शापित कुन्ति

कुन्ति महाभारत में वर्णित पांडवों की माता थी। वे वासुदेवजी की बहन और भगवान श्री कृष्णा की बुआ थी। महाराज कुन्तिभोज ने कुंती को गोद लिया था। कुन्तिभोज के परम मित्र शूरसेन थे। वे बड़े ही धर्मात्मा थे। कुन्तिभोज के पास सब कुछ तो था किन्तु संतान नहीं थी। राजा कुन्तिभोज संतान के अभाव में हमेशा दुखी और चिंतित रहा करते थे। शूरसेन ने राजा कुन्तिभोज को दुखी देखकर उन्हें वचन दिया था कि वे अपनी पहली संतान उन्हें दे देंगे। शुरसेन की प्रथम संतान पुत्री हुई थी। उन्होंने प्यार से उसका नाम ‘पृथा’ रखा था। अपने वचन के अनुसार शूरसेन ने अपनी पहली संतान पृथा को कुन्तिभोज को सौंप दिया। कुन्तिभोज ने पृथा को अपने घर ले जाकर उसका नाम कुन्ति रख दिया। कुन्ति हस्तिनापुर नरेश महाराज पांडु की पहली पत्नी थी। शास्त्रों में अहिल्या, मंदोदरी, तारा, कुन्ति और द्रोपदी- ये पाँचों देवियाँ नित्य कन्याएँ कही गई हैं। इनका प्रति रोज स्मरण करने से मनुष्य पाप से मुक्त हो जाता है।

एक बार कुन्तिभोज के घर दुर्वासा मुनि आए। कुछ महीनों तक मुनि कुन्तिभोज के यहाँ रुके रहे। कुन्ति ने दुर्वासा मुनि की बहुत ही सेवा की। दुर्वासा मुनि कुन्ति के सेवा भाव को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। वे जब जाने लगे तब कुन्ति को अपने पास बुलाकर बोले, “पुत्री मैं तुम्हारी सेवा से बहुत प्रसन्न हूँ, तुम्हें मैं एक दिव्य मंत्र दे रहा हूँ। तुम इस मंत्र का स्मरण कर के किसी भी देवता को बुलाकर मनचाहा वरदान प्राप्त कर सकती हो।” दुर्वाषा मुनि कुन्ति को मंत्र देकर चले गए।

एक दिन कुन्ति को अचानक दुर्वासा मुनि के द्वारा दिए गए मंत्र का ध्यान आया। उसने सोचा क्यों ना आज मुनि के द्वारा दिए गए मंत्र का परीक्षण कर लें। यह सोच कर कुन्ति ने मंत्र पढ़कर सूर्य देव का आह्वान किया। कुन्ति के आह्वान करते ही सुर्यदेव उसके सामने प्रकट हो गए। भगवान सूर्य को देखकर वह स्तब्ध हो गई। सूर्य देव ने कुन्ति से कहा, तुमने मेरा आह्वान क्यों किया? कुन्ति ने कहा, देव! दुर्वासा ऋषि ने मुझे एक मंत्र दिया था। मैंने उस मंत्र की परीक्षा लेने के लिए मंत्र पढ़कर आपका आह्वान किया, मुझे क्षमा कर दीजिए। सूर्य देव ने कुन्ति से कहा, अब तो तुम्हारे आह्वान पर मैं आ गया हूँ। मैं तम्हें एक पुत्र दूँगा। कुन्ति ने कहा, देव! मैं तो अभी कुवारी हूँ। सूर्य देव ने कुन्ति को सभी चिंताओं से मुक्त करके एक बालक दे दिया। अब कुन्ति बालक को छिपाए तो कैसे छिपाए। उसने लोकलज्जा के भय से बचने के लिए उस नवजात शिशु को एक संदूक में रखकर गंगा में प्रवाहित कर दिया। वह संदूक हस्तिनापुर के अधिरथ नामक एक सारथी को मिला। अधिरथ की पत्नी का नाम राधा था। उसको भी कोई संतान नहीं थी। अधिरथ संदूक में नवजात शिशु को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। वह शिशु बड़ा ही तेजोमयी था। उसके कानों में स्वर्ण कुंडल और छाती पर कवच था। अधिरथ और उसकी पत्नी ने ऐसा बालक आज तक नहीं देखा था। दोनों पति पत्नी उसका पालन-पोषण करने लगे। अधिरथ और राधे द्वारा पालित वह बालक बड़ा होकर कर्ण के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सभी को मालूम था कि माता कुंती के पाँच पुत्र थे। युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव। नकुल और सहदेव कुन्ति के सौत माद्री के पुत्र थे। इसके अलावा कुन्ति का एक और पुत्र कर्ण था। जिसे कुन्ति ने उसे जन्म के तुरंत बाद ही लोक-लज्जा के भय से त्याग दिया था।

महाभारत युद्ध में जब कर्ण मारा गया तब कुन्ति अपनी आँसू नहीं रोक सकी। युधिष्टिर ने माता कुन्ति को विलाप करते देखकर पूछा, ‘तुम इस सूत पुत्र के लिए इतना क्यों रो रही हो’? तब कुन्ति दुखी होकर बोली, ‘कर्ण सूत पुत्र नहीं है, यह तुम सब का बड़ा भाई है।’ इस बात को सुनकर सभी पांडव दुखी और चकित हुए। युधिष्ठिर यह जानकर बहुत क्रोधित हुए कि यदि कर्ण ज्येष्ठ पांडू पुत्र थे, तो माँ ने आजीवन इस रहस्य को छुपा कर क्यों रखा? इसी बात से क्रोधित होकर युधिष्ठिर ने सम्पूर्ण स्त्री जाति को शाप दे दिया कि, कभी भी कोई औरत किसी भी बात को अधिक समय तक गुप्त नहीं रख पायेगी। तब से ये माना जाता है कि औरतें कभी भी, किसी बात को अधिक समय तक गुप्त नहीं रख सकती हैं। वे जरुर किसी न किसी को बता ही देती हैं।

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.