मानव विज्ञान की ऐसी पद्धति जो संकेत विज्ञान (संकेतों की एक प्रणाली) और सहजता से परस्पर संबंध भागों की एक ऐसी पद्धति के अनुसार तथ्यों का विश्लेषण करने का प्रयास करती है।
स्वीडन के प्रसिद्ध भाषाविद द ‘फर्निनांद सस्यूर’ इसके प्रवर्तक माने जाते हैं।
‘संरचनावाद’ शब्द अंग्रेजी के ‘स्ट्रकचरलिज्म’ शब्द का हिंदी रूपांतरण है। इसका अर्थ है “भाषिक संरचना की दृष्टि से साहित्य का मूल्यांकन करना”
संरचनावाद के प्रवर्तक – स्वीडन के ‘फर्निनांद सस्यूर’ हैं।
संरचनावाद 1960 ई. के दशक में फ्रांस में एक बौद्धिक चिंतन पद्धति के रूप में उभरा
संरचनावाद के विकाश में योगदान देने वाले विद्धवान:
प्रवर्तक – फर्निनांद द सस्यूर’
पुस्तक – कोर्स इन जनरल लिंग्विस्टिक
संरचनावाद के व्याख्या करनेवाले विद्वान – ‘रोला बार्थ’ एवं ‘लेविस्टॉस’
रोला बार्थ की पुस्तकें – 1. ‘एलिमेंट्स ऑफ सिमियोलॉजी’, 2. ‘द फैसन सिस्टम’
संरचनावाद का आधार- रुसी रुपवाद है।
इसकी प्रेरणा ‘विको’ की पुस्तक ‘नया विज्ञान’ (1925 ई.) है।
संरचनावाद की परिभाषाएँ:
सस्यूर के अनुआर – “रचनाकर की भाषा अर्थ नहीं देती, जो हम अर्थ पाते है, वह भाषा में शब्दों के अंतर के कारण प्रकट होता है। रचना में अर्थ-तत्व पाठक के मानसिक विकास के अनुसार प्रकट होता है। वह जितना अधिक विकसित होगा, अर्थ की प्रतीति उतनी ही उत्कृष्ट होगी।”
रोलाबार्थ के शब्दों में – “संरचनावाद सिर्फ एक पद्धति नहीं, वह कर्म है, व्यवहार है, वह पाठ का उन्मुक्त व्यवहार है, वह एक सतत् पाठ है”
डॉ. बच्चन सिंह के अनुसार- “संरचनावाद पाठ की भाषिक दृष्टि से छानबीन है।”
डॉ. बच्चन सिंह के अनुसार- “रोला बार्थ ने साहित्य की संरचना के लिए भाषिकी का मॉडल ग्रहण किया, जिसका सीधा संबंध पाठक की समीपी छानबीन से है।”
डॉ बच्चन सिंह के अनुसार – “यह आज की एक अत्यंत महत्वपूर्ण और व्यापक बौद्धिक व्यवस्था, पद्धति या प्रणाली है जिसकी व्याप्ति में जीव-विज्ञान, अर्थशास्त्र, नृतत्वविज्ञान, साहित्य इत्यादि को समेटा जा सकता है………इसके विवेचन की एक ऐसी पद्धति है जिसे संरचनावाद का नाम दिया गया।”
सुधीश पचौरी के शब्दों में – ” संरचनावाद विचार की पद्धति के रुप में स्थापित हुआ, संपूर्णता का विचार है, आत्मनियमन का विचार और रूपांतरण का विचार ये तीनों विचार संरचनावाद के सार हैं।”
संरचनावाद की मान्यताएँ/ विशेषताएँ-
1. संरचनावाद मूलतः एक भाषा वैज्ञानिक पद्धति है। इसका मूल आधार भाषा की दृष्टि से साहित्य का मूल्यांकन है।
2. संरचनावाद का बीज तत्त्व रुसी रुपवाद है। सास्यूर के भाषा संबंधी अध्ययनों से इसका आरंभ हुआ।
3. संरचनावाद की अवधारणा तीन आधारभूत तत्वों पर निर्भर है- अखंडता, प्रयोजन और स्वायत्तता।
4. संरचनावाद अपने आप में पूर्ण होती है चाहे वह साहित्यिक कृति की हो या मिथक की।
5. रोलाबर्थ का मानना है कि साहित्य में अर्थ लेखक के पास ना होकर पाठ की संरचना में निहित होता है।
6. साहित्य निर्माण में पाँच तत्त्व काम करते हैं- शब्द, पद, वाक्य, मुहावरें एवं सास्कृतिकता इन पाँचों की सही पकड़ ही संरचनावाद है।