साहित्य शब्द की व्युत्पति-
‘सहितस्य भाव साहित्य्’ अथार्त ‘सहित’ का भाव साहित्य है।’
सहित- स + हित = अर्थात जिसमे सभी के हित का भाव हो, वह साहित्य है।
सहित- शब्द और अर्थ का स्वभाव संयोजन है।
साहित्य की परिभाषाएँ:
विश्वनाथ क्व शब्दों में- “वाक्यं रसात्मक काव्यम्।”(रसात्मक वाक्य काव्य है)
आचार्य भामह के शब्दों में- “शब्दार्थों सहितौ काव्यम् गद्दं पद्दं च तद्धिधा” (शब्द और अर्थ सहित साहित्य काव्य है, जो गद्द एवं पड्ड के भेद से दो प्रकार का होता है।)
आचार्य जगन्नाथ के शब्दों में- “रमणीयार्थप्रतिपादकः शब्दः काव्यम्।” (रमणीय अर्थ का प्रतिपादन करने वाला शब्द काव्य है।)
महावीर प्रसाद के शब्दों में- “ज्ञान राशि के संचित कोश का नाम साहित्य है।”
महावीर प्रसाद के शब्दों में- “अंतः कारण की वृतियों का चित्र काव्य है।”
डॉ नगेन्द्र के शब्दों में- “साहित्य आत्माभिव्यक्त जीवन की अभिव्यक्ति है।”
प्रेमचंद के शब्दो में- “साहित्य जीवन की आलोचना है।”
प्रेमचंद के शब्दो में- “साहित्य उसी रचना को कहेंगे जिसमे कोई सच्चाई प्रकट की गई हो, जिसमे दिल और दिमाग पर असर डालने का गुण हो”
बालकृष्ण भट्ट के शब्दों में- “साहित्य जन समूह के हृदय का विकास है।”
श्यामसुन्दरदास के शब्दों में- “साहित्य वह है जिसमे जो कुछ लिख गया है। वह कला के उद्देश्यों की पूर्ति करता है।”
प्रेमचंद के शब्दो में- “हमारी कसौटी पर वही साहित्य खड़ा उतरेगा जिसमे उच्च चिंतन हो स्वाधीनता का भाव हो, सौंदर्य का सार हो।”
अज्ञेय के शब्दों में- “कविता सबसे पहले और अंत में शब्द है।”
कॉलरिज के शब्दों में- “सुंदर शब्दों का सुंदर पद क्रम काव्य है।”
हडसन के शब्दों में- “भाव और कल्पना के माध्यम से जीवन की व्याख्या काव्य है।”
साहित्य के तत्व:
साहित्य के निम्न चार तत्व हैं- भाव तत्व, बुद्धि तत्व, कल्पना तत्व, शैली तत्व
भाव तत्व- भावतत्व काव्य का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। इसे भारतीय आचार्यों ने साहित्य की आत्मा माना है। भाव तत्व के अभाव में साहित्य निष्प्राण व निर्जीव हो जाता है। सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर जब साहित्यकार उद्दात भावभूमि पर पहुँचकर कुछ सीखता है, तभी वह रचना सत् साहित्य की महिमा से विभूषित होती है।
बुद्धि तत्व- इसे विचार तत्व भी कहा जाता है। बुद्धि तत्व, भाव एवं कल्पना तत्वों में समन्वय करता है। यह तत्व साहित्य को विश्वसनीय बनाता है।
विलियम्स ने बुद्धि तत्व के बारे में लिखा है- “बुद्धि या विचार तत्व काव्य को ग्राह्य बनाता है।”
कल्पना तत्व- कॉलरिज के शब्दों में- “कल्पना काव्य की सृजन शक्ति है, काव्य में आनंद का समावेश भाव व कल्पना तत्वों से ही होता है।
कॉलरिज के शब्दों में- “कल्पना के माध्यम से हम अतीत एवं भविष्य की वस्तुवों का साक्षात्कार कर सकते है।”
शैली तत्व– काव्य के प्रथम तीन तत्व भाव पक्ष से संबंधित है तथा शैली तत्व का संबंध कला पक्ष से है।
टी० एस० इलियट के शब्दों में- “कथन का विशिष्ट तरीका शैली है तथा शैली ही काव्य है।”
साहित्य का स्वरुप:
साहित्य को मुख्यत तीन भागों में बाँटा गया है- 1. पद्द 2. गद्द 3. चंपू
1.पद्द-
पद्द के दो भाग हैं –
(क) प्रबंध काव्य
(ख) मुक्तक काव्य (चालीसा, शतक, सतसई, हजारा, पच्चीसी, दशक, बावनी, पच्चीसी आदि)
प्रबंधकाव्य के तीन भेद हैं – (क) महाकाव्य (ख) एकांतककाव्य (ग) खंडकाव्य
2. गद्द- (गद्द विचार प्रधान रचना है।)
गद्द के दो प्रकार है- (क) दृश्य (ख) श्रव्य
दृश्य- नाटक, एकांकी, रूपक, भाण, डिम, वीथी, उप-रूपक, प्रहसन, समवकार, सट्टक, ईहामृग
श्रव्य- निबंध, कहानी, उपन्यास, रेखाचित्र, संस्मरण, फीचर, यात्रावृत्त, जीवनी, आत्मकथा, साक्षात्कार, डायरी, आदि।
3. चंपू- गद्द-पद्द मिश्रित रचना चंपू काव्य है।
पद्द की परिभाषा-
नलिन विलोचन शर्मा शब्दों में – “भाव व लय प्रधान रचना है पद्द है।”
पाणिनि के शब्दों में- “छंद युक्त रचना पद्द है।”
पद्द के मुख्यतया दो भेद है- (क) प्रबंधकाव्य (ख) मुक्तक काव्य
प्रबंधकाव्य की परिभाषा- वह काव्य रचना जिसमें पद एक दूसरे से पूर्वापर संबंध रखते हो एक को हटा देने पर दूसरा पद अधूरा प्रतीत हो उसे प्रबंध काव्य कहते है।
प्रबंधकाव्य:
परिभाषा- वह रचना जिसके पद परस्पर एक दूसरे से जुड़े हो तथा एक दूसरे पर निर्भर हो उसे प्रबंध काव्य कहते है।
जैसे- महाभारत, रामायण, प्रियप्रवास प्रबंध काव्य है।
प्रबंधकाव्य के तीन भेद है- (क) महाकाव्य (ख) खण्ड काव्य (ग) एकांतिक काव्य
महाकाव्य:
महाकव्य का अर्थ- महान् काव्य / विशाल काव्य
परिभाषा- महाकाव्य के लिए अंग्रेजी में Epick (एपिक) शब्द का प्रयोग किया जाता है। महा काव्य भारतीय साहित्य की सर्वश्रेष्ठ, प्राचीन एवं लोकप्रिय विधा है। “वह काव्य जिसमे महान् चरित्र, महान उद्देश्य और गरिमामय उद्दात शैली होती है उसे महाकाव्य कहते है।”
महाकाव्य- रामचरितमानस, पद्मावत, कामायनी, साकेत आदि।
महाकाव्य के लक्षण:
महाकाव्य सर्गबद्ध होना चाहिए, महाकाव्य में कम से कम आठ सर्ग होना चाहिए। सर्गों का नामकरण कथा के आधार पर होना चाहिए और प्रत्येक सर्ग के अंत में आगामी कथा की सूचना होनी चाहिए।
महाकाव्य का नायक देवता या उच्च कुल में उत्पन्न धीरोदात्त गुणों से संपन्न होना चाहिए।
महाकाव्य का कथानक ऐतिहासिक, पौराणिक या लोक प्रसिद्ध होना चाहिए।
महाकाव्य का प्रधान रस श्रृंगार, वीर, शांत होना चाहिए तथा उसमे सभी रसों का चित्रण भी होना चाहिए।
महाकाव्य का उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की सिद्धि होना चाहिए।
महाकाव्य का आरम्भ मंगलाचरण अथवा आशीर्वचनों से होना चाहिए।
महाकाव्य में दुष्टों की निंदा तथा सज्जनों की प्रशंसा होनी चाहिए।
महाकाव्य का नामकरण नामक, नायिका या वृत के आधार पर होना चाहिए
महाकाव्य में वर्णन विविधता होनी चाहिए।
महाकाव्य में सभी ऋतुओं का चित्रण होना चाहिए।
महाकाव्य की भाषा पात्रानुकूल होना चाहिए।
महाकाव्य में तत्कालीन संस्कृति की भी झलक होनी चाहिए।
महाकाव्य में जीवन से संबंधित संपूर्ण पक्षों का चित्रण होना चाहिए।
महाकाव्य सुखांत, और उदात्त भाव होना चाहिए ।
महाकाव्य के तत्व:
कथानक – ऐतिहासिक, पौराणिक, लोकप्रसिद्ध मुख्य कथा के साथ गौण कथाएँ हो कथानक सर्गों में विभक्त हो।
चरित्र चित्रण- महाकाव्य का नायक देवता या क्षत्रिय हो, चरित्र धीरोदात गुणों से समन्वित हो।
युग चित्रण– महाकाव्य में चित्रित घटनाओं पर युग का प्रभाव हो, तत्कालीन संस्कृति की झलक हो।
रस-भाव– श्रृंगार, वीर, शांत रस की प्रधानता तथा सभी रसों का चित्रण उदात भाव हो।
छंद योजना- प्रत्येक सर्ग में एक छंद हो, में सर्ग के अंत छंद परिवर्तन हो।
भाषा-शैली- भाषा शैली उन्नत और गरिमामय उदात हो।
उद्देश्य- धर्म, अर्थ. काम, मोक्ष की सिद्धि या महान उद्देश्य हो
खण्डकाव्य:
खण्डकाव्य का अर्थ- खण्डकाव्य प्रबंध काव्य का लघु रूप है, इसमें जीवन की किसी एक घटना, अंग या पक्ष का चित्रण रहता है।
खण्डकाव्य- पंचवटी, जयद्रथ बध, सुदामा चरित, तुलसीदास आदि।
खण्डकाव्य के लक्षण:
खण्डकाव्य प्रबंध काव्य का लघु रूप है।
इसमें जीवन के किसी एक पक्ष का चित्रण सीमित रूप में होता है।
कथानक संक्षिप्त होता है।
खण्डकाव्य अपने आप में संपूर्ण होता है।
प्रासंगिक कथाओं का प्रायः अभाव होता है।
सर्ग विभाजन अनिवार्य नहीं है।
उद्देश्य महाकाव्य के सामान धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की सिद्धि होता है।
इसमें एक ही रस की प्रधानता होती है।
मंगलाचरण या आशीर्वचन आवश्यक नहीं है।
खण्डकाव्य के तत्व:
कथावस्तु- (ऐतिहासिक, पौराणिक या काल्पनिक)
संक्षिप्त जीवन के किसी एक पक्ष या घटना का चित्रण, प्रासंगिक कथाओं का अभाव, सर्ग विभाजन जरुरी नहीं है।
चरित्र चित्रण- चरित्र के एक अंश की ही झलक हो पात्रों की संख्या कम होना चाहिए।
संवाद- संवाद संक्षिप्त, सरल, रोचक और कथानक को गति देने वाला हो।
देशकाल/ वतावरण- देशकाल वातावरण का चित्रण, पात्रों के माध्यम से व्यक्त हो।
रस- जीवन के किसी एक ही घटना या प्रसंग से संबंधित होने के कारण खण्डकाव्य में में एक ही रस का पूर्ण परिपाक होता होता है।
भाव-शैली- गरिमामय एवं उदात्त, प्रसंगानुकूल हो
उद्देश्य- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की सिद्ध, आदर्श की स्थापना हो।
मुक्तक / अनिबद्ध काव्य)
मुक्तक काव्य का अर्थ – वह काव्य रचना जिसके पदों में पूर्वापर संबंध नहीं हो प्रत्येक पद में एक स्वतंत्र भाव हो उसे मुक्तक काव्य कहते है। जैसे- बिहारी सतसई, यमक सतसई, रहीम सतसई, मीरा के पद, रसखान के पद, कबीर की साखियाँ, सूरदास के पद, परमानंद दास के पद, वीर सतसई आदि।
मुक्तक काव्य की परिभाषाएँ-
रामचंद्र शुक्ल के शब्दों में- “मुक्तक में प्रबंध के सामान रस की धारा नहीं रहती है, जिसमें में कथा प्रसंग की परिस्थिति में अपने को भुला हुआ पाठक मग्न हो जाता है और हृदय में एक स्थायी प्रभाव को ग्रहण करता है। इसमें तो रस के छींटे पड़ता हैं, जिनमें हृदय कलिका थोड़ी देर के लिए खिल उठती है। यदि प्रबंध एक विस्तृत वनस्थली है, तो मुक्तक चुना हुआ गुलदस्ता है।”
गोविंद त्रिगुणायत के शब्दों में- “मेरी समझ में मुक्तक उस रचना को कहते है, जिसमे प्रबंधत्व का अभाव होते हुए भी कवि अपनी कल्पना की समाहार शक्ति के सहारे किसी एक रमणीय दृश्य, परिस्थिति, घटना या किसी वस्तु का ऐसा चित्रात्मक एवं भावपूर्ण वर्णन प्रस्तुत करता है, जिससे पाठकों को प्रबंध जैसा आनंद आने लगता है।”
मुक्तक के भेद-
मुक्तक के निम्नलिखित भेद हैं-
मुक्तक, संदानिक, विशेषक, कुलक, संघात, गीतिकाव्य, ग़ज़ल, कोश, संहिता।
मुक्तक- प्रसंग वश किसी एक रस से युक्त पद जो अपने आप में पूर्ण हो उसे मुक्तक कहते है। जैसे- घनानंद के पद, मीरा के पद आदि।
कोश- विभिन्न कवियो कवियों द्वारा रचित मुक्तक पदों का संग्रह कोश कहलाता है।
संदानिक- दो मुक्तक पद जो परस्पर संबंध रखते हो उसे संदानिक कहते है।
विशेषक- तीन मुक्तक पद जो परस्पर संबंध रखते हो उसे विशेषक कहते है।
संहिता- ऐसे मुक्तक जिनमे अनेक वृतान्त हो उसे संहिता कहते है।
संघात- किसी एक प्रशंग पर रचित एक ही कवि के मुक्तक संघात कहते है।
कुलक- चार मुक्तक पद जो परस्पर संबंध रखते ही उसे कुलक कहते है।
ग़ज़ल- प्रेमी प्रेमिका की भावपूर्ण बातचीत ग़ज़ल कहलाता है।
गीतिकाव्य- गीतिकाव्य भाव प्रधान गेय रचना है।
गीतिकाव्य- गीतिकाव्य को अंग्रेजी में ‘लिरिक’ कहते हैं। गीतिकाव्य का मूल आधार भाव है। यह भाव किसी प्रेरणा के कारण गीत के रूप में फूट पड़ता है। गीतिकाव्य की रचना उसी समय होती है, जब भाव घनीभूत होकर आवेश के साथ काव्योचित भाषा में अभिव्यक्त करते है।
गीतिकाव्य कवि के हृदय का स्पंदन है, इसमें कवि प्रेम विरह, वेदना, हर्ष-विषाद का वर्णन करता है इसमें कवि अपनी सुख-दुःख की तीव्रता अनुभूति को संगीत प्रधान कोमल कांत पदावली अभिव्यक्त करता है।
गीतिकाव्य की परिभाषाएँ:
महादेवी वर्मा के शब्दों में- “सुख दुःख की भावावेशमयी अवस्था विशेष को गिने-चुने शब्दों में स्वर साधना के उपयुक्त चित्रण कर देना ही गीतिकाव्य है।”
डॉ गंपतिचंद्र गुप्त के शब्दों में- “गीतिकाव्य एक ऐसी लघु आकर एवं मुक्तक शैली में रचित रचना है, जिसमे कवि निजी अनुभूतियों या किसी एक भावदशा का प्रकाशन संगीत या लयपूर्ण कोमल पदावली में करता है।”
गीतिकाव्य की विशेषताएँ:
व्यक्तिगत अनुभूति की प्रमुखता या प्रधानता होती है।
गीतिकाव्य का संबंध बुद्धि से न होकर हृदय से होता है।
गीतिकाव्य भावावेश की प्रबलता रहती है।
गीतिकाव्य में गेयता और संगीतात्मकता होती है।
गीतिकाव्य की भाषा सरल, कोमल और मधुर होती है।
गीतिकाव्य में संक्षिप्तता का गुण होता है।
गीतिकाव्य के तत्व:
इसके निम्नलिखित तत्व होते है- वैयक्तिकता, तीव्र भावावेश, संगीतात्मकता, संक्षिप्तता, कोमलकांत पदावली।
ग़ज़ल:
ग़ज़ल का अर्थ- ग़ज़ल अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है। प्रेमीका से वार्तालाप यह एक ऐसा काव्य रूप है जिसका मुख्य विषय प्रेम या इश्क होता है। यह भारतीय साहित्य की अत्यंत लोकप्रिय विधा है।
परिभाषाएँ:
नालंदा शब्द सागर के अनुसार- “ग़ज़ल का अर्थ है, फ़ारसी और उर्दू में श्रृंगार रस की कविता।”
हिन्दी-उर्दू शब्द कोश के अनुसार- “प्रेमिका से वार्तालाप उर्दू फ़ारसी कविता का एक विशेष प्रकार जिसमे पाँच से ग्यारह तक शेर होते हैं, ग़ज़ल है।”
ग़ज़ल के अंग- शेर, मिसरा, काफिया, रदीफ़, मतला, मक्ता
शेर- शेर शब्द का अर्थ है ‘बाल’ या ‘केश’ यह अरबी भाषा का शब्द है नारी के सौंदर्य को बढ़ाने में केशों की भूमिका सर्वाधिक होती है उसी तरह ग़ज़ल के सौंदर्य को निखारने में शेर की भूमिका होती है। ग़ज़ल का प्रत्येक शेर स्वतंत्र भावों की अभिव्यक्ति करता है।”
उदाहरण- “कोई मुश्किल नहीं हिंदु या मुसलमाँ होना हाँ बड़ी बात है इस दौड़ में इंसां होना।”
मिसरा- शेर की हर पंक्ति को मिसरा कहते है। प्रत्येक शेर में दो पंक्तियाँ होती हैं। शेर के पहले मिसरे को ‘मिसर-ए-ऊला’ तथा दूसरे मिसरे को ‘मिसर-ए-सानी’ कहते हैं।
उदाहरण- “अनुभव के पाठशाला ने सिखया है बहुत (मिसर-ए-ऊला)
जो सिखाया है वो मेरे काम आया है बहुत” (मिसर-ए-सानी)
काफिया- काफिया का अर्थ होता है बार-बार। काफिये का प्रयोग तुक मिलाने की दृष्टि से किया जाता है। इसे ‘उपांत्य-यमक’ भी कहा जाता है।
उदाहरण- दो रोटी के अलावा, चार (काफिया) की बातें नहीं करते (मिसर-ए-ऊला)
करोड़ो लोग कोठी, कार (काफिया) की बातें बही करते (मिसर-ए-सानी)
रदीफ़- रदीफ़ का अर्थ है पीछे-पीछे चलने वाला। ऐसा शब्द समूह जो काफिये के बाद में दोहराया जाता है, उसे रदीफ़ या अंत्य-यमक कहते है।
उदाहरण- दो रोटी के अलावा चार की बातें नहीं करते।
करोड़ों लोग कोठी, कार की बातें नहीं करते।।
मतला- ग़ज़ल के पहले शेर को मतला कहा जाता है। इसका अर्थ है ‘भावोदय’ का स्थान।मक्ता- ग़ज़ल अंतिम शेर मक्ता कहलाता है। इसे तखल्लूस भी कहते हैं।