वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण (दसानन) ‘पुलस्य’ मुनि का पौत्र और ‘विश्रवा’ का पुत्र था। विश्रवा की ‘वरवर्णिनी’ और ‘कैकसी’ नाम की दो पत्नियाँ थी। रावण कैकसी का पुत्र था। रामायण में जब रावण सिंहासन पर बैठा रहता था, तब रावण के पैर के नीचे एक नीला रंग का व्यक्ति पेट के बल पर लेटा हुआ दिखाया गया है। यह कौन था? हम इस प्रश्न के उत्तर को ‘शनि संहिता’ के अनुसार जानने का प्रयास करते हैं।
कथा के अनुसार- लंकापति रावण एक महान योद्धा, पण्डित और बहुत बड़ा ज्योतिष था। रावण ने सभी देवताओं तथा नौ ग्रहों को पराजित कर उनका राज्य छीन लिया था। वह सभी ग्रहों को मुँह के बल लेटा कर अपने पैरों के नीचे रखता था। जब उसका पुत्र मेघनाथ पैदा होने वाला था, तब रावण ने सभी ग्रहों को आदेश दिया कि उसके होने वाले पुत्र को उच्च राशि में स्थापित करें। जिससे उसका होने वाला पुत्र अजेय हो जाए। रावण के भय से ग्रस्त सभी ग्रहों को भविष्य में होने वाली घटनाओं को लेकर बड़ी चिंता सताने लगी थी। फिर भी रावण से भयभित होकर वे सभी ग्रह अपनी उच्च राशि में स्थित हो गए। पर मेघनाथ के जन्म के ठीक पहले भगवान शनि देव जी ने अपनी स्थिति बदल दी थी। शनि देव को काल कहा गया है और ये न्यायाधीश भी हैं। इसलिए ये सत्य से विचलित नहीं होकर अपने नैसर्गिक कर्म को करना अधिक श्रेष्ट समझते हैं। इस कारण मेघनाथ अजेय व दीर्घ आयु नहीं हो सका। जिससे रावण क्रोधित होकर शनि भगवान के पैर पर गदा से प्रहार कर दिया। शनी देव अपनी दृष्टि से रावण की शुभ स्थिति को खराब करने में सक्षम हो गये थे। इतना करने के बाद भी जब रावण का क्रोध शांत नहीं हुआ तब उसने शनि भगवान को और भी अधिक अपमानित करने और उनकी वक्र दृष्टि से लंका को बचाने के लिए उन्हें औंधे मुँह करके अपने सिंहासन के नीचे लेटा दिया। वह भगवान शनिदेव के पीठ को अपना पायदान बना लिया। मुँह के बल जमीन पर लेटे होने के कारण शनिदेव कुछ नहीं कर सकते थे। तब नारद मुनि लंका आए और ग्रहों को जीतने के कारण रावण की बहुत प्रशंसा किए। नारद मुनि ने कहा, हे रावण! तुम्हें अपना यश इन ग्रहों को दिखाना चाहिए लेकिन जमीन पर मुंह के बल होने के कारण ये देवता गण कुछ नहीं देख सकते हैं। रावण ने नारद की यह बात मान ली और ग्रहों का मुख आसमान की ओर कर दिया। तब शनि भगवान ने अपनी दृष्टि से रावण की दशा खराब कर दी। रावण को बात समझ में आई। इसके बाद रावण ने शनि भगवान को कारागृह में डाल दिया। जिससे वह भाग न सके। जेल के द्वार पर उसने एक शिवलिंग स्थापित कर दिया। ताकि उस शिवलिंग पर पांव रखे बिना शनि देव भाग ही ना सके। हनुमान जी लंका में आकर शनि देव को अपने सिर पर बिठाकर मुक्त कराये थे। शनी के सिर पर बैठने से हनुमान जी कई प्रकार के बुरे चक्रों में पड़ सकते थे। यह जानकर भी उन्होंने ऐसा ही किया। इससे प्रसन्न होकर शनी देव ने हनुमान जी को अपने कोप से हमेशा मुक्त होने का आशीर्वाद दिया। शनि देव हनुमान जी से बोले, हे महावीर! मैं आपका सदा ऋणी रहूँगा। तत्पश्चात हनुमान जी ने शनिदेव को दिव्यदृष्टि देकर अपने रूद्र रूप का दर्शन कराया। उस समय शनि देव हनुमान जी का चरण पकड़ लिए और उनकी आँखों से प्रेम अश्रु बहने लगे। शनि देव जी ने कहा हे प्रभु! मैं कभी भी आपके भक्तों को पीड़ित नहीं करूँगा। इसीलिए कहते हैं कि जो भी हनुमान जी की आराधना करता है, वह शनिदेव की कोप दृष्टि से दूर रहता है।
बहुत ही ज्ञानवर्धक। हनुमान जी की और शनि भगवान की कथा। 🙏🙏
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