‘यूनान’ पाश्चात्य काव्यशास्त्र और दर्शन का स्रोत माना जाता है और प्लेटो को पाश्चात्य कव्य शास्त्रीय परंपरा का प्रारंभिक दार्शनिक।
20वीं शताब्दी का सबसे महत्वपूर्ण और समृद्ध आलोचनात्मक आन्दोलन का नाम ‘नयी समीक्षा’ आन्दोलन है।
आधुनिक काल में इंग्लैंड और अमेरिका में साहित्यिक आलोचना से संबंधित यह सबसे बड़ा आंदोलन था।
इस आलोचनात्मक आन्दोलन का उद्भव ‘आंग्ल-अमरीकी’ आलोचनात्मक के रूप में हुआ।
पश्चिम में रचना की इस समीक्षा पद्धति को ‘नयी समीक्षा’ नाम दिया गया। इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले कोलंबिया विश्वविधालय के तुलनात्मक साहित्य के प्रोफ़ेसर एस.ई. स्पिनगार्न ने 1911 ई. में ‘नयी समीक्षा’ शीर्षक नाम से शोध पत्र लिखा था जो 1913 ई. में प्रकाशित हुआ।
इस ‘नयी समीक्षा’ शोधपत्र में स्पिनगार्न ने क्लासिकल, रोमांटिक, समाजशास्त्रीय, जीवनीमूलक आदि समीक्षा पद्धतियों को अस्वीकार करते हुए स्थापित किया था कि समीक्षा वस्तुतः एक प्रकार की वैयक्तिक प्रतिक्रिया है, जो जीवंत-दृष्टि पर आधारित होती है।
यह निश्चित है कि टी.एस. इलियट की पुस्तक – दि सिक्रेड वुड (1920 ई.),
मिल्टन मरे की पुस्तक – ‘दि प्राबल्म ऑफ स्टाइल’ (1922 ई.), और
आई. ए.रिचर्ड्स की पुस्तक – प्रिन्सिपुल्स ऑफ लिटरेरी क्रिटिसिज्म’ (1924 ई.) आदि कृतियों के माध्यम से नयी समीक्षा के आधार तत्तवों का विकास हुआ।
अमरीका में आई.ए. रिचर्ड्स को नयी समीक्षा का ‘जनक’ माना जाता है।
नयी समीक्षा को पूर्णतः प्रतिष्ठित करने वाले ‘जॉन क्रो रैनसम’ के अनुसार- रिचर्ड्स को माना जाता है।
जॉन क्रो रैनसम के अतिरिक्त एलेन टेट, रॉबर्ट पेन वारेन, आर. पी. ब्लैकमर, आइवर विंटर और क्लीन्थ बुक्स आदि नए समीक्षकों में प्रमुख माने जाते हैं।
सभी समीक्षकों ने कविता के साथ उसके भाषिक विश्लेषण पर बल दिया।
इन सभी समीक्षकों ने ‘कविता’ पर ही पूरा ध्यान केन्द्रित करते हुए उसके भाषिक विश्लेषण पर बल दिया।
रैनसम के अनुसार – “कविता की रूप-रचना में ‘शब्द-विधान’ (Texture) और ‘अर्थविधान’ (Structure) दोनों का संश्लेषण (मिलना) होता है। शब्दविधान, ‘बिंबविधान’ और अर्थविधान ‘विचारात्मक’ है। इन दोनों का तनाव ही काव्यभाषा को अपेक्षित (जिसकी चाह या आशा) भंगिमा प्रदान करता है।”
एलेन टेट के अनुसार – “कविता का अस्तित्व जिस संतुलन पर स्थित होता है वह उसके बहिरंग संतुलन पर स्थित होता है और वह उसके बहिरंग संतुलन (Extension) और अंतरंग (Intension) के बीच घटित होता है।”
एलेन टेट ने यहाँ ‘संतुलन’ शब्द का प्रयोग ‘बहिरंग संतुलन’ (अभिधेयार्थ को प्रकट करनेवाला) और ‘अंतरंग’ शब्द का प्रयोग (लक्ष्यार्थ को प्रकट करनेवाला) के बीच पूर्ण सामंजस्य के अर्थ में लिया है।
रॉबर्ट पेन वारेन की ख्याति आलोचना से अधिक कवि और उपन्यासकार के रूप में हुआ।
रॉबर्ट पेन वारेन ने काव्य-भाषा में व्यंग्य, विरोधाभास और प्रतीक पर बल दिया है।
आइवर विटर के अनुसार – “कवि अपनी भाषा में अविधार्थ और लक्ष्यार्थ का गूढ़ संश्लेष उपस्थित करता है।”
क्लींथ ब्रुक्त ने ‘विसंगति’ (Paradox) को काव्यभाषा का प्रधान गुण माना है। उनके अनुसार विसंगति ही किसी कविता के संरचनात्मक ढाँचे का मूल आधार है।
आर. पी. ब्लैकमर के अनुसार – “सांकेतिकता ही काव्य भाषा का प्रधान गुण है, क्योंकि इसमें गति होती है, जहाँ अभिधा समाप्त हो जाती है वहाँ सांकेतिक भाषा कार्य करती है।”
नयी समीक्षा के उन्नायक काव्यभाषा के तात्विक विवेचन में एकमत नहीं है, किन्तु नई समीक्षा की मूल प्रतिज्ञा “काव्य स्वतः वस्तु है” को लेकर पूर्ण सहमती है।
नयी समीक्षा प्रमुख तथ्य:
* नयी समीक्षा के कृतिकार से अधिक कृति को महत्व दिया जाता है।
* इसमें कृति की रूप रचना, कृति की शब्दावली, शब्दों की बनावट अर्थ की ढांचा, सादृश्य विधान अर्थ निर्वाह आदि बातों पर विचार किया जाता है।
* नयी समीक्षा में कृति के शब्द विधान, प्रतीक विधान, लय, शब्द भंगिमा, तनाव, विरोधभास् आदि पर ध्यान दिया जात है।
* नयी समीक्षा कलाकृति की अखंडता को स्वीकार करती है।
* नयी समीक्षा में कृति के विचार पक्ष और वस्तु पक्ष दोनों को अलग-अलग नहीं देखा जाता दोनों की समंवित इकाई उसे कृति बनाती है।
* कविता शब्द विधान और अर्थ विधान की सम्मिलित बनावट है। इसमें शब्द विधान प्रमुख होता है। वही काव्य को सौंदर्य प्रदान करती है। * ‘नयी समीक्षा’ रचना को शुद्ध रूप से देखने की पक्षधर है।