इण्डिया कंपनी के युग का चित्रण है।
- इनकी ‘मधूलिका’ कहानी लोकमंगल की भावना से मंडित राष्ट्र और विश्व कल्याण के लिए वैयक्तिक प्रेम को न्योछावर करने वाली कहानी है
- संदेश कहानी में दाम्पत्य जीवन का उज्जवल रूप प्रस्तुत किया है।
- बनजारा कहानी में पुलिसिया अत्याचार की अभिव्यक्ति है।
- देवरथ कहानी में बौद्ध धर्म और उसके विकृत वज्रयानी रूप का यथार्थ चित्रण है।
- विरामचिह्न कहानी में अछूतों का मंदिरों प्रवेश निषेध। समस्या का चित्रण है।
- देवदासी कहानी में देवदासियो के मनोदशा, विवशता और धर्म के नाम पर आडंबर करने वाले पण्डे-पुजारियों की धूर्तता को उजागर किया गया है।
(ग). चतुरसेन शास्त्री-
जन्म: 26 अगस्त (1891ई०) को चांदोख ज़िला बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
निधन: 2 फ़रवरी (1960 ई०)
- ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में इनकी प्रतिष्ठा है।,
- पिता का नाम केवलराम ठाकुर तथा माता का नाम नन्हीं देवी था
- उनका मूल नाम चतुर्भुज था।
- उन्होंने राजस्थान के जयपुर के संस्कृत कॉलेज से उन्होंने (1915ई०) में आयुर्वेद में आयुर्वेदाचार्य तथा संस्कृत में शास्त्री की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने आयुर्वेद विद्यापीठ से आयुर्वेदाचार्य की उपाधि भी प्राप्त की।
महत्वपूर्ण कहानी संग्रह
हिन्दी भाषा और साहित्य का इतिहास (सात खंड)
महत्वपूर्ण कहानी संग्रह:
अक्षत, रजकण, वीर बालक, मेघनाद, सीताराम, सिंहगढ़ विजय, वीरगाथा, लम्बग्रीव, दुखवा मैं कासों कहूं सजनी, कैदी, आदर्श बालक, सोया हुआ शहर, कहानी खत्म हो गई, धरती और आसमान, मेरी प्रिय कहानियां।
(घ). राहुल सांकृत्यायन-(1893 – 1963 ई० )
- राहुल सांकृत्यायन हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार और प्रतिष्ठित बहुभाषाविद् थे।
- बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में उन्होंने यात्रा वृतांत/यात्रा साहित्य तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान किए।
- वे हिन्दी यात्रा सहित्य के पितामह कहे जाते हैं।
- बौद्धधर्म पर उनका शोध हिन्दी साहित्य में युगान्तरकारी माना जाता है,जिसके लिए उन्होंने तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक भ्रमण किया था।
- इसके अलावा उन्होंने मध्य-एशिया तथा ‘कॉकेशस भ्रमण’ पर भी यात्रा वृतांत लिखे जो साहित्यिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं।
- राहुल सांकृत्यायन की अद्भुत तर्कशक्ति और अनुपम ज्ञान भण्डार को देखकर काशी के पंडितों ने उन्हें ‘महापंडित’ की उपाधि दिया।
- इस प्रकार वे ‘केदारनाथ पाण्डे’ से ‘महापंडित राहुल सांकृत्यायन’ हो गये।
महत्वपूण कहानी संग्रह:
सतमी के बच्चे (1939 ई०) ‘
वोल्गा से गंगा’ (1944 ई०)
बहुरंगी मधुपुरी (1953 ई०)
कनैल की कथा आदि
(ङ). विशंभरनाथ शर्मा कौशिक- (1899 – 1945 ई०)
जन्म: (1899 ई०) पंजाब के अम्बाला में हुआ था
निधन: (1945 ई०)
- विश्वंभर नाथ शर्मा ‘कौशिक’ प्रेमचन्द परम्परा के ख्याति प्राप्त कहानीकार थे।
- प्रेमचन्द के समान साहित्य में कौशिक का दृष्टिकोण भी आदर्शोन्मुख यथार्थवाद था।
- ‘कौशिक’ की अधिकांश कहानियाँ चरित्र प्रधान हैं।
- इनके कहानियों के पात्रों में चरित्र निर्माण में लेखक ने मनोविज्ञान का सहारा लिया है और सुधारवादी मनोवृत्तियों से परिचालित होने के कारण उन्हें अन्त में दानव से देवता बना दिया है।
- कौशिक की कहानियों में पारिवारिक जीवन की समस्याओं और उनके समाधान का सफल प्रयास हुआ है।
- उनकी कहानियों में पात्र हमारी यथार्थ जीवन के जीते जागते लोग हैं जो सामाजिक चेतना से अनुप्राणित तथा प्रेरणादायी हैं।
- इनका प्रथम कहानी संग्रह ‘रक्षाबंधन’ सन् 1913 ई० में प्रकाशित हुआ था।
- उन्होंने हास्य व्यंग्यपूर्ण कहानी दूबे जी की चिट्ठी चाँद पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।
- इनकी कहानियां अपनी मूल संवेदना को पूर्ण मार्मिकता के साथ प्रकट करती हैं।
महत्वपूर्ण कहानी संग्रह
- ‘रक्षाबंधन’- इसके अंतर्गत 24 कहानियाँ संकलित की गई हैं।
- कहानियाँ- भक्त की टेर, पत्रकार, प्रतिहिंसा, सहचर, हवा, आविष्कार, कथा, कार्य कुशलता, वोटर, मद, हिसाब-किताब, प्रमेला, वशीकरण, कम्यूनिस्ट सभा, वैषम्य, भक्षक-रक्षक, चलते-फिरते, वाह री होली, अवसरवाद, रक्षा-बन्धन, मनुष्य, स्वयं सेवक, मूंछें, विजय दशमीआदि।
- ‘कल्प मंदिर’
- ‘चित्रशाला’
- ‘प्रेम प्रतिज्ञा’
- ‘मणि माला’
- ‘कल्लोल’
इन संग्रहों में कौशिक की 300 से अधिक कहानियां संग्रहित हैं।
(च). सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
जन्म: 21 फ़रवरी (1899 ई०) बंगाल की महिषादल रियासत (जिला मेदिनीपुर) में हुआ था।
निधन: 15 औक्तुबर (1961 ई०) प्रयागराज
- इन्होंने वसंत पंचमी पर अपना जन्मदिन मनाने की परंपरा (1930 ई०) में प्रारंभ किया।
- जन्म-कुण्डली बनाने वाले पंडित ने इनका नाम सुर्जकुमार रखा था।
महत्वपूर्ण कहानी संग्रह
- लिली (1934 ई० )
- सखी (1935 ई०)
- सुकुल की बीवी (1941 ई०)
- ‘चतुरी चमार’ (1945 ई०) ‘सखी’ संग्रह की कहानियों का ही इस नये नाम से पुनर्प्रकाशन।
- देवी (1948 ई०) यह संग्रह वस्तुतः पूर्व प्रकाशित संग्रहों से संचयन है। इसमें एकमात्र नयी कहानी ‘जान की !’ संकलित है।]
- वे हिन्दी में मुक्तछन्द के प्रवर्तक माने जाते हैं।
- सन् 1930 ई० में प्रकाशित अपने काव्य संग्रह ‘परिमल’ की भूमिका में उन्होंने लिखा-
“मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। मनुष्यों की मुक्ति कर्म के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छन्दों के शासन से अलग हो जाना है। जिस तरह मुक्त मनुष्य कभी किसी तरह दूसरों के प्रतिकूल आचरण नहीं करता, उसके तमाम कार्य औरों को प्रसन्न करने के लिए होते हैं फिर भी स्वतंत्र। इसी तरह कविता का भी हाल है।”
(छ). शिवपूजन सहाय- (1893 – 1963 ई०)
जन्म: (1893 ई०) उनवास, शाहाबाद, बिहार
निधन: (1963 ई०) पटना
कहानी संग्रह: मेरा जीवन
(ज). पदम् लाल पुन्ना लाल वक्शी
जन्म: 27 मई (1894 ई०) राजनांदगाँव
निधन: 28 दिसंबर (1971 ई०) रायपुर
महत्वपूर्ण कहानी संग्रह: झलमला, अंजलि
(झ). भगवती प्रसाद वाजपेयी
जन्म: 11 औक्तुबर (1899 ई०) कानपुर के मंगलपुर ग्राम
निधन: 8 औक्तुबर (1973 ई०) दतिया में
महत्वापुन्र कहानी संग्रह:
मधुपर्क, हिलोर, खाली बोतल, उपहार, दीपमालिका, बाती और लौ ।
(ञ). पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’
जन्म: 29 दिसंबर (1900 ई०) मिर्जापुर, चुनार मानक कस्वा में
निधन: 23 मार्च (1967 ई०) दिल्ली
महत्वपूर्ण कहानी संग्रह:
चाकलेट (1923 ई०)
चिंगारियां (1925 ई०)
इन्द्र धनुष, घोड़े की कहानी, बलात्कार (1927 ई०)
निर्लज्जा (1929 ई०)
दोजख की आग (1929 ई०)
क्रांतिकारी कहानियां (1939 ई०)
गल्पांजली, रेशमी (1942 ई०)
विशेष तथ्य:
- काशी के दैनिक ‘आज’ में ‘ऊटपटांग’ शीर्षक नाम से व्यंग्यात्मक लेख लिखा करते थे।
- अपना नाम उन्होंने ‘अष्टावक्र’ रखा था।
- उसके बाद फिर ‘भूत’ नामक हास्य-व्यंग्य प्रधान पत्र निकला।
‘उग्र’ जी के विशेष प्रिय थे गोस्वामी तुलसीदास और प्रसिद्ध असदुल्लाह खां ग़ालिब।