‘विखंडनवाद’ के प्रवर्तक ‘जॉक देरिदा’ थे।
जन्म – 1930 ई. में अल्जीरिया के यहूदी परिवार में हुआ था
निधन – 2004 ई.
* ये हाशिये से वंचित समूह (द्वितीय विश्व युद्ध और यहूदी) की संस्कृति से संबंधित थे।
* 19 वर्ष कि अवस्था में वे अध्ययन के लिए फ्रांस चले गए।
* ‘अल्बैर कामू’ और ‘सार्त्र’ के अध्ययन से आरंभ में प्रभावित हुए।
* अध्ययन के दौरान देरिदा सार्त्र के विचारों से असहमत हो गए।
* देरिदा ने अपने विखंडन के विचार को ‘हेडेगर’, ‘हुसेर्ल’ और ‘हिगेल’ के विपरीत विकसित किया।
रचनाएँ: (मुख्य दो हैं)
1. ऑफ ग्रामेटोलॉजी (1976 ई.)
2. राईट एंड डिफरेंट (1978 ई.)
विखंडनवाद को समझने के लिए देरिदा के पाठ (टेक्स्ट) को समझना आवश्यक है।
देरिदा का पाठ सिद्धांत:
पाठ की परिभाषा- पाठ से तात्पर्य है, वह संरचना जो चिह्नों की अर्थगर्भिता व्यवस्था से निर्मित हो।
देरिदा के अनुसार पाठ संरचना दो प्रकार की होती है-
1. साहित्येतर पाठ (सीधा अर्थ)
2. साहित्यिक पाठ (विशेष अर्थ)
दोनों रचनाएँ अपने-अपने पाठ के रूप में अलग और विशिष्ट हैं।
1. साहित्येतर पाठ (सीधा अर्थ) – बौद्धिक अभिव्यक्ति एवं अभिधा प्रधान संरचना।
2. साहित्यिक पाठ (विशेष अर्थ) – अजनबीपन लिए हुए लक्षणा एवं व्यंजना प्रधान संरचना।
विखंडन का स्वरुप:
* विखंडन अंग्रेजी के ‘डीकंस्ट्रक्सन’ का हिंदी रूपान्तर है।
* यह पारिभाषिक शब्द नहीं है यह परिवर्तनशील प्रक्रियाँ है।
* यह पाठ, आलोचना तथा अर्थ मीमांसा की नवीन पद्धति है।
जॉक देरिदा ने विखंडन को नवीन अर्थ दिया है, वे निम्न हैं –
1. विखंडन पाठ पर आधारित अवधारणा है।
2. भाषा में लिखा या रचा गया हर पाठ विखंडन होता है।
3. विखंडन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा पाठ की गहराई में ऐसे अर्थों तक पहुँचा जा सकता है जो रहस्यमय या गुढ़ बना दिए गए हो।
* जॉक देरिदा का मानना है कि भाषा किसी पाठ को, पाठ का रूप नियम के अनुसार देती है। ये वे नियम होते हैं जिनका समाज में वर्चस्व होता है। ये नियम भाषा पाठ के नियम होते हैं जो सामाजिक एवं राजनैतिक संरचनाओं का निर्माण करते हैं। ये वस्तुतः वर्चस्ववादी नियम होते हैं।
* इस वर्चस्ववादी व्यवस्था के फलस्वरूप कोई संरचना अथवा व्यवस्था हाशिए पर धकेल दी जाती है अथवा गूढ़ बना दिए गए हो। इस रूप में किसी पाठ को पढ़ा जाना विखंडन कहलाता है।
* जॉक देरिदा का मानना है कि वर्चस्ववादी व्यवस्था में किसी पाठ के केंद्र में स्थित अर्थ को विखंडित कर उसकी जगह हाशिए या गूढ़ बना दिए गए अर्थ या अर्थों को स्थापित किया जा सकता है। इस रूप में किसी पाठ का पढ़ा जाना विखंडन कहलाता है।
* इस वर्चस्ववादी व्यवस्था के फलस्वरूप कोई संरचना अथवा व्यवस्था हाशिए पर धकेल दी जाती है अथवा गूढ़ साबित कर दी जाती है। इस वर्चस्ववादी व्यवस्था के केंद्र में स्थित गूढ़ अर्थ को उजागर करना ही विखंडन है।
विखंडन के प्रेरक स्रोत-
जॉक देरिदा ने विखंडन के निम्नलिखित दो स्रोत माने हैं:
1. दार्शनिक स्रोत (एडमंड, हर्सल, सोरेन किर्केगार्द, मार्टिन हाइडेगर, नीत्से)
2. भाषा शास्त्रीय स्रोत (सास्युर, रोला बार्थ, विटगेंस्टीन)
विखंडनवाद के मुख्य दो भेद हैं: 1. डिफ़रेंस (अंतर), 2. डिफ़्रांस (स्थगन)
1. डिफ़रेंस (अंतर) – एक व्यक्ति द्वारा जिस उद्देश्य से कहा जाए उससे भिन्न अर्थ ग्रहण करना डिफ़रेंस है।
2. डिफ़्रांस (स्थगन) – पितृसत्तात्मक एवं नस्लवादी वर्चस्व युक्त अर्थ रखने वाले शब्दों के रहस्य को समझना।
विखंडन की प्रक्रिया के सूत्र: विखंडन के प्रक्रिया के निम्नलिखित तीन सूत्र है –
1.भिन्नता (Difference)
2. निशान/ संस्कार (Trace)
3. आद्य लेखन (Primitive Writing)
1.भिन्नता (Difference)
* भिन्नता का संबंध पाठ की भाषिक संरचना से है भिन्नता का अर्थ चिह्न की दो क्रियाओं, ‘भिन्न’ और ‘स्थगन’ से है।
* ‘स्थगन’ को देरिदा ने डीफ्रांस कहा है। भिन्न का अर्थ है पाठ में जो है वहाँ दूसरा नहीं है और स्थगन का अर्थ है वह जो पाठ में स्थगित है अथार्त चिह्न का आधा भाग वह है जो वह नहीं है और आधा भाग वह है जो वहाँ मौजूद नहीं है।
* सास्युर का चिह्न समीकरण – संकेतक (कहनेवाला) + संकेतित (सुननेवाला) है।
* देरिदा का चिह्न समीकरण – भिन्नता + स्थगन है।
* देरिदा का मानना है कि शब्द अपर्याप्य और अपूर्ण अभिव्यक्ति के साधन मात्र है। वे जीतनी अभिव्यक्ति देते हैं उससे कहीं अधिक अभिव्यक्ति को विलोपित करते हैं। ये चिह्न हमें उस दिशा की ओर प्रेरित करते हैं। जो चिह्न में नहीं है उसे कैसे तलाशा जाए?
2. निशान/ संस्कार (Trace)
जो चिह्न में नहीं है उसे कैसे तलाशा जाए? इस सवाल का जवाब देते हुए देरिदा कहते हैं कि निशाँ या ट्रेस के माध्यम से अनुपस्थित अर्थ तक पहुँचा जा सकता है। निशान और कुछ नहीं भाषा का मौन अंतराल है।
3. आद्य लेखन (Primitive Writing)
भाषा अनुपस्थित अर्थ ही आद्य लेखन है। इस आद्य लेखन तक पहुँचाना विखंडन की सार्थकता है।