शोध कार्य में ग्रंथ सूचि का महत्व निर्विवाद है। इसे संदर्भ ग्रंथ सूचि भी कहा जाताहै। ग्रंथ सूचि से तात्पर्य अंग्रेजी के शब्द ‘बिब्लियोग्राफी’ से बना है, जो बहुत ही व्यापक है। इसकी किसी एक निश्चित परिभाषा के संबंध में विद्वानों में मतभेद है। साहित्य एवं भाषा संबंधी शोध तथ्यों पर आधारित होता है। तथ्यों के द्वारा सत्य की स्थापना करना ही शोध का प्रमुख लक्ष्य होता है। शोध किसी भी संभावना संपन्न विषय को लेकर, उसमे अंतर्निहित तत्वों या रचनातंत्र का उद्घाटन करने की प्रक्रिया है। शोध का विषय जो भी हो, सत्य की स्थापना ही इसका लक्ष्य होता है। तथ्यों के आधार पर सत्य की स्थापना, सामग्री के परीक्षण, वर्गीकरण और विश्लेषण द्वारा की जाती है। सामग्री के अंतर्गत पुस्तक ग्रंथ, पत्र-पत्रिकाएँ आदि आती हैं। यह सामग्री प्रकाशित और अप्रकाशित भी हो सकती है। वह संकलित सामग्री जिसके उपयोग शोधार्थी आधार या संदर्भ के रूप में करता है। वह अपनी शोधदृष्टि के साक्ष्य के रूप में इन्हें अपने शोध प्रबंध के अंत में जगह-जगह उद्धृत करता है। इसका उल्लेख शोधार्थी अपने फुटनोट में भी करता है। उन सभी स्रोतों को शोध प्रबंध के अंत में वर्गीकृत ढंग और पूरे विवरण के साथ संदर्भग्रंथ सूचि के अंतर्गत सूचीबद्ध करता है।
ग्रंथ सूचि: अर्थ और परिभाषा
शोध कार्य के अंतर्गत जिन-जिन ग्रंथों का प्रमाण के तौर पर उल्लेख किया जाता है उनमें आधार ग्रंथ के साथ-साथ संदर्भ ग्रंथ भी शामिल होते हैं। इन सभी को शोध प्रबंध के अंत में एक निश्चित क्रम से रखने की पद्धति से ग्रंथ सूचि का निर्माण किया जाता है। इसे सहायक ग्रंथ सूचि भी कहा जाता है। उदयभानु सिंह के शब्दों में- “शोध प्रबंध में जो भी ग्रंथ सूचि दी जा रही है वह उपयोग में लाए हुए ग्रंथों की सूचि है, वह किसी प्रकाशक या पुस्तक विक्रेता का सूचीपत्र नहीं है अतएव उसके साथ प्रयुक्त सहायक शब्द निरर्थक है, इसलिए ग्रंथ सूचि लिखना ही पर्याप्त है।”
ग्रंथ सूचि हमेशा शोधग्रंथ के अंत में लिखा जाता है। उसके पहले शोध में सहायक संपूर्ण सामग्री को लिखकर सिलसिलेवार सूचि बनाई जाती है। शोध के दौरान प्रयोग में आई पुस्तकों, ग्रंथों, कोशों और पत्र-पत्रिकाओं आदि को क्रम में रखा जाता है। शोधार्थी जिन-जिन पुस्तकों, ग्रंथों, कोशों और पत्र-पत्रिकाओं आदि का उपयोग करता है, उसकी क्रमबद्ध प्रस्तुति ही ग्रंथ सूचि है। ग्रंथ सूचि बनाते समय ग्रंथ का नाम, संस्करण, रचनाकार, संपादक, प्रकाशक, प्रकाशन की तिथि तथा प्रकाशन वर्ष आदि का स्पष्ट उल्लेख करना आवश्यक होता है। ग्रंथ सूचि बनाने का उद्देश्य शोध के तथ्यों को सत्यापित तथा प्रमाणित करना है। जिससे यह पता चलता है कि शोधार्थी ने अपने विषय से संबंधित महत्वपूर्ण सामग्री का अध्ययन करके ही अपना शोध प्रबंध प्रस्तुत किया है। जब एक ही पुस्तक के कई संस्करण होते हैं, तब उसे प्रथम तथा प्रमाणिक संस्करण का ही अंकन करना चाहिए।
ग्रंथ सूचि के प्रकार:
1. आधार ग्रंथ सूचि- इस प्रकार की सूचि में वे ग्रंथ आते हैं जिनको शोधार्थी मूल ग्रंथों के रूप में स्वीकार करता है। जैसे- सूरसागर, सूरसारावली और साहित्य लहरी को आधार ग्रंथ के रूप में लिया जाएगा।
2. संदर्भ या सहायक ग्रंथ सूचि- संदर्भ या सहायक ग्रंथ सूचि उसे कहा जाता है जिनकी सहायतता से तथ्यों की पुष्टि की जाती है। जैसे- सूर पर शोध करते हुए जो आधार ग्रंथ लिए गए हैं और उनसे संबंधित तथ्यों की पुष्टि के लिए सूर और उनके साहित्य पर विभिन्न विद्धवानों द्वारा लिखे गए जिन समीक्षात्मक ग्रंथों से संदर्भ ग्रहण किए गए हैं उन्हें इसी श्रेणी में रखा जाता है।
3. कोश विवरण- शोध कार्य करते समय शोधार्थी को कई शब्दों के अर्थ व्युत्पत्ति आदि भी देने पड़ते हैं। इसके लिए वह विभन्न प्रकार के कोशों की मदद लेता है। जैसे- हिंदी शब्द कोश, साहित्य कोश, मिथक कोश, संस्कृति कोश, वैज्ञानिक शब्द कोश, विश्व शब्द कोश आदि। इनका उल्लेख भी ग्रंथ सूचि में करना आवश्यक होता है।
4. पत्र-पत्रिकाओं का विवरण- शोधार्थी को शोधकार्य के विषय के अनुकूल और समसामयिक परिवेश से संबंधित सामग्री का संकलन विभिन्न प्रकार की पत्र-पत्रिकाओं से भी करना होता है। अतः शोधप्रबंध के लिए उपयोग में लाई गई पत्र-पत्रिकाओं का भी ग्रंथसूचि में उल्लेख करना चाहिए। इसके अतिरिक्त शोधार्थी को कई बार अन्य स्रोतों से भी सामग्री लेनी पड़ती है। जैसे- किसी रचना की हस्तलिखित प्रति, अप्रकाशित शोधप्रबंध, रचनाकारों के अप्रकाशित पत्र, अप्रकाशित लेख आदि। यदि शोधार्थी अपने शोध में इनका प्रयोग करता है तो उसकी भी सूचि देनी चाहिए।
कुछ विद्वान् ग्रंथ सूचि के दो रूप मानते है:
1. मुख्य ग्रंथ सूचि 2. सहायक ग्रंथ सूचि
इस प्रकार निचे दिए गए ग्रंथ सूचि या संदर्भ ग्रंथ सूचि निम्नलिखित आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं –
* उपयोग में लाये गए ग्रंथों की जानकारी देने के लिए।
* शोध कार्य की गंभीरता एवं व्यापकता के सूचित करने के लिए।
* शोधार्थी के विषय पर पहले किये गए शोध कार्यों की जानकारी के लिए।
* दूसरों की रचनाओं और आलोचनाओं को प्रतिष्ठित करने के लिए।
* शोध प्रबंध के मूल्यांकन के समय किसी भी तरह के संदेह की निवृत्ति के लिए।
* शोध प्रबंध के ठोस एवं प्रमाणिकता के आधार को सूचित करने के लिए।
निष्कर्ष के रूप में ग्रंथ सूचि के संदर्भ में निम्नलिखित ध्यान देने योग्य बातें:
* ग्रंथ सूचि शोध प्रक्रिया का एक अनिवार्य अंग है।
* शोध तथ्यों के सत्यापन तथा साक्ष्य के लिए ग्रंथ सूचि अनिवार्य है।
* यह सामग्री संकलन में सहायक होती है।
* ग्रंथसूचि शोध, शोधार्थी, शोध निर्देशक, शोध परीक्षक और शोध स्टार सभी को प्रभावित करती है।
ग्रंथ सूचि निर्माण के नियम और प्रकार निम्नलिखित हैं:
पहला नियम- पहला नियम के अनुसार ग्रंथ संबंधी विवरण को एक निश्चित क्रम में दिया जाना चाहिए। पहले लेखक या रचनाकार का नाम, प्रकाशन वर्ष, पुस्तक का नाम, प्रकाशक का नाम, प्रकाशन स्थल आदि आवश्यक है। यदि आवश्यक हो तो पुस्तक के नाम के साथ उसके संस्करण का उल्लेख भी किया जाना चाहिए क्योंकि कई पुस्तकों और रचनाओं के संस्करण के बदलने से उसकी सामग्री भी संपादित कर दी जाती है या बदल दी जाती है। अतः संस्करण का उल्लेख शोध में प्रमाणिकता के लिए आवश्यक है।
दूसरा नियम- दूसरा नियम के अनुसार इसे वर्गीकृत होना चाहिए अथार्त आधार ग्रंथ, सहायक ग्रंथ, पत्र-पत्रिकाएँ, हस्तलिखित सामग्री, अप्रकाशित सामग्री आदि का उल्लेख अलग-अलग शीर्षक से करना चाहिए।
तीसरा नियम- इस नियम के अनुसार सूचि को शोध में प्रयुक्त पुस्तकों के क्रम के अनुसार न रखकर प्रकाशन वर्ष के अनुसार रखा जाना चाहिए ताकि यदि एक ही रचनाकार की एकाधिक पुस्तकों को स्थान देना हो तो वे पुस्तकें भी प्रकाशन वर्ष के क्रम से ही दी जाए तथा पहली बार रचनकार का नाम देने के बाद अगली बार ‘————–‘ का प्रयोग करना चाहिए।
ग्रंथ सूचि बनाते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि संपादित पुस्तकों के नाम के आगे कोष्टक में ‘(स)’ लिखा जाए। यदि एक ही रचनाकार का कोई संकलन हो तो उसके नाम के आगे कोष्टक में ‘संकलित’ लिखना चाहिए।
पत्र-पत्रिकाओं का संदर्भ देते समय वर्ष, अंक और उसकी प्रकाशन अवधि (साप्ताहिक, मासिक, त्रेमासिक, वार्षिक आदि) का उल्लेख अवश्य करना चाहिए। कई पत्र-पत्रिकाओं के विशेषांकों का संपादन अतिथि संपादक करता है। ऐसी स्थिति में अतिथि संपादक का नाम का उल्लेख अवश्य करना चाहिए। शोधार्थी को यह समझ लेना चाहिए कि संदर्भ ग्रंथ सूचि केवल एक सूचि नहीं होती बल्कि उसके अध्ययन और परीक्षण की एक कसौटी भी होती है इसलिए इसका निर्माण केवल औपचारिता के निर्वाह के लिए नहीं करेके शोधार्थी के अध्ययन की पुष्टि के लिए करना चाहिए।
अतः शोधप्रबंध में ग्रंथ सूचि की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। इससे यह पता चलता है कि शोधार्थी ने अपने शोध में जिस प्रकार की सामग्री (तथ्य) का वर्गीकरण विश्लेषण किया है, उसका वास्तव में उसने किस प्रकार से अध्ययन किया है। कहाँ-कहाँ उसका उपयोग किया है और किस तरह से उसकी व्याख्या की गई है।