‘लोंजाइनस’ का यूनानी नाम ‘लिगिनुस’ है। (उदात्त का अर्थ ‘महान’ है)
समय – ईसा की प्रथम से तृतीय शताब्दी के बीच
रचना- पेरिइप्सुस/ पेरिहुप्सुस (यह भाषण शास्त्र से संबंधित रचना है)
* यह यूनानी भाषा में ‘पत्रात्मक’ शैली में रचित है।
* इस रचना में कुल 44 अध्ययन है।
* अरस्तू के बाद लोंजाइनस यूनान के एक महान विचारक और काव्यशास्त्री माने जाते हैं।
रचना के बारे में विशेष तथ्य:
* यह रचना लोंजाइनस ने अपने मित्र पोस्तुमिउस तेरेंतियानुस को संबोधित करते हुए लिखी थी।
* संपूर्ण रचना उत्तम पुरुष में लिखी गई थी।
* लोंजाइनस से पहले होरेंस ने पत्रात्मक शैली, ‘आर्स पोएतिका’ की रचना की थी।
* इस रचना में काव्य को ‘उदात्तता’ प्रदान करनेवाले तत्वों की विवेचना है।
* लोंजाइनस से पहले/ पूर्व उदात्त शब्द का प्रयोग ,केकिलिउस, नामक विद्वान ने किया था।
* ‘पेरिहुप्सुस’ का सबसे पहले प्रकाशन ‘इतावली’ (इटेलियन) विद्वान ‘रोबरतेल्लो’ ने 1554 ई. में करवाया।
* इस रचना का सबसे पहले अंग्रेजी में अनुवाद जॉन हॉल ने 1652 ई. में ‘ऑफ दि हाइट ऑफ एलोक्वेन्स’ के नाम से किया था।
* बॉयलों ने 1674 ई. में इसका अंग्रेजी में अनुवाद ‘ऑन द सबलाइम’ नाम से किया।
* सैंट सबरी ने भी इसका अनुवाद ‘ऑन द सबलाइम’ नाम से किया।
‘पेरिहुप्सुस’ के अध्यायों का वर्णन –
अध्याय – 1-7: ग्रंथ के प्रयोजन उदात्त की परिभाषा एवं काव्य दोषों की विवेचना किया है।
अध्याय – 8-15: उदात्त के स्रोतों, विचार एवं भाव प्रबलता की विवेचना है।
अध्याय – 16-29: अलंकारों का निरूपण है।
अध्याय – 30-38: शब्द, रूप, बिंब आदि की विवेचना है।
अध्याय – 39-40: रचना की भव्यता का निरूपण है।
अध्याय – 41-43: उदात्त के विरोधी एवं अन्य दोषों की चर्चा है
अध्याय – 44: यूनान के नैतिक साहित्य में ह्रास के कारणों की खोज कि गई है।
‘लोंजाइनस’का उदात्त सिद्धांत:
‘लोंजाइनस’ ने उदात्त का मूल उद्गम कवि की प्रतिभा को माना है। उन्होंने कहा कि कवि की प्रतिभा बिजली की तरह चमकती है और पाठक को अभिभूत कर लेती है। यह उदात्तता सम्मोहन कारी होती है।
काव्य में उदात्तता हेतु निम्नलिखित गुण होना चाहिए श्रेष्ठ भाव, श्रेष्ठ भाषा, शैली, श्रेष्ठ उद्देश्य और गरिमामय रचना विधान होना चाहिए।
‘लोंजाइनस’के अनुसार उदात्त के तत्व/स्रोत:
‘लोंजाइनस’ ने उदात्त के पाँच स्रोत माने हैं जिनमे से दो अतरंग स्रोत और तीन बाध्य स्रोत हैं।
1. अतरंग तत्व (जन्मजात प्रतिभा से उत्पन्न होते है)
(i) महान विचार या धारणाएँ (ii) प्रबल आवेग युक्तभावों की उत्कृष्टता
2. बाह्य तत्व (अभ्यास से उत्पन्न होते है)
(i) अलंकारों का समुचित प्रयोग (ii) भव्य शब्द योजना (iii) गरिमामय अभिव्यक्ति
लोंजाइनस ने उदात्त के निम्न्लिखीय ग्यारह (11) सहायक अलंकारों का उल्लेख किया है –
1. विस्तारण अलंकार
2. शपथोक्ति अलंकार
3. प्रश्ना अलंकार
4. विपर्यय या व्यतिक्रम अलंकार
5. पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार
6. प्रत्यक्षीकरण अलंकार
7. छिन्न वाक्य अलंकार
8. संचयन अलंकार
9. सार अलंकार
10. रूप परिवर्तन अलंकार
11. पर्यायोक्ति अलंकार
लोंजाइनस के अनुसार उदात्त के विरोधी तत्व:
शब्दालंकार – इसे लोंजाइनस ने जलोदर रोग के सामान कहा है।
बालिशयता (बचकानापन) – अनावश्यक होने पर भी किसी बात को खींचते जाना।
भावाडंबर – अनावश्यक भावों का प्रदर्शन या भावों में बनावटीपन नहीं होना चाहिए।
विशेष तथ्य:
* लोंजाइनस ने उदात्त तत्व की समानता भारतीय काव्यशास्त्र कुंतक के वक्रोक्ति सिद्धांत से बताई जा सकती है।
* स्कॉटजेम्स ने लोंजाइनस को प्रथम स्वच्छंदतावादी आलोचक माना है।
* लोंजाइनस ने काव्य को शुद्ध सौंदर्यवादी दृष्टि से देखा है।
* लोंजाइनस को कुछ विद्वानों ने प्रथम रोमैंटिक समीक्षक माना है जबकि कुछ अन्य विद्वानों ने उन्हें सर्वोत्तम क्लासिकल समीक्षक माना है।
परिभाषाएँ:
लोंजाइनस के शब्दों में – “उदात्त महान आत्मा की प्रतिध्वनि है।”
लोंजाइनस के शब्दों में – “उदात्त अभिव्यंजना का अनिर्वचनीय प्रकर्ष और वैशिष्ट्य है।”
जॉन हॉल के शब्दों में – “विचार, भाव, भाषा, शैली, रचना विधान की गरिमा ही काव्य का उदात्त तत्व है।”