विष्णु प्रभाकर : आवारा मसीहा

रचना – आवारा मसीहा (प्रसिद्ध रचनाकार शरदचंद्र चटोपाध्याय की जीवनी है।)

प्रकाशन वर्ष – 1974 ई.

रचनाकार – विष्णु प्रभाकर (21 जून 1912- 2009 ई.)

शरदचंद्र के पिता का नाम – मोतीलाल

शरदचन्द्र की माता का नाम – भुवनेश्वरी देवी

      * पद्मभूषण विष्णु प्रभाकर जी ने 1959 ई में एक किताब लिखना शुरू किया जो 1973 ई. में पूरा हुआ।

      * इस उपन्यास को पूरा करने में विष्णु प्रभाकर को 14 वर्ष का समय लगा था।

      * ‘आवारा मसीहा’ लिखकर ‘प्रभाकर’ जी ने हिंदी और बंगला साहित्य के बीच एक ‘सेतु’ का निर्माण किया जो समूचे राष्ट्र की एकता का प्रतीक है।

इस पुस्तक की सामग्री तीन प्रमुख स्रोत रहे हैं –

      * प्रथम उन व्यक्तियों का साक्षात्कार जो किसी न किसी रूप में शरद्बाबू से संबंधित रहे है।

      * दूसरे उनके समकालीन मित्रों के लेख, संस्मरण आदि।

      * तीसरे उनकी अपनी रचनाओं में इधर-उधर विखरे वे प्रसंग जिसका उनके जीवन से सीधा संबंध रहा है।

‘आवारा मसीहा’ में आई कोई भी घटना प्रभाकर जी की कल्पित नहीं है।

यह जीवनी तीन पर्वो में विभाजित है:

      * दिशाहारा, दिशा की खोज और दिशांत। ये तीनों पर्व (भाग) उप-शीर्षकों में विभाजित है।

      * ‘दिशाहारा’ (18 उप-शीर्षक हैं) 75 पृष्ठों में

      * ‘दिशा की खोज’ (18 उप-शीर्षक हैं) 91 पृष्ठों में 

      * दिशांत में (30 उप-शीर्षक हैं) 271 पृष्ठों में   

      दिशाहारा – यह प्रथम पर्व है। इसमें शरदचंद्र की बाल्यावस्था से किशोरावस्था तक की घटनाओं का वर्णन है। उनके बचपन के शरारतों में भी एक अत्यंत संवेदनशील और गंभीर व्यक्तित्व के दर्शन होते है।  

      दिशा की खोज – साहित्यिक जीवन और दिशा की खोज है। द्वितीय पर्व में शरद के लेखन, विकास के प्रेरणा के स्त्रोत, रचनाओं की पृष्ठभूमि और पात्रों से समरसता, रंगून प्रवास, गृहदाह, सृजन का आवेग, चरित्रहीन, आरोप, बिराज बहू और आवारा, श्रीकांत की चर्चा है।

      दिशांत – इसमें रंगून से स्वदेश लौटने का वर्णन है। सामाजिक कार्य साहित्यिक विधाओं में रचनाशीलता

प्रमुख पात्र:

      केदारनाथ – शरदचन्द्र के नाना

      विन्ध्यावास्नी – शरदचन्द्र की नानी

      मोतीलाल – शरदचन्द्र के पिता

      भुवनेश्वरी – शरदचन्द्र की माता

      मणीन्द्र – शरदचन्द्र के छोटे नाना

      सुरेन्द्र – शरदचन्द्र के छोटे मामा  

      अक्षय पंडित –  शरदचन्द्र और मामा को पढ़ाने वाले शिक्षक

      मुशाई – शरदचन्द्र के नाना के नौकर

      शांति – शरदचन्द्र की पहली पत्नी

      मोक्षदा – शरदचन्द्र की दूसरी पत्नी (मोक्षदा का अन्य नाम हिरण्यमयी था) 

      कृष्णदास – मोक्षदा के पिता

      धीरू – शरदचन्द्र की बाल संगिनी

      अनिला – शरदचन्द्र की बड़ी बहन  

विशेष तथ्य:

      * शरदचन्द्र की कहानियाँ ‘यमुना’ पत्रिका में छपती थी।

      * देवदास, चरित्रहीन, काशीनाथ आदि पुस्तकों के प्रकाशित होते ही शरदबाबू को उच्च कोटि के लेखकों में गिना जाने लगा।

      * शरद बाबू को चरखा चलाना बहुत पसंद था वे काफी महीन सूत कातते थे

      * उनकी रचना ‘पाथेर दाबी’ को अंग्रेजों ने जब्त कर लिया था।

      * शरद की पत्नी शान्ति की मौत प्लेग बिमारी से हुई थी।

      * क्लर्क के रूप में शरद को 50 रुपया वेतन मिलता था।

      * वृद्धावस्था में शरद बाबू को जानलेवा रोग कैंसर हो गया था।

      * ‘कुन्तलीन’ पुरस्कार प्रतियोगिता के लिए शरदचन्द्र ने मंदिर नामक कहानी लिखी    * उन्होंने लेखक के नाम के जगह अपना नाम नहीं लिखकर सुरेन्द्र का नाम लिखा था।

      * प्रतियोगिता में इस कहानी को प्रथम स्थान और पुरस्कार के रूप में 25 रुपया मिला था।

      * 16 जनवरी 1938 ई. के दिन शरदचन्द्र का निधन हो गया।

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