ज्ञान का अहंकार (कहानी)

महाकवि कालिदास के कंठ में साक्षात माता सरस्वती का वास था। कालिदास को शास्त्रार्थ में कोई भी पराजित नहीं कर सकता था। अपार यश, प्रतिष्ठा और सम्मान को पाकर कालिदास जी को अपने विद्वता और ज्ञान पर घमंड हो गया था। उन्हें लगा कि उनसे बड़ा ज्ञानी कोई नहीं है। एक बार पड़ोसी राज्य से शास्त्रार्थ के लिए कालिदास जी को निमंत्रण आया था। निमंत्रण पाकर वे बहुत खुश हुए। वे विक्रमादित्य से अनुमति लेकर पड़ोसी राज्य के लिए चल पड़े। गर्मी का मौसम, धूप बहुत तेज था। कालिदास जी को बहुत जोर से प्यास लगी। वे प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश करने लगे। थोड़ी दूर पर उन्हें एक झोपड़ी दिखाई दिया। आगे बढ़े तो उन्हें झोपड़ी के पास ही एक कुआँ भी दिखाई दिया। उस समय झोपड़ी में से एक बालिका मटका लेकर निकल रही थी। बालिका ने उस कुआँ से पानी भरा और जाने लगी तभी कालिदास बोले- मुझे बहुत प्यास लगी है, जरा मुझे पानी पिला दो। उस बालिका ने पूछा आप कौन हो? मैं आपको जानती नहीं हूँ, पहले आप अपना परिचय दीजिए। कालिदास को लगा भला मुझे कौन नहीं जानता है। मुझे परिचय देने की क्या जरुरत है। कालिदास प्यास से बेहाल हो रहे थे। कालिदास जी बोले- बालिका अभी तुम छोटी हो इसलिए तुम मुझे नहीं जानती हो, घर में यदि कोई बड़ा है तो उसे भेजो, वे मुझे देखते ही पहचान लेंगे। मैं बहुत विद्वान व्यक्ति हूँ। कालिदास घमंड भरे शब्दों में बोले। वह बालिका कालिदास जी के शब्दों से अप्रभावित होकर बोली- आप मेरे एक प्रश्न का उत्तर दीजिये। संसार में सबसे बलवान कौन है? कालिदास बोले मुझे नहीं मालूम, तुम्हीं बताओं और मुझे पानी पिला दो। दुनिया में सिर्फ दो ही बलवान हैं और मैं उन दोनों को जानती हूँ। आप अगर अपनी प्यास बुझाना चाहते हैं तो उन दोनों का नाम बताइए। कालिदास जी बोले- मुझे बहुत जोर से प्यास लगी है मेरा गला सूख रहा है। तुम्ही बता दो। बालिका बोली- दो बलवान हैं- ‘अन्न’ और ‘जल’। भूख और प्यास में इतनी शक्ति है कि बड़े से बड़ा बलवान और शक्तिशाली को भी झुका देता है। आप देखिये प्यास ने आपकी क्या हालत बना दी है। बालिका के तर्क और उतर को सुनकर कालिदास जी आश्चर्य चकित हो गए। बड़े-बड़े ज्ञानी और विद्वानों को पराजित कर चुके कालिदास एक छोटी सी बालिका के सामने निरुत्तर खड़े थे। बालिका ने पुनः कालिदास जी से पूछा- सत्य बताइए, आप कौन हैं? बालिका जाने की तैयारी में थी। कालिदास थोड़ा विनम्र होकर बोले- मैं बटोही हूँ, बालिके! बच्ची मुस्कुराते हुए बोली- आप अभी भी झूठ बोल रहे हैं। संसार में दो ही बटोही हैं। उन दोनों को मैं जानती हूँ, आप बताइए वे दोनों कौन हैं? प्यास के कारण कालिदास जी की बुद्धि क्षीण हो रही थी। वे बोले पहले मुझे पानी पिला दो। बच्ची बोली- आप स्वयं को बड़ा विद्वान बता रहे हैं और आप तो यह भी नहीं जानते हैं कि एक स्थान से दूसरे स्थान तक बिना थके जाने वाले बटोही को क्या कहते हैं। कालिदास जी बोले तुम्हीं बता दो। बच्ची बोली- बटोही दो ही हैं, एक चन्द्रमा और दूसरा सूर्य जो बिना थके चलते रहते हैं। आप तो थक गए हैं। भूख और प्यास से आप बेदम हो रहे हैं, तो आप बटोही कैसे हो सकते हैं? इतना कहकर बालिका पानी से भरा मटका उठाकर झोपड़ी के भीतर चली गई। यह देखकर कालिदास और भी दुखी हो गए। इतना अपमानित वे जीवन में कभी नहीं हुए थे। प्यास से कालिदास जी की शक्ति कम होते जा रही थी। दिमाग चकराने लगा था। कालिदास जी बहुत ही मायूस मन से झोपड़ी के तरफ देखने लगे, तभी अन्दर से एक वृद्ध स्त्री निकली। उसके हाथ में खाली मटका था। वह कुएं से पानी भरने लगी। कालिदास काफी विनम्र होकर बोले- मुझे पानी पिला दीजिए, बड़ा पुण्य होगा। वह वृद्ध महिला बोली- बेटा मैं तुम्हें नहीं जानती हूँ। अपना परिचय दो। मैं अवश्य तुम्हें पानी पिला दूंगी। कालिदास ने कहा- मैं मेहमान हूँ, बहुत प्यास लगी है कृपया पानी पिला दीजिए। स्त्री बोली तुम मेहमान कैसे हो सकते हो? संसार में दो ही मेहमान हैं। पहला धन और दुसरा यौवन, इन्हें जाने में समय नहीं लगता है। सत्य बताओ तुम कौन हो? अब तक के सभी तर्कों से पराजित होकर कालिदास जी हताश होकर बोले- मैं सहनशील हूँ। अब मुझे पानी पिला दीजिए। नहीं, तुम सहनशील नहीं हो स्त्री बोली। सहनशील तो दो ही हैं। पहली धरती जो पापियों और पुण्यात्माओं सबका बोझ सहती है। माँ धरती की छाती चीरकर बीज बो देने के बाद भी वे हमें अनाज का भंडार देती हैं। दूसरा पेड़ हैं जिसे जितना भी पत्थर मारो फिर भी वे हमें मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं हो सच बताओ तुम कौन हो? अब कालिदास प्यास से मूर्च्छा की स्थिति में हो गए थे और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले- मैं हठी हूँ। वह स्त्री बोली- फिर असत्य बोल रहे हो। हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरा केश, इन्हें कितना भी काटो फिर भी बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहिए ब्राह्मण! आप कौन है? अब कालिदास जी पूरी तरह से अपमानित और पराजित हो गये थे, बोले- फिर तो मैं मूर्ख हूँ। नहीं तुम मुर्ख कैसे हो सकते हो। मुर्ख दो ही हैं। पहला ‘राजा’ जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है और दूसरा ‘दरबारी पंडित’ जो राजा को प्रसन्न करने के लिए गलत बात पर भी तर्क करके उसे सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है। अब कालिदास प्यास के मारे कुछ भी नहीं बोल पा रहे थे। ऐसी स्थिति में वे उस वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाते हुए बोले मुझे पहले पानी पिला दीजिए। वृद्धा ने कहा- उठो वत्स! उनकी आवाज सुनकर कालिदास जी ने ऊपर देखा तो साक्षात माँ सरस्वती उनके सामने खड़ी थी। वत्स शिक्षा से ज्ञान होता है अहंकार नहीं। तुमने शिक्षा के बल से प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को अपनी उपलब्धि समझ लिया था। तुम्हें अहंकार हो गया था। तुम्हारे इसी अहंकार को मिटाने के लिए मुझे ये स्वांग करना पड़ा। कालिदास जी को अपनी गल्तियों का समझ हो गया। उन्होंने माँ सरस्वती से माफी मांगी। और वे वहा से भर पेट पानी पीकर चल पड़े। इस कहानी से हमें यह सीख मिलता है की ज्ञान का घमंड या अहंकार कभी भी नहीं करना चाहिए और दूसरे के ज्ञान को कभी कम नहीं समझना चाहिए।

1 thought on “ज्ञान का अहंकार (कहानी)”

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.