हिन्दी साहित्य का काल विभाजन और नामकरण इकाई- 2

काल विभाजन:

काल (समय) के आधार पर: आदिकाल, पूर्व मध्यकाल, उत्तरमध्य काल, आधुनिक काल।

प्रवृति के आधार पर: वीरगाथा काल, भक्ति काल, रीतिकाल, गद्यकाल।

साहित्यकार के नाम पर: भारतेन्दु युग, दिवेदी युग।

सुधार आंदोलन के आधार पर: पुनर्जागरण काल, जागरण सुधार काल।

विभिन्न इतिहासकारों के द्वारा किया गया हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन 

जार्ज इब्राहम ग्रियर्सन द्वारा किया गया काल विभाजन:

  • ग्यारह (11) युगों में बाँटा है।
  • ‘चारणकाल’ (700 से 1300 ई०)
  • पंद्रहवी सदी का धार्मिक पुनर्जागरण
  • जायसी का प्रेम काव्य
  • ब्रज का कृष्ण भक्ति संप्रदाय (1500-1600 ई०)
  • मुग़ल दरबार
  • तुलसी दास
  • रीतिकाव्य (1580-1692 ई०) 
  • तुलसी का अन्य परवर्ती
  • अठारहवीं शताब्दी (1700 से 1800)
  • कंपनी के शासन में हिन्दुस्तान (1800-1857)
  • विक्टोरिया के शासन में हिन्दुस्तान

मिश्रबंधुओं द्वारा किया गया काल विभाजन:

मिश्र बंधुओं ने पाँच युगों में बाँटा है

आरंभिक काल 700 विं सं 1444 विं सं

आरम्भिक काल को दो भाग हैं : पूर्व आरंभिक काल (700 विं सं 1343 विं सं) और उत्तर आरंभिक काल (1344 विं सं 1444 विं सं)

माध्यमिक काल 1445 विं सं 1680 वीं सं

माध्यमिक काल को दो भागों में बाँटा गया है:

पूर्व माध्यमिक काल (1445 विं सं 1560 विं सं) और प्रौढ़ माध्यमिक काल (1561 विं सं 1680 विं सं)   

अलंकृत काल (1581 विं सं 1889 विं सं)

अलंकृत काल को दो भागों में बाँटा गया है : पूर्व अलंकृत काल (1681 विं सं 1790 विं सं) और उत्तर अलंकृत काल (1791 विं सं 1889 विं सं)  

परिवर्तन काल (1889 विं सं 1925 विं सं )

वर्तमान काल (1925 विं सं अब तक)

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के द्वारा किया गया काल विभाजन:

रचना: ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ (1929 ई०)

आदिकाल (वीरगाथा काल)  1050 विं सं 1375 विं सं

पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल) 1375 विं सं 1700 विं सं

उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) 1700 विं सं 1900 विं सं

आधुनिक काल (गद्य काल) 1900 विं सं अब तक

डॉ रामकुमार वर्मा के द्वारा किया गया काल विभाजन:

रचना: ‘हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास’ (1938 ई०)

संधिकाल (विं सं 750 से 1000 विं सं) अपभ्रंश की विदाई और नई हिन्दी का आरंभिक काल यानी मिलन स्थल के कारण इसे संधि काल कहा गया।

चारणकाल (विं सं 1000 से 1375 विं सं)

भक्तिकाल (विं सं 1375 से 1700 विं सं)

रीतिकाल (विं सं 1700 से 1900 विं सं)

आधुनिक काल (विं सं 1900 अब तक)

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के द्वारा किया गया काल विभाजन:

रचना: हिन्दी साहित्य: उद्भव और विकास’ (1952 ई०)

आदिकाल (10 वी से 14 वी शताब्दी)

भक्तिकाल (14  वी से 16 वी शताब्दी)

रीतिकाल (16 वी से 19 वी शताब्दी)

आधुनिक काल ( 19 वी मध्य से आगे)

डॉ गणपतिचंद्र माथुर द्वारा काल विभाजन:

रचना: ‘हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास’ (इसके दो भाग है: प्रथम 1965, दूसरा 1965)

प्रारंभिक काल या शून्यकाल (1184 ई० से 1350)

मध्यकाल या माध्यमिक काल (1350 ई० से 1859)

पूर्व मध्यकाल या उत्कर्षकाल (                 )

मध्यकाल या चरमोत्कर्षकाल (1500 ई० से 1857)

आधुनिक काल (1857 ई० से 1965 से आगे)

आधुनिक काल को गणपतिचंद्र गुप्त जी ने उपविभाजन किया:

भारतेंदु युग (1857 ई० से 1900 ई०)

द्विवेदी युग (1900 ई० से 1920 ई०)

छायावादी युग (1920 ई० से 1937 ई०)

प्रगतिवाद (1937 ई० से 1945 ई०)

प्रयोगवाद (1945 ई० से 1965 ई० तक)

डॉ नगेन्द्र का काल विभाजन:

रचना- ‘हिन्दी साहित्य का वृहद् इतिहास’ यह दस खण्डों में है।

आदिकाल 7वीं शताब्दी मध्य से 14वीं शताब्दी मध्य तक (650 ई० से 1350)

भक्तिकाल 14वीं शताब्दी मध्य से 17वीं शताब्दी मध्य तक

रीतिकाल  17वीं शताब्दी मध्य से 19वीं शताब्दी मध्य तक

आधुनिक काल 19वीं शताब्दी मध्य से अब तक

डॉ नगेन्द्र ने आधुनिक काल को चार भागों में बाँटा (उपविभाजन) है।

पुनार्जागरण काल या भारतेंदु युग (1857 ई० से 1900 ई०)

जागरण-सुधार काल  द्विवेदी युग (1900 ई० से 1918 ई०)

छायावाद (1918 ई० से 1938 ई०)

छायावादोत्तर काल (1938 ई० से आगे)

छायावादोत्तर काल को इन्होने दो भागों में बांट दिया:

प्रगति-प्रयोगकाल (1938 ई० से 1953 ई०)

नवलेखन काल (1953 ई० से आगे )

डॉ बच्चन का काल विभाजन:

रचना- ‘हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास’

अपभ्रंश काल (समय का उल्लेख नहीं है)

भक्तिकाल (1400 ई० से 1650 ई०)

रीतिकाल (1650 ई० से 1857 ई०)

आधुनिक काल (समय का उल्लेख नहीं है)

नागरी प्रचारिणी सभा, काशी का काल विभाजन (सर्वमान्य है)

आदिकाल (वीरगाथा काल)  1050 विं सं 1375 विं सं

पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल) 1375 विं सं 1700 विं सं

उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) 1700 विं सं 1900 विं सं

आधुनिक काल (गद्य काल) 1900 विं सं अब तक

1843 ई० से 1857 ई० तक नागरी प्रचारणी तक को संक्रांति काल माना है

पुनर्जागरण काल / भारतेंदु युग (1857 ई० से 1900 ई०)

जागरण सुधार काल / द्विवेदी युग (1900 ई० से 1918 ई०)

छायावाद (1918 ई० से 1936  ई०)

प्रगतिवाद (1936  ई० से 1943 ई०)

प्रयोगवाद (1943  ई० से 1952 ई०)

नई कविता (1952  ई० से 1960 ई०)

साठोत्तरी कविता (1960  ई० से 1990 ई०)

समकालीन (1990  ई० से अब तक)

आदिकाल का नामकरण:

ग्रियर्सन: चारणकाल (अधिकांश साहित्य चारण कवियों द्वारा रचा गया था)

आचार्य रामचंद्र शुक्ल: आदिकाल/वीरगाथा काल (इन्होने 12 रचनाओं के आधार पर आदिकाल को वीरगाथा काल कहा है)। खुमानरासो, विजयपालरासो, बीसलदेवरासो, परमालरासो (आल्हाखंड), जयचंद प्रकाश (अप्राप्य) जयमयंक-जस-चन्द्रिका (अप्राप्य), हम्मीररासो, कीर्तिलता, कीर्तिपताका, पृथ्वीराजरासो विद्यापति की पदावली, खुसरों की पहेलियाँ। इन बारह रचनाओं के आधार पर आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आदिकाल को वीरगाथा काल कहा।

मिश्र बंधुओं: आरम्भिक काल

डॉ गणपतिचंद्र गुप्त: प्रारंभिक काल / शून्य काल

डॉ रामकुमार वर्मा: संधिकाल / चारण काल

चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’: अपभ्रंश काल / पुरानी हिन्दी का काल

डॉ हजारीप्रसाद द्विवेदी: आदिकाल (सर्वाधिक मान्य है)

विश्वनाथ प्रसाद मिश्र: वीरकाल

हरिश्चंद्र वर्मा और राम खेलावन पाण्डेय: संक्रमण काल

रामशंकर शुक्ल ‘रसाल’: अंधकाल / बाल्यावस्था काल

मोहन अवस्थी: आधारकाल

राहुल सांकृत्यायन: सिद्ध सामंत युग

आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी: बीजवपन काल

डॉ धीरेन्द्र वर्मा: अपभ्रंशकाल

पृथ्वीनाथ कमल ‘कुलश्रेष्ठ’: अंधकारकाल

वासुदेव सिंह: उद्भवकाल

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी: आदिकाल को अत्यधिक व्याघातों एवं विरोधों का युग कहा है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल : आदिकाल को अनिर्दिष्ट लोकप्रवृति का युग कहा है।

आदिकाल की समय सीमा विभिन्न विद्वानों के अनुसार:

ग्रियर्सन के अनुसार- 643 ई से 1400 ई

आचार्य रामचंद्र शुक्ल– 993 ई से 1318 ई (ना०प्र०स० सर्वमान्य है)

डॉ गपतिचंद्र गुप्त– 1184 ई० से 1350 ई०

डॉ नगेन्द्र– 650 ई० से 1350 ई०

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी– 10 वीं शताब्दी से 14 वीं शताब्दी

आदिकाल या हिन्दी का पहला कवि:

आचार्य रामचंद्र शुक्ल– मुंज या भोज को पहला कवि माना है।

चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’– मुंज को

ठाकुर शिव सिंह सेंगर – पुष्य या पुंड को

आचार्य हाजरी प्रसाद द्विवेदी– अब्दुर्रहमान (अदहमान)

डॉ रामकुमार वर्मा– स्वयंभू

डॉ बच्चन सिंह– विद्यापति 

आचार्य गणपतिचंद्र गुप्त– शालिभद्र सुरि

राहुल सांकृत्यायन– सरहपा सिद्ध कवि थे। इनको अनेक नामों से जाना जाता है। सरहपाद, सरोजवज्र, राहुलभद्र (सर्वमान्य मत है)

आदिकाल या हिन्दी की पहली रचना:

पहली रचना- श्रवाकाचार प्रकासन वर्ष – 933 ई०

रचयिता- देवसेन (जैनकवि थे) इस रचना में कूल 250 दोहा छंद है। इसमें ‘श्रावक’ व ‘गृहस्थ’ धर्म का वर्णन है। यह एक उपदेशात्मक रचना है। अपभ्रंश प्रभावित पुरानी हिन्दी में है। यह मुक्तक रचना थी। ये निर्विवाद हिन्दी की पहली रचना थी।

आदिकाल की विशेषताएँ:

आदिकाल की भाव पक्ष संबंधी विशेषताएँ:

  • वीरों की गाथाओं का वर्णन
  • युद्धों का सजीव चित्रण
  • श्रृंगारिकता का चित्रण प्रकृतिका आलंबन और उद्दीपन दोनों रूप का चित्रण है।
  • रासों ग्रंथ व दरबारी साहित्य की प्रधानता थी।

आदिकाल की कला पक्ष संबंधी विशेषताएँ:

  • इस काल में ‘प्रबंध काव्य’ और ‘मुक्तक काव्य’ दोनों तरह की रचनाएँ लिखी गई थी।
  • आदिकाल की रचनाओं की शैली डिंगल (डिंगल+अपभ्रंश=राजस्थानी) पिंगल (पिंगल+अपभ्रंश = ब्रज) थी।
  • इन रचनाओं में दोहा, चौपाई, छप्पय, त्रोटक, गाथा, आल्हा, छंदों की प्रधानता थी।
  • इन रचनाओं में प्रायः सभी शब्दालंकारों और अर्थालंकारों का प्रयोग हुआ था। प्रधानता अत्युक्ति, अतिश्योक्ति, श्लेष, उपमा, यमक, अनुप्राश का प्रयोग किया गया था।

आदिकाल की पृष्ठभूमि:

राजनैतिक स्थिति: आदिकाल में केन्द्रीय सत्ता का अभाव था। उस समय भारत छोटे-छोटे प्रदेशों में विभक्त था राजाओं की मानसिक संकीर्णता थी। वे अपने छोटे से भू-भाग को ही देश समझते थे। इस कारण मुगलों का बाहरी आक्रमणकारियों का प्रभाव बढ़ गया था।   

आर्थिक स्थिति: आदिकाल में माध्यम और निम्न वर्गों की स्थिति दयनीय थी। व्यापार प्रणाली की कोई व्यवस्था नहीं थी। अधिकांश व्यक्ति कृषि और मजदूरी पर ही आश्रित थे।

सामाजिक स्थिति: सामाजिक स्थिति भी कुछ खास नहीं थी। भारतीय परिवार पितृसतात्मक थी। नारियों की स्थिति दयनीय थी। हिन्दु और मुसलामानों में परस्पर वैमनस्य की भावना थी।

धार्मिक स्थिति: मूर्तिपूजा, अंधविश्वास और छुआछूत का बोलबाला था। हिंदू धर्म पतन की ओर उन्मुख हो रहा था।

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