बचपन के दिन (कविता)

मनुष्य के जीवन का सबसे सुनहरा, खुबसूरत और चिंता मुक्त पल बचपन है। जिसे फिर से जीने का मन करता है लेकिन बिता हुआ समय कभी भी वापस नहीं आता है। सिर्फ वो यादें ही रहती है, जिसे फिर से एक बार जीने का मन करता है।

वो बचपन की लोरी “चंदा मामा दूर के” याद आने लगी
दादी-नानी की परियों और राजा-रानी की कहानियाँ याद आने लगी।
बचपन के खेल-खिलौने, छुपन-छुपाई, पिट्टो, गिल्ली-डंडा याद आने लगी
अब इस खालीपन में मुझे बचपन के दिनों की याद सताने लगी।।

वो कच्चे मिट्टी का सुन्दर सा घर, जिसमें सब थे एक साथ याद आने लगी
वो खेत-खलिहान, वो इमली का पेंड़, उसकी छाँव में खेलना याद आने लगी।
घर के सामने वाला कुआँ जिससे हम भरते थे पानी याद आने लगी
वो आम के बगीचे में खेलना, गंगा जी में नहाना, याद आने लगी ।।

सहेलियों के साथ गुडियों के खेल-खिलौने याद आने लगी
वो दादी का प्यार, गांव वालों का दुलार याद आने लगी ।
कहाँ चले गए सब लोग, अब दीखते नहीं कहीं, उनकी याद आने लगी
आज बचपन के वो बीते हुए सुनहरे दिन की याद आने लगी ।।

काश! ऐसा होता की उन दिनों की दीख जाती एक झलक,
वो बचपन के दोस्त, चाचा-चाची के स्नेह वाले दिन की याद आने लगी।
भाई-बहनों के साथ बीताया बचपन का वो दिन जहाँ नहीं कोई स्वार्थ
ना ही कोई किसी से कुछ पाने की अपेक्षा, अब उस दिन की याद सताने लगी।।

वो ठाकुर की पोखर में कागज की नाव चलाने के दिन याद आने लगी
वो बारिश की शाम और खेतों से आती झींगुर की गान याद आने लगी।
वो बचपन की लोरी “चंदा मामा दूर के” याद आने लगी
अब इस खालीपन में मुझे बचपन के दिनों की याद सताने लगी।।

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.