1. कृपाराम- (16 वीं शताब्दी) हिन्दी काव्यशास्त्र के प्रथम काव्यशास्त्री थे। रचना: हित-तरंगिणी (हित-तरंगिणी को रीतिकाल का भी प्रथम रचना माना जाता है।) रचनाकाल: (1541 ई०), इस रचना में 5 तरंग (अध्याय को तरंग कहा गया है) इसमें 400 सौ छंद है।यह नायिका भेद से संबंधित रचना है। 2. केशवदास- (रीतिबद्ध कवि) मूलनाम: वेदांती मिश्र… Continue reading हिन्दी साहित्य में रीतिकाल के प्रमुख काव्यशास्त्री (इकाई-2)
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अव्यय
अव्यय या अविकारी शब्द: प्रयोग या अर्थ के आधार पर शब्द दो तरह के होते है। 1. व्ययी या विकारी शब्द 2. अव्यय या अविकारी शब्द नोट: कारक, काल, वचन, लिंग के आधार पर जिनका रूप बदल जाता है, उसे व्ययी या विकारी शब्द कहते है। नोट: कारक, काल, वचन, लिंग के आधार पर जिनका… Continue reading अव्यय
हिन्दी व्याकरण (संधि)
संधि का व्युत्पति- यह दो शब्दों के योग से बना है। सम् + धि = ‘सम्’ का अर्थ होता है, ‘पूर्णतया’ और ‘धि’ का अर्थ होता है, ‘मिलना’ अथार्त दो ध्वनियों या वर्णों का पूर्णतया मिलना संधि कहलाता है। परिभाषा- दो ध्वनियों या वर्णों के परस्पर मेल से उत्पन्न ध्वनि-विकार को संधि कहते है। उदाहरण-… Continue reading हिन्दी व्याकरण (संधि)
वर्ण विचार
वर्ण की परिभाषा: कामताप्रसाद गुरु के शब्दों में- “वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके खण्ड नहीं किए जा सकते है।” (क, अ, ट इसे खण्ड नहीं किया जा सकता है) आचार्य किशोरीदास वाजपेयी के अनुसार- “वर्ण वह छोटी से छोटी ध्वनि है जो कान का विषय है और जिसके टुकड़े नहीं किए जा… Continue reading वर्ण विचार
सर्वनाम (Pronoun)
सर्वनाम की व्युत्पति- सर्वनाम दो शब्दों के मिलने से बना है। सर्व + नाम अथार्त सर्वनाम का शाब्दिक अर्थ होता है, सभी का नाम। परिभाषा- वे शब्द जो संज्ञा के स्थान पर किसी प्राणी, वस्तु, स्थान के लिए प्रयुक्त होते है, उसे सर्वनाम कहते है। कामता प्रसाद गुरु के शब्दों में- “वाक्य में वस्तु या… Continue reading सर्वनाम (Pronoun)
संज्ञा (Noun) 
संज्ञा शब्द की व्युपति- संज्ञा शब्द दो शब्दों के मेल योग से बना है। सम् + ज्ञा ‘सम्’ का अर्थ ‘सम्यक’ (पूर्ण) और ‘ज्ञ’ का अर्थ ‘ज्ञान’ अथार्त ‘पूर्णज्ञान’ होता है। संज्ञा शब्द का अर्थ होता है- ‘नाम’ (संज्ञा का एक और अर्थ ‘महानाम’ भी है।) परिभाषा- किसी वस्तु, प्राणी, स्थान, भाव आदि के ‘नाम’… Continue reading संज्ञा (Noun) 
हिन्दी साहित्य की गद्य विधाएँ: नाटक (इकाई- 2)
‘नाटक’ शब्द संस्कृत की ‘नट्’ धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है- ‘अभिनय करना’। नाटक की व्युत्पति नट + अक = नाटक ( अर्थ अभिनय करना है।) परिभाषा- “अवस्थानुकृतिनार्ट्यं रूपं दृष्यतयोच्यते।” अथार्त किसी अवस्था का अनुकृति ही नाटक है। (यह धनंजय के नाटक ‘दशरूपक’ में है।) भारतेंदु हरिश्चंद्र के शब्दों में- “नाटक का अर्थ… Continue reading हिन्दी साहित्य की गद्य विधाएँ: नाटक (इकाई- 2)
साहित्य: अर्थ, परिभाषाएँ स्वरुप एवं भेद 
साहित्य शब्द की व्युत्पति- ‘सहितस्य भाव साहित्य्’ अथार्त ‘सहित’ का भाव साहित्य है।’ सहित- स + हित = अर्थात जिसमे सभी के हित का भाव हो, वह साहित्य है। सहित- शब्द और अर्थ का स्वभाव संयोजन है। साहित्य की परिभाषाएँ: विश्वनाथ क्व शब्दों में- “वाक्यं रसात्मक काव्यम्।”(रसात्मक वाक्य काव्य है) आचार्य भामह के शब्दों… Continue reading साहित्य: अर्थ, परिभाषाएँ स्वरुप एवं भेद 
संस्कृत के प्रसिद्ध काव्यशास्त्रीय ग्रंथ एवं आचार्य कालक्रमानुसार
1. भरतमुनि - (3वीं शदी ) नाट्यशास्त्र 2. मेधाविरुद्ध - अलकार ग्रंथ 3. भामह - (7वीं शदी.) काव्यालंकार 4. दंडी - (7वीं शदी.) काव्यादर्श 5. उद्भट भट्ट (8वीं शदी) – कव्यालाकार सार-संग्रह (भामह की रचना का सार) भामह विवरण – (भामह के काव्यालंकार की टीका) 6. वामन - (9वीं शदी) काव्यालंकार सूत्र 7. रुद्रट -… Continue reading संस्कृत के प्रसिद्ध काव्यशास्त्रीय ग्रंथ एवं आचार्य कालक्रमानुसार
हिन्दी साहित्य की गद्य विधा ‘आलोचना’ उद्भव और विकास (इकाई-2)
‘आलोचना’ शब्द की व्युत्पति ‘आ’ (उपसर्ग) ‘लोच्’ (धातु) ‘अन’ + ‘आ’ (प्रत्यय) = से मिलकर आलोचना शब्द बना है। जिसका अर्थ होता है देखना, व्याख्या करना, मूल्यांकन करना आदि। केवल गुण का मूल्यांकन करना प्रशंसा करना और केवल दोष का मूल्यांकन करना निंदा करना है। गुण और दोष दोनों का मूल्यांकन करना आलोचना कहलाता है।… Continue reading हिन्दी साहित्य की गद्य विधा ‘आलोचना’ उद्भव और विकास (इकाई-2)