भोलेनाथ का प्रसाद (कहानी)

सावन का महीन था। एक पति-पत्नी करीब दस बारह वर्षों से बाबा धाम सावन के महीने में शंकर भगवान जी को जल चढ़ाने जाया करते थे। किसी ने उन्हें कहा था कि बाबा भोले सबकी मनोकामना पूरी करते हैं। आपकी मनोकामना भी भगवान जरुर पूरी करेंगे। शादी के कई वर्षों बाद भी उन दोनों को कोई संतान नहीं था। जिसके कारण वे दोनों बहुत ही दुःखी और चिंतित रहा करते थे। डॉक्टर से भी वे दोनों सब तरह का परीक्षण करवा चुके थे। डॉक्टर ने बताया था कि आप दोनों में किसी तरह की कोई कमी नहीं है। आप दोनों भगवान पर भरोसा रखिये। वे चाहें तो कुछ भी हो सकता है। दोनों के सामने अब और कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। यह सोचकर दोनों हर वर्ष सुल्तानगंज से जल लेकर ‘बाबा धाम’ दर्शन के लिए जाने लगे। यह बात तो सत्य है कि जब मन थकने लगता है तब शरीर भी थकना शुरू कर देता है। कई वर्षों के बाद जब उन्हें लगा कि अब वे शरीर से भी थकने लगे हैं, तब दोनों ने अपने भाग्य से समझौता करना ही ठीक समझा। उनके भाग्य में संतान सुख शायद नहीं है, यह सोचकर दोनों ने अंतिम बार सुल्तानगंज में जल भरते हुए संकल्प किया। मन ही मन कहा कि हे बाबा! अब हमारा आना मुमकिन नहीं है। हम दोनों आपके दरबार में पंद्रह-सोलह वर्षों से आ रहे हैं लेकिन अभी तक हमारी मनोकामना पूरी नहीं हुई है। यह कहकर वे दोनों सुल्तानगंज से जल लेकर बाबाधाम के लिए ‘बोलो बम’ का नारा लगाते हुए चल पड़े। वहाँ पहुंचकर दोनों ने पूजा-पाठ किया और बाबा से आशिर्वाद लेकर घर वापसी के लिए निकल पड़े। लौटते समय दोनों दुखी मन से बस में बैठकर कुछ सोच रहे थे कि बस खुल गई। बस में बैठे सभी सवारी एक दूसरे से बातें कह रहे थे किन्तु ये दोनों शांत बैठे कुछ सोच रहे थे। अचानक बस का ब्रेक लगा और बस रुक गई। बस में बैठे सभी सवारी घबराने लगे। अरे! यह क्या हुआ बस क्यों रुक गई। बस चालक बोला आप सब बैठिए मैं देखकर आता हूँ। बहुत कोशिश करने के बाद भी बस ठीक नहीं हुआ। बस में बैठे सभी सवारियों ने कहा, रात का समय है। हम सब कहाँ जायेंगे, कहाँ रहेंगे? बस चालक ने कहा आप सब घबराइए नहीं हम रात में ठहरने के लिए कहीं न कहीं व्यवस्था जरुर करेंगे। आप सब को कोई परेशानी नहीं होगी।

थोड़ी ही दूर पर एक आश्रम था। उसी आश्रम में बस वाले ने सभी सवारियों को ठहरने की व्यवस्था कर दिया। बस चालक ने कहा, आप सब यहाँ आराम कीजिए मैं बस के पास जा रहा हूँ। वही आराम करूँगा। यह कहकर बस चालक चला गया। सभी यात्री आश्रम में रुके, खाना-खाया और अपनी-अपनी चादर बिछाकर आराम से सो गए। सभी  यात्री नींद में सो रहे थे लेकिन इन दोनों पति-पत्नी को नींद नहीं आ रही थी। कभी इधर कभी उधर दोनों करवाटे बदलते रहें। कुछ समय पश्चात् पति को तो नींद आ गई लेकिन पत्नी को नींद नहीं आ रही थी। उसने थोड़ी देर बाद अपने पति से पूछा आप सो गए क्या? पति ने कुछ जबाब नहीं दिया। वह समझ गई कि, शायद सो गए। पत्नी करवटें बदलती रही और अपने भाग्य को कोसती रही।

थोड़ी देर बाद उसे एक नवजात शिशु की रोने की आवाज सुनाई पड़ी। उसे लगा शायद मेरे मन का भ्रम है। कुछ समय के बाद उसे फिर वही आवाज सुनाई दी जैसे कोई छोटा नवजात रो रहा हो। वह उठकर चारों तरफ देखने लगी लेकिन कहीं कुछ नहीं दिखा। वह अपने पति को उठाकर बोली, ऐ जी! देखिये न कोई बच्चा रुक-रुककर रो रहा है। पति ने कहा अरे भागवान! तुम हमेशा बच्चे के बारे में सोंचती रहती हो इसलिए तुम्हें सपने में भी बच्चा ही दिखाई देता है। चुप-चाप भोले बाबा का नाम लेकर सो जाओ। यह तुम्हारा भ्रम है। इतनी रात को बच्चा कहाँ से रोएगा? पत्नी ने कहा तुम ध्यान से सुनों कही बच्चा जरुर रो रहा है। बच्चे की आवाज आ रही है। पत्नी के कहने पर पति ने ध्यान लगाकर आवाज को सुनने की कोशिश करने लगा। थोड़ी देर के बाद सच में रोने की आवाज सुनाई पड़ी। पति बोला, चलो बाहर चल कर देखते है। वे दोनों टार्च लेकर धीरे से बाहर निकल पड़े। टार्च के सहारे वे दोनों उसी दिशा की ओर आगे बढ़ने लगे जिस दिशा से बच्चे कि रोने की आवाज आ रही थी। जैसे-जैसे वे दोनों आगे बढ़ने लगे वैसे-वैसे उसकी आवाज साफ सुनाई पड़ने लगी। जैसे ही टार्च की रौशनी बच्चे पर पड़ी वह शांत हो गया। उन दोनों ने झट से कपड़े में लपेटे हुए बच्चे को उठा लिया। पत्नी ने तो बच्चे को सीने से लगते हुए कहा हे! बाबा भोले नाथ! तुम सच में धन्य हो। तुमने तो मेरी सुनी गोद भर दी। अपने पति के तरफ देखते हुए बहुत खुश हुई और बच्चे को दिखाते हुए बोली- देखिये न बाबा ने मेरी गोद भर दी। यह कहकर दोनों बच्चे को लेकर आश्रम में लौट आए। आश्रम में लौटते ही उन दोंनों ने सारी घटना अपने साथ वालो को बताया। वे सब भी उस नवजात को देख कर खुश हुए, कुछ तो अनाप-सनाप बातें भी करने लगे, पता नहीं किसका बच्चा है? किसने फेंका होगा? इसी बीच एक बुजुर्ग बोला अरे! छोड़ो चाहे जिसका भी बच्चा हो बच्चा तो बच्चा है। एक महिला ने उसकी पहचान करते हुए कहा अरे! यह तो लड़का है। दूसरे ने कहा हमने लड़की फेंकते हुए सुना था, लेकिन लड़का भी लोग फेंकते है। यह पहली बार देख रही हूँ। बातें करते-करते सबेरा हो गया। पति बोला पहले हम इस बच्चे को डॉक्टर के पास ले चलेंगे इसका चेक अप करवाते है और पुलिस के पास भी जाना होगा। इसकी रिपोर्ट लिखवाने के लिए। पत्नी मन ही मन डर रही थी, पता नहीं क्या होगा? दोनों बच्चे को लेकर पहले डॉक्टर के पास गए। डॉक्टर को सारी बातें बताते हुए दोनों ने कहा, डॉक्टर साहब यह बच्चा अभी-अभी हमें पास के जंगल से मिला है। डॉक्टर ने बच्चे को चेक करते हुए कहा कि बच्चा एक दम ठीक है, थोड़ी सी ठंढ लगी है। मैं दवा दे देता हूँ, सब ठीक हो जायेगा। डॉक्टर ने कहा आप दोनों बच्चे को इसतरह नहीं ले जा सकते हैं। मैं पुलिस को यहीं बुलाता हूँ। स्त्री ने पूछा डॉक्टर साहब यह बच्चा अभी कितने दिन का होगा। डॉक्टर ने कहा, दो-तीन दिन का है। तब तक पुलिस भी आ गई। पुलिस ने उन दोनों से सभी जानकारियाँ ले लिया और कहा अगर कोई खोजने के लिए आयेगा तो हम आप दोनों से संपर्क करेंगे। अब आप इसे लेकर जा सकते हैं।

वे दोनों बच्चे को लेकर आश्रम में आ गए। बस भी ठीक हो गया था। दोनों खुश होकर बच्चे के साथ घर लौट आये। घर पहुँचने के बाद दोनों ने अपने पड़ोसियों, सगे-संबंधियों आदि को सारी घटनाएँ बता दिया। सभी खुश हुए। उन्होंने बच्चे का नाम रूद्र रखा। समय के अनुसार रूद्र पढ़-लिख कर बड़ा आदमी बन गया। रूद्र के विवाह के लिए रिश्ते आने लगे। एक दिन माँ ने पूछा, बेटा हम तुम्हारी शादी करना चाहते हैं। आपने अगर कोई लड़की पसंद किया है तो हमें बता दो या मेरी पसंद से करोगे। रूद्र ने कुछ सोचकर माँ से कहाँ, माँ मुझे एक सप्ताह का समय दीजिये, फिर मैं आपको बताऊंगा। एक सप्ताह बाद रूद्र ने अपनी माँ से बोला, माँ मेरे साथ एक लड़की काम करती है। उसका नाम सुमन है। मैं उसे दो वर्षों से जनता हूँ, और पसंद भी करता हूँ। मैं चाहता हूँ कि आप और बाबूजी भी उसे देख ले तो अच्छा रहेगा। बेटे के पसंद से माँ-बाबूजी खुश थे। रूद्र और सुमन कि शादी हो गई। दोनों परिवार बहुत खुश थे। सुमन अपने सास-ससुर को बहुत प्यार करती थी। सास-ससुर भी सुमन को अपनी बेटी की तरह मानते थे। सुमन को इस बात का पता नहीं था कि रूद्र उनका बेटा नहीं है। कुछ वर्षों के बाद रूद्र की माँ का स्वर्गवास हो गया। माँ के स्वर्गवास के पश्चात् रूद्र के पिता महेश बहुत उदास रहने लगे। उन्हें पत्नी से बिछड़ने का गम अधिक सताने लगा था। इधर बहु सुमन भी अपने ससुर से  नाखुश होने लगी थी। रूद्र को महसूस होने लगा था कि सुमन का व्यवहार अब बाबूजी के प्रति ठीक नहीं है लेकिन रूद्र इस बात को कभी भी उजागर नहीं होने देता था। रूद्र अपने बाबू जी से बहुत प्यार करता था। बाबू जी के किसी-किसी बात का सुमन रूद्र से शिकायत भी करती थी। रूद्र सब सुनकर भी अनसुना कर दिया करता था।

रोज कि तरह परिवार के सभी व्यक्ति नाश्ता करने बैठे थे। उस दिन महेश जी बोले बहु मुझे थोड़ा दही देना। सुमन बोली, बाबूजी दही खत्म हो गया है। दूध में जोरन डाली हूँ। दोपहर में खाने के समय तक हो जाएगा। रूद्र कुछ भी नहीं बोला। वह अपना दही बाबुजी को देते हुए बोला, बाबूजी आप खा लीजिये। बाद में रूद्र ने देखा कि रसोईघर घर में दही थी। इस तरह कि घटनाएँ पहले भी दो-तीन बार हो चुकी थी। पर रूद्र कभी भी सुमन से कुछ जाहिर नहीं होने देता था। इसतरह से समय गुजरता रहा महेश जी कभी भी अपनी बहु की कोई भी बात किसी से नहीं कहते थे लेकिन मन ही मन उदास और दुखी रहते थे। बेटा अपने पिता के दुःख को समझ भी रहा था और महसूस भी कर रहा था। रविवार का दिन था। उस दिन बहु ने रूद्र के पसंद का भोजन बनाया था। महेश भी खुश थे। तीनों भोजन करने के लिए बैठे थे। उस दिन सुमन ने किसी को दही नहीं दिया। महेश जी ने पूछा, सुमन मुझे थोडा दही चाहिए। है तो दे दो। सुमन ने झट से कहा, नहीं बाबूजी आज दही नहीं बनाई भूल गई। रूद्र चुप से रसोई में जाकर देखा, दही थी। वह कुछ भी नहीं बोला। वह अपनी पत्नी के स्वभाव से परेशान और दुखी था।

एक दिन अचानक उसने अपनी पति से कहा, तुम अपना और हमारा सभी सामान बाँध  लेना। हम अब यहाँ बाबूजी के साथ नहीं रहेंगे। उसने दूसरे दिन अपने बाबूजी से बोला, बाबूजी हमारे वजह से आपको बहुत परेशानी हो रही है। इसलिए हमने यह फैसला किया है कि हम अब अलग रहेंगे। महेश जी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि पत्नी के स्वर्ग सिधारते ही उन्हें रूद्र छोड़कर चला जाएगा। रूद्र की बात सुनकर उन्हें रातभर नींद नहीं आई। वे रात भर सोचते रहे। आखिर मेरा क्या कसूर है? रूद्र ने ऐसा क्यों कहा, मैं यहाँ अब अकेले कैसे रहूँगा? सुबह होते ही घर की घंटी बजी। रूद्र के बाबूजी सोचने लगे। अभी इतना सबेरे-सबेरे कौन आया होगा? दरवाजा खोलते ही उन्होंने देखा, एक आदमी बजुर्ग महिला के साथ खड़ा है। उस अनजान व्यक्ति ने कहा, मुझे रूद्र जी से मिलना है। महेश जी बोले, देखो रूद्र तुमसे कोई मिलने आया है। रूद्र उन आगंतुक को अन्दर बुलाकर बोला, आप लोग बैठिए। उसने अपने बाबू जी से परिचय करवाते हुए कहा, बाबूजी ये नंदनी जी है और ये वृधा आश्रम के मनेजर है। ये इन्हें हमारे पास छोड़ने आए है। बाबूजी नंदनी जी मेरी माँ जैसी माँ बन सकती है या नहीं, यह मुझे नहीं पता, लेकिन आपको इस उम्र में एक साथी की आवश्यकता है, जो आपकी देख-रेख कर सके इसलिए मैं वृधा आश्रम से इन्हें अपनी माँ बनाकर आपके लिए लाया हूँ। अब आप दोनों इस घर में आराम से रहिए। नंदनी जी के साथ आप अपनी जिंदगी जिए, यही मेरी अभिलाषा है। बाबूजी मैं बहुत दिनों से देख रहा था कि आप के साथ न्याय नहीं हो रहा था। मेरी पत्नी और आपकी बहु सुमन का व्यवहार देखकर मुझे यह सब करना आवश्यक हो गया था। अगर सुमन आपको अपने पिताजी की तरह व्यवहार करती तो शायद मुझे यह सब करने की जरुरत नहीं पड़ती। यह सब करने का मेरा एक ही मकसद है। रूद्र अपनी पत्नी से कहा, सुमन तुम यहाँ से चलो यह घर बाबूजी का है। हमने किराए पर एक माकन ले लिया है। हम वही रहेंगे। हम माँ और बाबूजी से मिलने आया करेंगे। रूद्र अपने पिता के घर के पास ही किराया पर एक मकान ले लिया था, जिससे कि वह अपने बाबूजी का देखभाल भी कर सके। नंदनी जी का भी इस दुनिया में अब कोई नहीं था । एक बहुत बड़ी दुर्घटना में उनके अपने सभी घर के लोग स्वर्ग सिधार गए थे  और सिर्फ वही बच गई थी। वे भी जीना नहीं चाहती थी। इस स्थिति में उन्हें भी जीने का सहारा मिल गया। अब नंदनी और महेश जी एक साथ रहकर बाकी जिंदगी जीने लगे।

रूद्र, महेश जी का अपना बेटा नहीं था। उसने जो किया वह शायद अपना बेटा नहीं करता। रूद्र भगवान भोलेनाथ के आशीर्वाद से महेश जी को बाबा धाम की पन्द्रह वर्षों की यात्रा के बाद प्रसाद के रूप में मिला था।

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