एक प्रमुख हिंदी लेखक के साथ साक्षात्कार

बात सन् 2018 की है ‘दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा’ हैदराबाद से मैं लघु शोध के लिए प्रवेश-परीक्षा पास कर चुकी थी। अब शोध विषय के चयन करने की बारी थी। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि किस विषय का चुनाव करूँ। मैं परेशान और चिंतित थी। मैंने अपने गाइड से सम्पर्क किया तो उन्होंने कहा कि दो-चार दिन में तुम अपना विषय बता देना। इंटरनेट पर कई रचनाकारों की रचनाएँ पढ़ने के बाद भी मुझे बहुत कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं किस विषय पर शोध करूँ। दूसरे दिन अचानक मुझे इंटरनेट पर एक पुस्तक दिखाई पड़ी ‘ढाई बीघा जमीन’ जिसकी लेखिका मृदुला सिन्हा जी थी। नेट पर पूरी पुस्तक तो नहीं थी लेकिन उस पुस्तक के भूमिका के साथ संक्षेप में एक कहानी और शेष 18 कहानियों का सारांश था। जिसे पढ़ने के बाद मुझे महसूस हुआ कि मुझे इस पुस्तक की कहानियों पर शोध करना चाहिए। उनकी अधिकतर कहानियाँ सामाजिक, पारिवारिक, ग्रामीण परिवेश को शब्दों द्वारा चित्रित करती हैं। संयुक्त परिवार के विभिन्न सदस्यों का बदलते परिवेश में सुन्दर मनोवैज्ञानिक चरित्र-चित्रण, इन्होंने अपनी कहानियों में किया है। जिस तरह से प्रेमचंद के कहानियों को पढ़ते समय महसूस होता है कि हम भी उनके कहानी के पात्रों में से एक हैं, उसी तरह मुझे मृदुला सिन्हा जी की कहानियों को पढ़ने पर महसूस हुआ कि मैं भी उनकी कहानियों की एक पात्र हूँ। मेरी समझ से मृदुला सिन्हा जी को हिंदी साहित्य का ‘स्त्री प्रेमचंद्र’ कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

      मैं अपने गुरु से बोली कि मैं मृदुला सिन्हा के कहानी संग्रह ‘ढाई बीघा जमीन’ पर शोध करना चाहती हूँ। उन्होंने कहा कि अच्छी बात है। आपके पास पुस्तक होगा तो ठीक है, नहीं तो ऑन लाइन पुस्तक मंगवा लीजिये। मैने कई प्रकाशकों के पास फोन किया लेकिन यह पुस्तक कहीं पर भी उपलब्ध नहीं थी। एक दिन इन्टरनेट पर ही मुझे मृदुला सिन्हा मैडम का फोन नंबर मिला। वो उन दिनों गोवा प्रांत की राज्यपाल थीं। मेरी दुविधा बहुत बढ़ गई। मैंने अपनी जिन्दगी में किसी विधायक से कभी बात नहीं किया था। ग्रामीण परिवेश में बचपन गुजारने के बाद कभी पंचायत के मुखिया से भी बात नहीं किया था। अब सीधे राज्यपाल से सम्पर्क करने की हिम्मत कहाँ से लाऊं। असमंजस की स्थिति बढ़ती जा रही थी और हमारी पुस्तक ‘ढाई बीघा जमीन’ किसी भी अन्य स्रोत से उपलब्द्ध नहीं हो सका। बहुत हिम्मत करके मैंने सीधे मृदुला सिन्हा जी को फोन लगाया। मैं उन क्षणों को याद करके आज भी रोमांचित हो जाती हूँ कि मैंने पदासीन राज्यपाल से बात करने की हिम्मत कैसे जुटा पाई। मैं उन्हें डर-डर करके फोन लगाई। घंटी बजते ही मेरा दिल धड़कने लगा। उधर से किसी पुरुष की आवाज आई, कौन?

      मैं बोली प्रणाम सर! मैं हैदराबाद से इंदु सिंह बोल रही हूँ। मैं मृदुला सिन्हा मैडम जी से बात करनी चाहती हूँ।

      उन्होंने कहा कि वे अभी-अभी ऑफिस के लिए निकली हैं। आप शाम में 7 बजे तक फोन कीजिएगा।

      मैं 7 बजे शाम का इंतजार करने लगी। ठीक सात बजे मैने हिम्मत जुटाकर मैडम जी को फोन लगाया। इसबार मैडम ने खुद ही फोन उठाया था।

      मैंने उन्हें प्रणाम किया तो मैडम जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा

      ‘सदा सुहागवती रहो’। कहो क्या बात है?

      मैं बोली – मैडम जी मैं आपकी पुस्तक ‘ढाई बीघा जमीन’ कहानी संग्रह पर ‘दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा’ से लघु शोध कर रही हूँ। यहाँ हैदराबाद में कहीं भी यह पुस्तक उपलब्ध नहीं है। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं पुस्तक का प्रबंध कैसे करूँ?

      उन्होंने मुझे दिल्ली ‘प्रभात प्रकाशक’ का नंबर दिया और कहा – ‘इससे बात करना अगर पुस्तक उनके पास होगा तो मिल जाएगा और अगर नहीं मिला तो मैं फोटो कॉपी करवाकर जनवरी में हैदराबाद आऊँगी तो अपने साथ लेते आऊँगी।

      मैंने आभार व्यक्त करते हुए उनको धन्यवाद दिया और उन्हें प्रणाम किया।

      उन्होंने पुनः वही आशीष के शब्द दुहराए ‘सदा सुहागवती रहो’। मैं उनकी इस आशीष वचन को सुनकर धन्य हो गई। एक सुहागन स्त्री के लिए इससे सुन्दर आशीष और कुछ हो ही नहीं सकता है।

      इधर मैं पुस्तक के लिए प्रयास करती रही। हैदराबाद, कानपुर, राजस्थान आदि कई जगहों के प्रकाशकों से बात करती रही लेकिन यह पुस्तक कहीं भी उपलब्ध नहीं थी। एक दिन मैंने पटना ‘वाणी प्रकाशन’ के पास फोन किया। अनंत कुमार नाम के व्यक्ति ने फोन उठाया

      मैं बोली- ‘सर मुझे मृदुला सिन्हा जी की पुस्तक ‘ढाई बीघा जमीन’ चाहिए, क्या आपके पास है?

      उन्होंने कहा- ‘मेरे पास तो नहीं है, लेकिन एक घंटे बाद मैं पता लगाकर आपको बताऊँगा। एक घंटा बाद पटना से फोन आया।

      उन्होंने कहा पुस्तक मिल गया है।

      मैं खुश होकर उन्हें धन्यवाद देते हुए बोली कृपया आप मुझे यह पुस्तक भेज दीजिए। इसकी जो भी कीमत होगी मैं आपको भेज दूँगी। मुझे दस दिन के अन्दर पुस्तक प्राप्त हो गई।

      पुस्तक मिलते ही मैं उनकी सभी कहानियों को पढ़ी। यह पुस्तक 19 कहानियों का एक संग्रह है। उनकी ये उन्नीस कहानियाँ उन्नीस रंगों की फूलों से मिलकर बनी एक माला है। भारतीय चिंतन परंपरा से ओतप्रोत मृदुला सिन्हा जी की सभी कहानियाँ मानव जीवन को सुमार्ग दिखाती हैं।

      उनसे फोन पर बातें करने और उनकी कहानियों को पढ़ने के बाद मुझमे उनसे मिलने की और भी उत्सुकता बढती जा रही थी। आखिर वह दिन भी आ गया।

      11 जनवरी 2020 को मैने उन्हें फोन करके पूछा – मैडम जी आप हैदराबाद आ गईं हैं? उन्होंने कहा – हाँ! मैं यहाँ हैदराबाद राजभवन में ठहरी हूँ। तुम कल राजभवन आ जाओ।

      मैने उनसे पूछा – मैं वहाँ आपसे कैसे मिल पाऊँगी। उन्होंने कहा, तुम राजभवन पहुँचकर मुझे फोन करना।

      मैं दूसरे दिन 12 जनवरी 2020 को राजभवन पहुँची। उन्होंने गेट पर पहले ही मेरे बारे में बता दिया था।

      मैं वहाँ पहुँचकर गेट के चौकीदार को बोली – मेरा नाम इंदु सिंह है। मुझे मृदुला सिन्हा मैडम जी से मिलना है, उन्होंने मुझे बुलाया है।

      चौकीदार ने तुरंत कहा – हाँ चलिए आपको मैं उनके रूम पर छोड़ आता हूँ। यह सब देखकर मैं समझ नहीं पा रही थी कि इतनी बड़ी पद पर आसीन और इतनी बड़ी साहित्यकार के इतने सौम्य और सरल, व्यवहार?

      संस्कारों को जीना और भारतीय परंपरा को जिन्दा रखना कोई उनसे (मृदुला सिन्हा) सीखे। मुझे उनसे मिलने के बाद महसूस हुआ कि “विनम्र व्यक्ति फलदार वृक्ष की तरह होता है।”

      मैने पैर छूकर उन्हें प्रणाम किया। उन्होंने सदा सुहागवती रहो का आशीर्वाद देते हुए कहा बैठो,

      उन्होंने पूछा तुम अकेली आई हो, मैने कहाँ हाँ जी।

      उन्होंने पूछा पुस्तक मिली?

      मैने कहा हाँ जी! पटना के वाणी प्रकाशन के पास एक ही प्रति थी, उसने डाक द्वारा मुझे पुस्तक भेज दिया है।

      उन्होंने मुझे देखते ही कहा इस उम्र में तुम पढ़ाई कर रही हो? यह देखकर मुझे बहुत खुशी हुई। मैं कारण नहीं जानना चाहुँगी लेकिन तुम जो कर रही हो वह बहुत अच्छा है।

      मैने कहा – मैडम हमारे यहाँ बिहार में लड़कियों की जल्दी शादी कर दी जाती है। दशवीं कक्षा का परीक्षा देते ही मेरी भी शादी हो गई थी। जिससे मेरी पढ़ाई छुट गई। उसके बाद तो कई तरह की जिम्मेवारियाँ आने के कारण मौका ही नहीं मिला। बचपन के कुछ सपने थे, जिसे पूरा नहीं कर पाई थी। उसे अब पूरा करना चाहती हूँ। इसलिए मैने अपने जीवन की कुछ चीजें जहाँ पर छोड़ी थी वहीं से एक नई शुरुआत कर रही हूँ।

      उन्होंने पूछा कितने बच्चे हैं? मैने कहा दो बच्चे और दोनों अपने-अपने जीवन में सेटल्ड हैं।

      मैडम ने पूछा आपने इसकी (ढाई बीघा जमीन) सभी कहानियाँ पढ़ लिया है?

      मैने कहा हाँ! मुझे आपकी सभी कहानियाँ आज के सामाजिक और पारिवारिक जीवन की समस्याओं से जुड़ी हुई लगीं। आपकी सभी कहानियाँ व्यक्ति, परिवार और समाज को जोड़ती हैं। जिससे मन में एक नई सोच उत्पन्न होती है। आपकी कहानियों को पढ़ने से यह ज्ञात होता है कि आपकी जीवन यात्रा बहुत ही सकारात्मक रही है।

      उन्होंने कहा – मैने हर किसी से कुछ न कुछ सीखने की कोशिश की है।

      मैने पूछा – आपने लिखना कब से शुरू किया था?

      उन्होंने कहा – जब मैं हॉस्टल में रहती थी। तब पैरोडी बनाती थी और छोटी-छोटी कविताएँ लिखती थी। मास्टर डिग्री के बाद मैने पूर्ण रूप से लिखना शुरू किया था।

      उन्होंने मुझसे पूछा तुम कुछ लिखती हो?

      मैने कहा – जी! कुछ कविताएँ और आलेख लिखे हैं जो ‘दक्षिण भारत विवरण’ पत्रिका और ‘स्रवंतीं’ पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।

      अच्छी बात है, हमेशा लिखते रहना।

      मैडम से बात करने का और भी मन कर रहा था लेकिन उनका हैदराबाद में ही कहीं और जाने का कार्यक्रम था। इसलिए बातचीत को समाप्त करते हुए चलने की आज्ञा माँगी।

      फिर उन्होंने अपने पति डॉ रामकृपाल सिन्हा जी को बुलाया और मुझे अपने साथ बैठा कर फोटो खिंचवाया।

      यह मेरे लिए बिन माँगी मुराद थी। उनके सहज और सरल व्यवहार से मन बहुत खुश हो गया। मेरा सुभाग्य था कि मुझे उनके साथ कुछ समय व्यतीत करने का अवसर मिला। जब मैं उनसे विदा लेने की आज्ञा माँगी तो उन्होंने अपनी मासिक पत्रिका ‘पाँचवाँ स्तम्भ’ की जनवरी 2020 की एक प्रति उपहार स्वरूप दिया और कहा कि तुम अपना लेख मुझे भेज सकती हो।

      प्रथम मुलाकात में ही उन्होंने मुझे जो स्नेह दिया उसे मैं आजीवन नहीं भूल सकूंगी। दिल में बहुत अरमान थे कि उनसे भविष्य में फिर मिलूँगी और बहुत सारी कल्पनाएँ बनाने लगी थी।

      मेरे शोध का कार्य अभी चल ही रहा था। आदत के अनुसार सोने से पहले मैं एक बार अपनी मोबाइल के मैसेज वैगेरह चेक करती हूँ। उस रात मैने जैसे ही मोबाइल खोली फेसबुक पर एक मेसेज देखकर मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा मैने अपने पति से कहा देखिये न! मैडम के बारे में ये कैसा अशुभ समाचार आ रहा है। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था। मैं और मेरे पति तुरंत टेलीविजन खोलकर देखने लगे लेकिन इस विषय पर कहीं से कोई समाचार नहीं आ रहा था। मैं फेसबुक पर ही एक मैसेज लिखकर डाली तब एक व्यक्ति ने कहा मुझे भी विश्वास नहीं हो रहा है कि यह बात सच है। मुझे नींद नहीं आ रही थी। मैं भगवान् से प्रार्थना कर रही थी। हे भगवान! यह समाचार झूठ हो।

      2020 महामारी का समय था। अक्शर कहीं न कहीं से अशुभ समाचार मिलता ही रहता था। कुछ दिन पहले बिहार की एक प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा जी के विषय में एक समाचार वायरल हुआ था कि शारदा सिन्हा का स्वर्गवास हो गया लेकिन कुछ ही दिनों  के बाद जब शारदा सिन्हा जी को यह बात पता लगा कि उनके विषय में इस तरह की बातें मीडिया में फैल रही है। तब उन्होंने मीडिया में खुद आकर कहा कि मेरे बारे में जो बातें वायरल हो रहा है वह झूठ है। आप सब के आशीर्वाद और भगवान् की कृपा से मैं ठीक हूँ।

      मैं भी भगवान् से प्रार्थना कर रही थी कि मृदुला सिन्हा जी के विषय में फैली यह समाचार झूठ हो। सुबह होते ही मैने टेलीविजन लगाया और जैसे ही समाचार देखा तो मेरा दिल बैठ गया। मेरे स्मृति पटल पर उनके साथ बिताए गए वह छोटी सी मुलाक़ात और उनकी अनमोल बातें दिमाग में घूमने लगी। सोसल मीडिया में फैली बातें सच थी। श्रीमती मृदुला सिन्हा अब स्वर्गवासी हो गईं थी। 18 नवम्बर 2020 को अपनी सभी चाहने वालों को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह चुकी थी, फिर कभी नहीं मिलने के लिए। अब हमारे पास उनकी सिर्फ यादें रह गई थी।

      मृदुला सिन्हा जी ने अपने जीवनकाल में अनेक पुस्तकें लिखीं उनके उपन्यास ‘ज्यो मेहंदी के रंग’ पर दूरदर्शन की लघु फिल्म बनी। इसके अलावा उनकी उपन्यास नयी देवयानी, घरवास, सीता पुनि बोली, सावित्री, आदि काफी सराहे गए। शिक्षिका, लेखिका से लेकर गोवा के राज्यपाल के पद तक पहुँचने वाली मृदुला सिन्हा अपनी मेहनत, समर्पण के लिए हमेशा  याद की जायेंगी। जब भी मैं अपनी इस प्रिय लेखिका को याद करती हूँ तो मुझे कबीर दास जी की निम्न पंक्तियाँ याद आ जाती हैं –

            “कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये।

            ऐसी करनी कर चलो कि हम हँसे जग रोये।।”

      मृदुला सिन्हा जी को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए मरणोपरांत पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया है।

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