रचना – ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’ (1969 ई.)
रचनाकार – हरिवंशराय बच्चन (1907 – 2003 ई.)
जन्म – 27 नवंबर 1907 ई. प्रयागराज (उ.प्र.)
निधन – 18 जनवरी, 2003 ई. मुंबई
हरिवंशराय बच्चन की आत्मकथा चार खंडों में प्रकाशित है-
1. क्या भूलूँ क्या याद करूँ (1969 ई.)
2. नीड़ का निर्माण फिर से (1970 ई.)
3. बसेरे से दूर (1978 ई.)
4. दस द्वार से सोपान तक (1985 ई.)
* ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’ में बच्चन जी आरंभिक जीवन के संघर्ष का वर्णन है।
* यह हरिवंशराय बच्च्न की बहुप्रशंसित आत्मकथा तथा हिंदी साहित्य की एक कालजयी कृति है। इस आत्मकथा में संस्मरण, यात्रावृत, कविता आदि अनेक विचार और शैलियाँ गुंफित है।
* इसमें तत्कालीन समय के संयुक्त परिवार तथा गरीबी में भी लोगों का एक साथ रहने का सुन्दर उदाहरण प्राप्त होता है।
* बच्चनजी ने अपनी आत्मकथाओं को एक ‘स्मृति यात्रा यज्ञ’ माना है।
“क्या भूलूँ क्या याद करूँ” आत्मकथा की प्रसिद्ध पंक्तियाँ
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
अगणित उन्मादों के क्षण हैं,
अगणित अवसादों के क्षण हैं,
रजनी की सूनी घड़ियों को
किन-किन से आबाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
याद सुखों की आँसू लाती,
दुख की, दिल भारी कर जाती,
दोष किसे दूँ जब अपने से
अपने दिन बर्बाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
दोनों करके पछताता हूँ,
सोच नहीं, पर मैं पाता हूँ,
सुधियों के बंधन से कैसे
अपने को आज़ाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
* इसके लिए बच्चनजी को भारतीय साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार ‘सरस्वती सम्मान‘ से सम्मनित किया गया।
* डॉ॰ धर्मवीर भारती ने इसे हिन्दी के हज़ार वर्षों के इतिहास में ऐसी पहली घटना बताया जब अपने बारे में सब कुछ इतनी बेबाकी, साहस और सद्भावना से कह दिया है।
* डॉ॰ हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार इसमें केवल बच्चन जी का परिवार और उनका व्यक्तित्व ही नहीं उभरा है बल्कि उनके साथ समूचा काल और क्षेत्र भी अधिक गहरे रंगों में उभरा है।
* डॉ॰ शिवमंगल सिंह सुमन की राय में ऐसी अभिव्यक्तियाँ नई पीढ़ी के लिए पाथेय बन सकेंगी, इसी में उनकी सार्थकता भी है। * रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के अनुसार हिंदी प्रकाशनों में इस आत्मकथा का अत्यंत ऊँचा स्थान है।