प्रेमचंद का संक्षिप्त जीवन परिचय- (31 जुलाई 1880 – 08 अक्तुबर 1936) प्रेमचंद का जन्म वाराणसी से लगभग चार मील दूर लमही नामक गाँव में हुआ था। प्रेमचंद के पिता का नाम मुंशी अजायबराय था। वे डाकमुंशी थे। उनकी माता आनंदी देवी थी। उनका घर का नाम ‘धनपत राय श्रीवास्तव’ था। ‘नबाब राय’ के नाम से वे लिखते थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा उर्दू, फ़ारसी में हुई थी।
कृतियाँ
सेवासदन (बजारे हुस्न के नाम से लेखन 1914, प्रकाशन 1916)
प्रेमाश्रम (1918 में लिखा गया और प्रकाशित 1922 में)
निर्मला (1913 में लिखा गया और प्रकाशित 1927)
रंगभूमि (1924-25), कायाकल्प (1916), गबन (1931), कर्मभूमि (1923), गोदान (1932),
मंगलसूत्र- अधूरा उपन्यास
कहानियाँ- पहली कहानी- संसार का अनमोल रतन, 1907 ज़माना पत्रिका में छपा था।
सोजे वतन (1908 उर्दू कहानी संग्रह)
मान सरोवर ( 8 भागों में लगभग 300 सौ कहानियाँ)
‘ईदगाह’ कहानी ‘चाँद’ पत्रिका में छापी थी
नाटक- संग्राम (1932), कर्बला (1924), प्रेम की वेदी (1933)सम्पादक- प्रेमचंद महान पत्रकार थे ‘हंस’ और जागरण का संपादन किये।
दुनिया का सबसे अनमोल रतन’- कहानी की समीक्षा और पात्र परिचय
- दुनिया का सबसे अनमोल रतन प्रेमचंद की पहली कहानी मानी जाति है। हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, बांग्ला, गुजराती, और मराठी के जानकार मुंशी दया नारायण निगम कानपूर से प्रकाशित होने वाली एक उर्दू पत्रिका ‘ज़माना’ के संपादक थे। इन्होने ही प्रेमचंद की कहानी ‘दुनिया का सबसे बड़ा अनमोल रतन’ को 1907 में प्रकाशित किया था। उन्होंने ही नबावराय को प्रेमचंद नाम दिया था।
- ज़माना पत्रिका के बाद यह कहानी उर्दू कहानी-संग्रह ‘सोजेवतन’ में 1908 में प्रकाशित हुई थी।
- इस कहानी संग्रह में पाँच कहानियाँ है- दुनिया का सबसे अनमोल रतन, शेख मखमूर, यही मेरा वतन है, शोक का पुरस्कार और सांसारिक प्रेम इस कहानी संग्रा के कारण ही प्रेमचंद को कोप का भाजक बनना पड़ा।
- इसके सन्दर्भ में मुंशी प्रेमचंद जी ने बनारसी दास चतुर्वेदी के प्रश्नों के उत्तर देने के क्रम में लिखा है- “मैंने 1907 में गल्प लिखना शुरू किया सबसे पहले 1908 में मेरा सोजे वतन जो पाँच कहानियों का संग्रह हैं। वह ज़माना प्रेस से निकला था। पर उसे हमीरपुर के कलेक्टर ने मुझसे लेकर जलवा दिया था। उनके ख्याल से वह विद्रोहात्मक था। हालाँकि तब से उसका अनुवाद कई संग्रहों और पत्रिकाओं में निकल चूका है।”
- यह कहानी वर्णात्मक शैली में लिखी गई उर्दू शब्दावली की बहुलता भी है।
कहानी का विषय वस्तु
- यह कहानी सच्चे प्रेमी के प्रेम परीक्षा की कहानी है।
- इस कहानी में अनमोल रतन के रूप में देशभक्त का चित्रण है।
- इस कहानी में प्रेम के लिए संघर्ष का चित्रण है।
- कहानी का अंत सुखद है।
- यह कहानी तात्कालीन स्वतंत्रता आन्दोलन को एक नई दिशा देता है
कहानी के पात्र
दिलफ़िगार – कहानी का मुख्य पात्र है जो कि दिलफरेब से बेपनाह प्रेम करता है। वह अपने प्रेम को सिद्ध करने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है।
दिलफरेब- एक बेहद खूबसूरत स्त्री और कहानी की मुख्य नारी पात्र।
काला चोर- जो एक कैदी है। जुर्म करने के कारण उसे फांसी दी जा रही थी।
एक बुजुर्ग- जो दिफिगार की हौसला अफजाई करता है।
दुनिया का सबसे अनमोल रतन (कहानी)
दिलफ़िगार एक कँटीले पेड़ के नीचे दामन चाक किये बैठा हुआ खून के आँसू बहा रहा था। वह सौन्दर्य की देवी यानी मलका दिलफ़रेब का सच्चा और जान-देनेवाला प्रेमी था। “उन प्रेमियों में नही, जो इत्र-फुलेल में बसकर और शानदार कपड़ों से सजकर आशिक के वेश में माशूक़ियत का दम भरते हैं। बल्कि उन सीधे-सादे भोले-भाले फ़िदाइयों में जो जंगल और पहाड़ों से सर टकराते हैं और फ़रियाद मचाते फिरते हैं।” दिलफ़रेब ने उससे कहा था कि अगर तू मेरा सच्चा प्रेमी है, तो जा और दुनिया की सबसे अनमोल चीज लेकर मेरे दरबार में आ। तब मैं तुझे अपनी गुलामी में कबूल करूँगी। अगर तुझे वह चीज न मिले तो खबरदार इधर रूख न करना, वर्ना सूली पर खिंचवा दूँगी। दिलफ़िगार को अपनी भावनाओं के प्रदर्शन का, शिकवे-शिकायत का, प्रेमिका के सौन्दर्य दर्शन का तनिक भी अवसर न दिया गया। दिलफ़रेब ने ज्योंही यह फैसला सुनाया, उसके चौबदारों ने गरीब दिलफ़िगार को धक्के देकर बाहर निकाल दिया। और आज तीन दिन से यह आफ़त का मारा आदमी उसी कँटीले पेड़ के नीचे उसी भयानक-मैदान में बैठा हुआ सोच रहा है कि क्या करूँ। दुनिया की सबसे अनमोल चीज मुझको मिलेगी? नामुमकिन! और वह है क्या? कारूँ का खजाना? आबे हयात? खुसरो का ताज? जामेजम? तख्ते ताऊस? परवेज की दौलत? नहीं, यह चीजें हरगिज नहीं। दुनिया में जरूर इनसे भी महँगी, इनसे भी अनमोल चीजें मौजूद हैं, मगर वह क्या है? कहाँ है? कैसे मिलेगी? या खुदा, मेरी मुश्किल क्यों कर आसानहोगी।
दिलफ़िगार इन्हीं खयालों में चक्कर खा रहा था और अक्ल कुछ काम नहीं करती थी। मुनीर शामी को हातिम-सा मददगार मिल गया। ऐ काश, कोई मेरा भी मददगार हो जाता! ऐ काश, मुझे भी उस चीज का, जो दुनिया की सबसे बेशकीमत चीज है, नाम बतला दिया जाता! बला से वह चीजें हाथ न आती मगर मुझे इतना तो मालूम हो जाता कि वह किस किस्म की चीज है। मैं घड़े बराबर मोती की खोज में जा सकता हूँ। मैं समुन्दर का गीत, पत्थर का दिल, मौत की आवाज़ और इनसे भी ज्यादा बेनिशान चीज़ों की तलाश में कमर कस सकता हूँ। मगर दुनिया की सबसे अनमोल चीज़! यह मेरी कल्पना की उड़ान से बहुत ऊपर है।
आसमान पर तारे निकल आये थे। दिलफ़िगार यकायक खुदा का नाम लेकर उठा और एक तरफ को चल खड़ा हुआ। भूखा-प्यासा, नंगे बदन, थकन से चूर, वह बरसों वीरानों और आबादियों की खाक छानता फिरा, तलवे कांटों से छलनी हो गये, शरीर में हड्डियाँ ही हड्डियाँ दिखाई देने लगी मगर वह चीज़, जो दुनिया की सबसे बेशकीमती चीज़ थी, न मिली और न उसका कुछ निशान मिला।
एक रोज वह भूलता-भटकता एक मैदान में जा निकला जहाँ हजारों आदमी गोल बाँधे खड़े थे। बीच में कई अमामे और चोगेवाले दढ़ियल काज़ी अफसरी शान से बैठे हुए आपस में कुछ सलाह-मशविरा कर रहे थे और इस जमात से ज़रा दूर पर एक सूली खड़ी थी। दिलफ़िगार कुछ तो कमजोरी की वजह से और कुछ यहाँ की कैफियत देखने के इरादे से ठिठक गया। क्या देखता है, कि कई लोग नंगी तलवारें लिये, एक कैदी को, जिसके हाथ-पैर में जंजीरें थीं, पकड़े चले आ रहे हैं। सूली के पास पहुँचकर सब सिपाही रुक गये और कैदी की हथकड़ियाँ-बेड़ियाँ सब उतार ली गयीं। इस अभागे आदमी का दामन सैकड़ों बेगुनाहों के खून के छीटों से रंगीन था, और उसका दिल नेकी के ख्याल और रहम की आवाज से जरा भी परिचित न था। उसे काला चोर कहते थे। सिपाहियों ने उसे सूली के तख्ते पर खड़ा कर दिया, मौत की फाँसी उसकी गर्दन में डाल दी और जल्लादों ने तख्ता खींचने का इरादा किया कि वह अभागा मुजरिम चीखकर बोला, खुदा के वास्ते मुझे एक पल के लिए फाँसी से उतार दो ताकि अपने दिल की आखिरी आरजू निकाल लूँ। यह सुनते ही चारों तरफ सन्नाटा छा गया। लोग अचम्भे में आकर ताकने लगे। काजियों ने एक मरने वाले आदमी की अंतिम याचना को रद्द करना उचित न समझा और बदनसीब पापी काला चोर जरा देर के लिए फाँसी से उतार लिया गया।
इसी भीड़ में एक खूबसूरत भोला-भाला लड़का एक छड़ी पर सवार होकर अपने पैरों पर उछल-उछल फ़र्जी घोड़ा दौड़ा रहा था, और अपनी सादगी की दुनिया में ऐसा मगन था कि जैसे वह इस वक्त सचमुच अरबी घोड़े का शहसवार है। उसका चेहरा उस सच्ची खुशी से कमल की तरह खिला हुआ था जो चन्द दिनों के लिए बचपन ही में हासिल होती है और जिसकी याद हमको मरते दम तक नहीं भूलती। उसका दिल अभी तक पाप की गर्द और धूल से अछूता था और मासूमियत उसे अपनी गोद में खिला रही थी।
बदनसीब काला चोर फांसी से उतरा। हजारों आँखें उस पर गड़ी हुई थीं। वह उस लड़के के पास आया और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगा। उसे इस वक्त वह जमाना याद आया जब वह खुद ऐसा ही भोला-भाला, ऐसा ही खुश व खुर्रम और दुनिया की गंदगियों से ऐसा ही पाक-साफ था। माँ गोदियों मे खिलाती थी, बाप बलाएं लेता था और सारा कुनबा जान न्योछावर करता था। आह, काले चोर के दिल पर इस वक्त बीते हुए दिनों की याद का इतना असर हुआ कि उसकी आँखों से, जिन्होंने दम तोड़ती हुई लाशों को तड़पते देखा और न झपकीं, आँसू, का एक कतरा टपक पड़ा। दिलफ़िगार ने लपककर उस अनमोल मोती को हाथ में ले लिया और उसके दिल ने कहा, बेशक यह दुनिया की सबसे अनमोल चीज है जिस पर तख्ते ताऊस और जामेजम और आबे हयात और जरे परवेज सब न्योछावर हैं।
इस ख्याल से खुश होता, कामयाबी की उम्मीद में सरमस्त, दिलफ़िगार अपनी माशूका दिलफ़रेब के शहर मीनोसाबाद को चला। मगर ज्यों-ज्यों मंजिलें तय होती जाती थीं उसका दिल बैठा जाता था कि कहीं उस चीज की, जिसे मैं दुनिया की सबसे बेशकीमत चीज समझता हूँ, दिलफ़रेब की आंखों में कद्र न हुई तो मैं फाँसी पर चढ़ा दिया जाऊँगा और इस दुनिया से नामुराद जाऊँगा। लेकिन जो हो सो हो, अब तो किस्मत आजमाई है। आखिरकार पहाड़ और दरिया तय करते वह शहर मीनोसबाद में आ पहुँचा और दिलफ़रेब की ड्योढ़ी पर जाकर विनती की कि थकान से टूटा हुआ दिलफ़िगार खुदा के फजल से हुक्म की तामील करके आया है, और आपके कदम चूमना चाहता है। दिलफ़रेब ने फौरन अपने सामने बुला भेजा और एक सुनहरे परदे की ओट से फरमाइश की कि वह अनमोल चीज पेश करो। दिलफ़िगार ने आशा और भय की एक विचित्र मन:स्थिति में वह बूँद पेश की और उसकी सारी कैफियत बहुत पुरअसर लफ्जों में बयान की। दिलफ़रेब ने पूरी कहानी बहुत गौर से सुनी और वह भेंट हाथ में लेकर जरा देर तक गौर करने के बाद बोली- दिलफ़िगार, बेशक तूने दुनिया की एक बेशकीमत चीज ढूंढ़ निकाली, तेरी हिम्मत और तेरी सूझ-बूझ की दाद देती हूँ! मगर यह दुनिया की सबसे बेशकीमती चीज नहीं, इसलिए तू यहाँ से जा और फिर कोशिश कर, शायद अब की तेरे हाथ वह मोती लगे और तेरी किस्मत में मेरी गुलामी लिखी हो। जैसा कि मैंने पहले ही बतला दिया था, मैं तुझे फाँसी पर चढ़वा सकती हूँ मगर मैं तेरी जाँबख्शी करती हूँ इसलिए कि तुझमें वह गुण मौजूद हैं, जो मैं अपने प्रेमी में देखना चाहती हूँ और मुझे यकीन है कि तू जरूर कभी-न-कभी कामयाब होगा।
नाकाम और नामुराद दिलफिगार इस माशूकाना इनायत से जरा दिलेर होकर बोला-ऐ दिल की रानी, बड़ी मुद्दत के बाद तेरी ड्योढ़ी पर सजदा करना नसीब होता है। फिर खुदा जाने ऐसे दिन कब आएँगे, क्या तू अपने जान देने वाले आशिक के बुरे हाल पर तरस न खायेगी और क्या तू अपने रूप की एक झलक दिखाकर इस जलते हुए दिलफ़िगार को आनेवाली सख्तियों को झेलने की ताकत न देगी? तेरी एक मस्त निगाह के नशे में चूर होकर मैं वह कर सकता हूँ जो आज तक किसी से न बन पड़ा हो।
दिलफ़रेब आशिक की यह चाव भरी बातें सुनकर गुस्सा हो गयी और हुक्म दिया कि इस दीवाने को खड़े-खड़े दरबार से निकाल दो। चोबदार ने फौरन गरीब दिलफ़िगार को धक्का देकर यार के कूचे से बाहर निकाल दिया।
कुछ देर तक तो दिलफ़िगार अपनी निष्ठुर प्रेमिका की इस कठोरता पर आँसू बहाता रहा, और फिर वह सोचने लगा कि अब कहाँ जाऊँ। मुद्दतों रास्ते नापने और जंगलों में भटकने के बाद आँसू की यह बूँद मिली थी, अब ऐसी कौन-सी चीज है जिसकी कीमत इस आबदार मोती से ज्यादा हो। हजरते खिज्र! तुमने सिकन्दर को आबे हयात के कुएँ का रास्ता दिखाया था, क्या मेरी बॉँह न पकड़ोगे? सिकन्दर सारी दुनिया का मालिक था। मैं तो एक बेघरबार मुसाफिर हूँ। तुमने कितनी ही डूबती किश्तयाँ किनारे लगायी हैं, मुझ गरीब का बेड़ा भी पार करो। ए आलीमुकाम जिबरील! कुछ तुम्हीं इस नीमजान, दुखी आशिक पर तरस खाओ। तुम खुदा के एक खास दरबारी हो, क्या मेरी मुश्किल आसान न करोगे? गरज यह है कि दिलफ़िगार ने बहुत फरियाद मचायी मगर उसका हाथ पकड़ने के लिए कोई सामने न आया। आखिर निराश होकर वह पागलों की तरह दुबारा एक तरफ दुबारा एक तरफ को चल खड़ा हुआ।
दिलफ़िगार ने पूरब से पश्चिम तक और उत्तर से दक्खिन तक कितने ही जंगलों और वीरानों की खाक छानी, कभी बर्फिस्तानी चोटियों पर सोया, कभी डरावनी घाटियों में भटकता फिरा मगर जिस चीज की धुन थी वह न मिली, यहाँ तक कि उसका शरीर हड्डियों का एक ढाँचा रह गया।
एक रोज वह शाम के वक्त किसी नदी के किनारे खस्ताहाल पड़ा हुआ था। बेखुदी के नशे से चौंका तो क्या देखता है कि चन्दन की एक चिता बनी हुई है और उस पर एक युवती सुहाग के जोड़े पहने सोलहों सिंगार किये बैठी है। उसकी जाँघ पर उसक प्यारे पति का सर है। हजारों आदमी गोल बांधे खड़े हैं और फूलों की बरखा कर रहे हैं। यकायक चिता मे से खुद-ब-खुद एक लपट उठी। सती का चेहरा उस वक्त एक पवित्र भाव से आलोकित हो रहा था, चिता की पवित्र लपटें उसके गले से लिपट गयीं और दम के दम में वह फूल-सा शरीर राख का ढेर हो गया। प्रेमिका ने अपने को प्रेमी पर न्योछावर कर दिया और दो प्रेमियों के सच्चे, पवित्र, अमर प्रेम की अन्तिम लीला आंख से ओझल हो गयी। जब सब लोग अपने घरों को लौटे तो दिलफ़िगार चुपके से उठा और अपने चाक-दामन कुरते में यह राख का ढेर समेट लिया और इस मुट्ठी भर राख को दुनिया की सबसे अनमोल चीज समझता हुआ, सफलता के नशे में चूर, यार के कूचे की तरफ चला। अबकी ज्यों-ज्यों वह मंजिल के करीब आता था, उसकी हिम्मत बढ़ती जाती थी। कोई उसके दिल में बैठा हुआ कह रहा था-अबकी तेरी जीत है और इस ख्याल ने उसके दिल को जो-जो सपने दिखाये उनकी चर्चा व्यर्थ है। आखिरकार वह शहर मीनोसबाद में दाखिल हुआ और दिलफ़रेब की ऊँची ड्योढ़ी पर जाकर खबर दी कि दिलफ़िगार सुर्खरू होकर लौटा है, और हुजूर के सामने आना चाहता है। दिलफ़रेब ने जांबाज आशिक को फौरन दरबार मे बुलाया और उस चीज के लिए, जो दुनिया की सबसे बेशकीमती चीज थी, हाथ फैला दिया। दिलफ़िगार ने हिम्मत करके उसकी चांदी जैसे कलाई को चूम लिया और मुट्ठी भर राख को उसकी हथेली मे रखकर सारी कैफियत दिल को पिघला देने वाले लफ्जों में कह सुनायी और अपनी सुन्दर प्रेमिका के होंठों से अपनी किस्मत का मुबारक फैसला सुनने के लिए इन्तजार करने लगा। दिलफ़रेब ने उस मुट्ठीभर राख को आंखों से लगा लिया और कुछ देर तक विचारों के सागर में डूबे रहने के बाद बोली-ऐ जान निछावर करने वाले आशिक दिलफ़िगार! बेशक यह राख जो तू लाया है, जिसमें लोहे को सोना कर देने की सिफ़त है, दुनिया की बहुत बेशकीमत चीज है और मैं सच्चे दिल से तेरी एहसानमन्द हूँ कि तूने ऐसी अनमोल भेंट मुझे दी। मगर दुनिया में इससे भी ज्यादा अनमोल कोई चीज है, जा उसे तलाश कर और तब मेरे पास आ। मैं तहेदिल से दुआ करती हूँ कि खुदा तुझे कामयाब करे। यह कहकर वह सुनहरे परदे से बाहर आयी और माशूकाना अदा से अपने रूप का जलवा दिखाकर फिर नजरों से ओझल हो गई। एक बिजली सी कौंधी और फिर बादलों के पर्दे में छिप गई। अभी दिलफ़िगार के होश-हवास ठिकाने पर न आने पाये थे कि चोबदार ने मुलायमियत से उसका हाथ पकड़कर यार के कूचे से उसको निकाल दिया और फिर तीसरी बार वह प्रेम का पुजारी निराशा के अथाह समुन्दर में गोता खाने लगा।
दिलफ़िगार का हियाब छूट गया। उसे यकीन हो गया कि मैं दुनिया में उसी तरह नाशाद और नामुराद मर जाने के लिए पैदा किया गया था और अब इसके सिवा और कोई चारा नहीं कि किसी पहाड़ पर चढ़कर नीचे कूद पडूँ ताकि माशूक के जुल्मों की फरियाद करने के लिए एक हड्डी भी बाकी न रहे। वह दीवाने की तरह उठा और गिरता-पड़ता एक गगनचुम्बी पहाड़ की चोटी पर जा पहुँचा। किसी और समय वह ऐसे ऊँचे पहाड़ पर चढ़ने का साहस न कर सकता था मगर इस वक्त जान देने के जोश में उसे वह पहाड़ एक मामूली टेकरी से ज्यादा ऊँचा न नजर आया। करीब था कि वह नीचे कूद पड़े कि हरे-हरे कपड़े पहने हुए और हरा अमामा बांधे एक बुजुर्ग एक हाथ में तसबीह और दूसरे हाथ में लाठी लिये बरामद हुए और हिम्मत बढ़ानेवाले स्वर में बोले- दिलफ़िगार, नादान दिलफ़िगार, यह क्या बुजदिलों जैसी हरकत है! तू मुहब्बत का दावा करता है और तुझे इतनी भी खबर नहीं कि मजबूत इरादा मुहब्बत के रास्ते की पहली मंजिल है? मर्द बन कर हिम्मत न हार। पूरब की तरफ एक देश है जिसका नाम हिन्दोस्तान है, वहाँ जा और तेरी आरजू पूरी होगी।
यह कहकर हजरते खिज्र गायब हो गये। दिलफिगार ने शुक्रिये की नमाज अदा की और ताजा हौंसले, ताजा जोश और अलौकिक सहायता का सहारा पाकर खुश-खुश पहाड़ से उतरा और हिन्दोस्तान की तरफ चल पड़ा।
मुद्दतों तक कांटों से भरे हुए जंगलों, आग बरसानेवाले रेगिस्तानों, कठिन घाटियों और अलंध्य पर्वतों को तय करने के बाद दिलफ़िगार हिन्द की पाक सरजमीन में दाखिल हुआ और एक ठंडे पानी के सोते में सफर की तकलीफें धोकर थकान के मारे नदी के किनारे लेट गया। शाम होते-होते वह एक चटियल मैदान में पहुँचा जहाँ बेशुमार अधमरी और बेजान लाशें बिना कफन के पड़ी हुई थीं। चील, कौए और वहशी दरिन्दे भरे पड़े थे और सारा मैदान खून से लाल हो रहा था। यह डरावना दृश्य देखते ही दिलफ़िगार का जी दहल गया। या खुदा, किस मुसीबत मे जान फँसी, मरनेवालों को कराहना, सिसकना और एड़ियाँ रगड़कर जान देना, दरिन्दों का हड्डियों को नोचना और गोश्त के लोथड़ों को लेकर भागना-ऐसा हौलनाक सीन दिलफिगार ने कभी न देखा था। यकायक उसे ख्याल आया, यह लड़ाई का मैदान है और यह लाशें सूरमा सिपाहियों की हैं। इतने में करीब से कराहने की आवाज आयी। दिलफ़िगार उस तरफ फिरा तो देखा कि एक लम्बा-तगड़ा आदमी, जिसका मर्दाना चेहरा जान निकलने की कमजोरी से पीला हो गया है, जमीन पर सर झुकाये पड़ा हुआ है। सीने से खून का फव्वारा जारी है, मगर आबदार तलवार की मूठ पंजे से अलग नहीं हुई। दिलफ़िगार ने एक चीथड़ा लेकर घाव के मुहं पर रख दिया ताकि खून रुक जाये और बोला-ऐ जवाँमर्द, तू कौन है? जवाँमर्द, तू कौन है? जवाँमर्द ने यह सुनकर आँखें खोलीं और वीरों की तरह बोला—क्या तू नहीं जानता मैं कौन हूँ, क्या तूने आज इस तलवार की काट नहीं देखी? मैं अपनी मॉँ का बेटा और भारत का सपूत हूँ। यह कहते-कहते उसकी त्यौरियों पर बल पड़ गये। पीला चेहरा गुस्से से लाल हो गया और आबदार शमशीर फिर अपना जौहर दिखाने के लिए चमक उठी। दिलफ़िगार समझ गया कि यह इस वक्त मुझे दुशमन समझ रहा है, नरमी से बोला-ऐ जवांमर्द, मैं तेरा दुश्मन नहीं हूँ। अपने वतन से निकला हुआ एक गरीब मुसाफिर हूँ। इधर भूलता-भटकता आ निकला। बराय मेहरबानी मुझसे यहाँ की कुल कैफियत बयान कर।
यह सुनते ही घायल सिपाही बहुत मीठे स्वर में बोला-अगर तू मुसाफिर है तो आ और मेरे खून से तर पहलू में बैठ जा क्योंकि यही दो अंगुल जमीन है जो मेरे पास बाकी रह गयी है और जो सिवाय मौत के कोई नहीं छीन सकता। अफ़सोस है कि तू यहाँ ऐसे वक्त में आया जब तेरा आतिथ्य-सत्कार करने के योग्य नहीं। हमारे बाप-दादा का देश आज हमारे हाथ से निकल गया और इस वक्त हम बेवतन हैं। मगर (पहलू बदलकर) हमने हमलावर दुश्मन को बता दिया कि राजपूत अपने देश के लिए कैसी बहादुरी से अपनी जान देता है यह आस-पास जो लाशें तू देख रहा है, यह उन लोगों की हैं, जो इस तलवार के घाट उतरे हैं। (मुस्कराकर) और गोया कि मैं बेवतन हूँ, मगर गनीमत है कि दुश्मन की जमीन पर नहीं मर रहा हूँ। (सीने के घाव से चीथड़ा निकालकर) क्या तूने यह मरहम रख दिया? खून निकलने दे, इसे रोकने से क्या फायदा? क्या मैं अपने ही देश में गुलामी करने के लिए जिन्दा रहूँ? नहीं, ऐसी जिन्दगी से मर जाना अच्छा। इससे अच्छी मौत मुमकिन नहीं।
जवाँमर्द की आवाज मद्धिम हो गयी, अंग ढीले पड़ गये, खून इतना ज्यादा बहा कि खुद-ब-खुद बन्द हो गया। रह-रह-कर एकाध बूंद टपक पड़ता था। आखिरकार सारा शरीर बेदम हो गया, दिल की हरकत बन्द हो गयी और आंखें मुंद गयीं। दिलफ़िगार ने समझा अब काम तमाम हो गया कि मरनेवाले ने धीमे से कहा-भारतमाता की जय! और उनके सीने से खून का आखिरी कतरा निकल पड़ा। एक सच्चे देशप्रेमी और देशभक्त ने देशभक्ति का हक अदा कर दिया। दिलफ़िगार पर इस दृश्य का बहुत गहरा असर पड़ा और उसके दिल ने कहा, बेशक दुनिया में खून के इस कतरे से ज्यादा अनमोल चीज कोई नहीं हो सकती। उसने फौरन खून की बूंद को, जिसके आगे यमन का लाल हेच भी है, हाथ में ले लिया और इस दिलेर राजपूत की बहादुरी पर हैरत करता हुआ अपने वतन की तरफ रवाना हुआ और सख्तियां झेलता हुआ आखिरकार बहुत दिनों के बाद रूप की रानी मलका दिलफ़रेब की ड्यौढ़ी पर जा पहुँचा और पैगाम दिया कि दिलफ़िगार सुर्खरू और कामयाब होकर लौटा है और दरबार में हाजिर होना चाहता है। दिलफ़रेब ने उसे फौरन हाजिर होने का हुक्म दिया। खुद हस्बे मालूम सुनहरे परदे की ओट में बैठी और बोली- दिलफ़िगार, अबकी तू बहुत दिनों के बाद वापस आया है। ला, दुनिया की सबसे बेशकीमत चीज कहाँ है?
दिलफ़िगार ने मेंहदी-रची हथेलियों को चूमते हुए खून का कतरा उस पर रख दिया और उसकी पूरी कैफियत पुरजोश लहजे में कह सुनायी। वह खामोश भी न होने पाया था कि यकायक यह सुनहरा परदा हट गया और दिलफ़िगार के सामने हुस्न का एक दरबार सजा हुआ नजर आया, जिसकी एक-एक नाजनीन जुलेखा से बढ़कर थी। दिलफ़रेब बड़ी शान के साथ सुनहरी मसनद पर सुशोभित हो रही थी। दिलफ़िगार हुस्न का यह तिलिस्म देखकर अचम्भे मे पड़ गया और चित्रलिखित-सा खड़ा रहा कि दिलफ़रेब मसनद से उठी और कई कदम आगे बढ़कर उससे लिपट गयी। गानेवालियों ने खुशी के गाने शुरू किये, दरबारियों ने दिलफ़िगार को नजरें भेंट कीं और चॉँद-सूरज को बड़ी इज्जत के साथ मसनद पर बैठा दिया। जब वह लुभावना गीत बंद हुआ तो दिलफ़रेब खड़ी हो गयी और हाथ जोड़कर दिलफ़िगार से बोली-ऐ जाँनिसार आशिक दिलफ़िगार! मेरी दुआएँ बर आयीं और खुदा ने मेरी सुन ली और तुझे कामयाब व सुर्खरू किया। आज से तू मेरा मालिक है और मैं तेरी लौंडी! यह कहकर उसने एक रत्नजटित मंजूषा मँगायी और उसमें से एक तख्ती निकाली जिस पर सुनहरे अक्षरों से लिखा हुआ था – ‘खून का वह आखिरी कतरा जो वतन की हिफाजत में गिरे दुनिया की सबसे अनमोल चीज है।’