विश्व की भाषाओँ की संख्या को लेकर विद्वानों के विचार विभक्त है। सामान्यत: इनकी संख्या 2796 से 3000 के बीच मानी जाती है।
संसार की सभी भाषाओँ का अध्ययन दो प्रकार के वर्गीकरण के तहत् किया जाता है-
1. अकृतिमूलक वर्गीकरण
2. पारिवारिक वर्गीकरण
विश्व में भाषा परिवार की संख्या को लेकर विभिन्न मत है-
‘भोलानाथ तिवारी’ और ‘फॉन हुम्बोल्ट’ ने भाषा परिवारों की संख्या 13 मानी है। ‘फ्रिडीस म्यूलर’ ने इनकी संख्या 100 मानी है।
निर्विवादित रूप से 4 भौगोलिक क्षेत्र के अंतर्गत 18 भाषा परिवारों को महत्व दिया गया है।
1. यूरेशिया (यूरोप-एशिया)
2. अफ्रीका भूखंड
3. प्रशांत महासागरीय भूखंड
4. अमेरिका भूखंड
भारोपीय परिवार- भारोपीय परिवार के अन्य नाम हैं – इंडो जर्मेनिक, भातर-हिती परिवार, आर्य परिवार।
ध्वनि के आधार पर भारोपीय परिवार के 10 शाखाओं को ‘शतम्’ व ‘केंटुम’ दो भागों में बाटा गया है।
भारत – ईरानी के तीन वर्गों का उल्लेख ग्रियर्सन ने किया है।
1. ईरानी 2. दरद 3. भारतीय आर्यभाषा
भारतीय आर्यभाषा को तीन भागों में विभाजित किया है।
भारतीय आर्य भाषाओँ की उत्पत्ति प्राचीन काल से ही हो गयी थी। अधिकांश विद्वान यह मानते हैं कि लगभग 2400 ई. पूर्व आर्य भारत आए थे।
(क) प्राचीन भारतीय आर्य भाषा – 2000 / 1500 – 500 ई. पू. तक
(ख) मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाएँ – 500 ई. पू. – 1000 ई.पू
(ग) आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ – 1000 ई. पू. से अबतक
(क) प्राचीन भारतीय आर्य भाषाएँ: इस काल में भारतीय आर्य भाषा के दो रूप मिलते हैं –
1. वैदिक संस्कृत – 2000 ई.पू. – 1000 ई.पू. (वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण ग्रंथ आदि लिखे गए।)
2. लौकिक संस्कृत – 1000 ई.पू. – 500 ई.पू. (रामायण, महाभारत, नाटक आदि लिखें गए)
(ख) मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा – 500 ई. पू. – 1000 ई. पूर्व
इसके विकास काल को तीन भागों में विभाजित किया जाता है –
> पालि – 500 ई. पूर्व. – 1 ई. (बुद्ध की शिक्षा और साहित्य),
पालि भारत की प्रथम ‘देशभाषा’ है। श्रीलंका या ‘सिंहल’ के लोग पालि को ‘मागधी’ कहते हैं।
> प्राकृत / शौरसेनी – 1वीं ई.पू. – 500 ई.पू. (जैन शिक्षा महावीर स्वामी), प्राकृत मथुरा या शूरसेन-जनपद के आसपास बोली जाती थी। यह मध्यदेश की प्रमुख भाषा थी।
प्राकृत के पाँच स्वरुप हैं – शौरसेनी (शौरसेनी प्राकृत मध्यदेश में शुर सेन प्रदेश के अंतर्गत प्रचलित थी।), पैशाची, महाराष्ट्री, मागधी, अर्द्ध मागधी
> अपभ्रंश/ अवहट्ठ/ पुरानी हिंदी – 500 ई. – 1000 ई. (6ठवीं शती)
निष्कर्ष के रूप में विद्वानों का विचार है कि उस समय कम से कम सात अपभ्रंश भाषाएँ प्रचलित थीं। शौरसेनी, महाराष्ट्री, मागधी, अर्ध मागधी, पैशाची, ब्राचड़ और खस। इनसे ही आधुनिक आर्य भाषाएँ विकसित हुई।
(ग) आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ- 1000 ई. – अबतक
आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओँ का विकास अपभ्रंश के विभिन्न रूपों से हुआ है। इस संदर्भ में अपभ्रंश के 7 रूप हैं-
अपभ्रंश – आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ
शौरसेनी – पश्चिमी हिंदी, गुजराती, राजस्थानी
महाराष्ट्री – मराठी
मागधी – बिहारी, बंगला, उड़िया, असमी
अर्ध मागधी – पूर्वी हिंदी
पैशाची – लहंदा, पंजाबी
ब्राचड़ – सिन्धी
खस – पहाड़ी
यह निर्विवाद सत्य है कि आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ अपभ्रंशों से विकसित हुई है।
विश्व में बोली जानेवाली भाषा परिवारों की विवेचना:
विश्व में बोली जानेवाली करीब 7000 हजार भाषाओँ को कुल 10 परिवारों में बाँटा गया है:
1. भारत-यूरोपीय भाषा परिवार
2. चीनी-तिब्बती भाषा परिवार
3. सामी-हामी भाषा परिवार/ अफ़्रीकी-एशियाई भाषा परिवार
4. द्रविड़ भाषा परिवार
5 यूराल-अतलाई भाषा परिवार
भारत-यूरोपीय भाषा परिवार / भारोपीय भाषा परिवार/ हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार
(Indo-European Family)
* यह भाषा समूह भाषाओँ का सबसे बड़ा परिवार है।
* इसमें समूह में अंग्रेजी, रुसी , प्राचीन फ़ारसी, हिंदी, पंजाबी, जर्मन, नेपाली आदि से संबंध रखती है।
* इसे भारोपीय भाषा-परिवार भी कहते हैं।
* विश्व की जनसंख्या के लगभग आधे लोग (45 प्रतिशत) भारोपीय भाषा बोलते हैं।
* संस्कृत, ग्रीक और लातीनी जैसी शास्त्रीय भाषाओँ का संबंध भी इसी भाषा समूह से है।
* अरबी भाषा का संबंध बिल्कुल विभिन्न परिवार से है।
* इस परिवार की प्राचीन भाषाएँ बहिर्मुखी शिलिष्ट-योगात्मक (end-inflecting) थीं
इसी समूह को पहले आर्य-परिवार भी कहा जाता था।
चीनी-तिब्बती भाषा परिवार (The Sino-Tibetan Family)
* विश्व में जनसंख्या के अनुसार सबसे बड़ी भाषा परिवार मंदारिन (उत्तरी चीनी भाषा) इसी भाषा से संबंध रखती है।
* चीन और तिब्बत में बोली जाने वाली कई भाषाओँ के अलावा बर्मी भाषा भी इसी परिवार की है।
* इस भाषा की स्वरलहरी एक ही है। एक ही शब्द को ऊँचे या नीचे स्वर में बोलने से शब्द का अर्थ बदल जाता है।
* इस भाषा परिवार को ‘नाग भाषा-परिवार’ नाम दिया गया है।
* इसे ‘एकाक्षर परिवार’ भी कहते हैं। इसका कारण यह है कि इसके मूल शब्द प्रायः एकाक्षर होते हैं।
* ये सभी भाषाएँ कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, नागालैंड, नेपाल, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, भूटान, अरुणाचल प्रदेश, आसाम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम स्थानों में बोली जाती है।
सामी-हामी भाषा-परिवार/ अफ़्रीकी-एशियाई भाषा-परिवार (The Afro- Asiatic Family or Semito-Hamitic Family)
* इसकी प्रमुख भाषाओँ में आरामी, असेरी, सुमेरी, अक्कादी और कनानी वैगेरह शामिल थीं।
* इस समूह की मुख्य भाषाएँ अरबी और इब्रानी हैं।
* इन भाषाओँ में मुख्यतः तीन धातु-अक्षर होते हैं और बीच में स्वर घुसाकर इनसे क्रिया और संज्ञाएँ बनायी जाती हैं। (ये अंतर्मुखी शिलिष्ट-योगात्मक भाषाएँ कहलाती हैं)
द्रविड़ भाषा परिवार (The Dravidian Family)
* ये भाषाएँ भारत के दक्षिणी प्रदेशों में बोली जाती है लेकिन उनका उत्तरी क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषाओँ से कोई संबंध नहीं है।
* इस भाषा का उर्दू, हिंदी, अंग्रेजी, जर्मन भाषा से कोई संबंध निकल सकता है लेकिन मलयालम भाषा से नहीं।
* दक्षिणी भारत और श्रीलंका में द्रविड़ समूह की 26 भाषाएँ बोली जाती है।
* इस परिवार की प्रमुख भाषा तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ हैं।
* ये अन्त-अशिलिष्ट-योगात्मक भाषाएँ हैं।
यूराल-अतलाई भाषा परिवार
* प्रमुख भाषाओँ के आधार पर इसके अन्य नाम है- तूरानी, सीदियन, ‘फोनी-तातारिक’ और ‘तुर्क-मंगोल-मंचू’ कुल भी है।
* इसका क्षेत्र बहुत विस्तृत है, किन्तु मुख्यतः साइबेरिया, मंचूरिया और मंगोलिया में है।
* प्रमुख भाषाएँ-तुर्की या तातारी, किरगिज, मंगोली और मंचु है, जिनमे सर्व प्रमुख तुर्की है।
* साहित्यिक भाषा उस्मानली है तुर्की पर अरबी और फ़ारसी का बहुत अधिक प्रभाव था किन्तु आजकल इसका शब्दसमूह बहुत कुछ अपना है। * ध्वनि और शब्दावली की दृष्टि से इस कुल की यूराल और अल्लाई भाषाएँ एक-दूसरे से काफी भिन्न है।