रचना – ‘अरे यायावर रहेगा याद’ (1953 ई.)
रचनाकार – सच्चितानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ (1911- 1987 ई.)
* अज्ञेय द्वारा रचित ‘अरे यायावर रहेगा याद’ का आरम्भ ‘परशुराम‘ के लेख से होता है।
* इसमें ‘अज्ञेय’ की ‘भारतीय’ यात्राओं का चित्रण है।
* इसमें अज्ञेय ने ब्रह्मपुत्र के मैदानी भाग से लेकर एलोरा की गुफाओं तक की यात्राओं का वर्णन किया है।
* ‘एक बूँद सहसा उछली’ में ‘यूरोपीय’ यात्राओं का चित्रण है।
‘अरे यायावर रहेगा याद में’ में 8 यात्रा वृतांतों का उल्लेख है-
1.परशुराम से तुरखम (एक टायर की राम कहानी)
2. किरणों की खोज
3. देवताओं की अंचल में
4. मौत की घाटी में
5. एलुरा
6. माझुली
7. बहता पानी निर्मल
8. सागर-सेवित, मेघ-मेखलित (कन्याकुमारी से नंदादेवी)
* यह एक क्लासिक यात्रा संस्मरण है।
* आधुनिक हिन्दी साहित्य में राहुल सांकृत्यायन ‘घुम्मकड़ प्रवृत्ति’ के साहित्यकार माने जाते हैं।
* ‘राहुल’ के बाद ‘अज्ञेय’ हैं, जिन्हें हिन्दी साहित्य में सबसे अधिक ‘घुम्मकड़ प्रवृत्ति’ के साहित्यकार के रूप में पहचान मिली है।
* ‘राहों के अन्वेषी’ के रूप विख्यात अज्ञेय अपने जीवन में देश-विदेश की अनेक यात्राएं की। * वे ‘रमता राम’ की तरह सदा भ्रमण करते रहे।
‘बहता पानी निर्मल’ शीर्षक वृत्तांत में अज्ञेय लिखते हैं – “यों तो वास्तविक जीवन में भी काफ़ी घूमा-भटका हूं, पर उस से कभी तृप्ति नहीं हुई, हमेशा मन में यही रहा कि कहीं और चलें, कोई नयी जगह देखें और इस लालसा ने अभी भी पीछा नहीं छोड़ा है।”
अज्ञेय स्वयं को न तो ‘नगर’ का मानते हैं और ना ही ‘ग्राम’ का, वे तो अपने को ‘अटवी’ का मानते हैं। जिस प्रकार अटवी यानी जंगल के प्राणी विमुक्त रूप से विचरण करते रहते हैं ठीक वैसे ही अज्ञेय भी आजीवन भ्रमण करते रहे।
अज्ञेय ने बाह्य-यात्राओं की तुलना में अधिक अंतर्यात्राएँ की हैं। एक जगह पर अज्ञेय ने लिखा भी हैं- “वास्तव में जितनी यात्राएँ स्थूल पैरों से करता हूँ, उस से ज्यादा कल्पना के चरणों से करता हूं।” अज्ञेय कहीं रुके नहीं। अज्ञेय की मान्यता है कि “देवता भी जहां रुके कि शिला हो गये, और प्राण-संचार के लिए पहली शर्त है गति, गति, गति !”
इसीलिए यह ‘यायावर’ हमेशा भटकता रहा, कभी भी अपने पैरों तले घास जमने नहीं दिया।