रचना – मेरी तिब्बत यात्रा (1937 ई.)
रचनाकार – राहुल सांकृत्यायन (1893-1963 ई.)
जन्म – 9 अप्रैल, 1893 ई.
निधन – अप्रैल, 1963 ई.
राहुल सांकृत्यायन साधु, बौद्ध भिक्षु, यायावर, इतिहासकार, पुरातत्त्ववेत्ता, नाटककार और कथाकार थे। ये जुझारू स्वतंत्रता-सेनानी, किसान-नेता, जन-जन के प्रिय थे। उनके अनन्य मित्र भदंत आनन्द कौसल्यायन के शब्दों में, ”उन्होंने जब जो कुछ सोचा, जब जो कुछ माना, वही लिखा, निर्भय होकर लिखा। चिन्तन के स्तर पर राहुल जी कभी भी न किसी साम्प्रदायिक विचार-सरणी से बँधे रहे और न ही संगठित-सरणी से। वे ‘साधु न चले जमात’ जाति के साधु पुरुष थे। राहुलजी ने धर्म, संस्कृति, दर्शन, विज्ञान, समाज, राजनीति, इतिहास, पुरातत्व, भाषा-शास्त्र, संस्कृत ग्रंथों की टीकाएँ, अनुवाद और इसके साथ-साथ रचनात्मक लेखन करके हिन्दी को इतना कुछ दिया कि हम सदियों तक उस पर गर्व कर सकते हैं। उन्होंने जीवनियाँ और संस्मरण भी लिखे और अपनी आत्मकथा भी। उन्होंने अनेक दुर्लभ पांडुलिपियों की खोज और संग्रहण के लिए व्यापक भ्रमण किया।
प्रकाशन संस्था – छात्र हितकारी पुस्तक माला, दारागंज प्रयाग (उ. प्र.) ‘डायरी’ शैली में रचित यात्रा वृत्तांत
पृष्ठ संख्या – 167, कुल 33, खंड – 5
खंड – 1 : ल्हासा से उत्तर की ओर
खंड – 2 : चाड की ओर
खंड – 3 : स क्या की ओर
खंड – 4 : जेनम् की ओर
खंड – 5 : नेपाल की ओर
प्रश्न खंड – (ल्हासा से उत्तर कि ओर)
* पया-फेन-बो – 30-7-1934 ई.
* राहुल जी ने 30-7-1934 ई. को पया-फेन-बो से मित्र प्रिय अनंद जो को संबोधित लिखा है।
* ल्हासा में राहुल जी 2 माह 11 दिन रहे थे।
* इस यात्रा में उनके साथ 4 साथी / दोस्त थे।
(i) ल्हासा का फोटोग्राफी श्री लक्ष्मीरतन
(ii) इन्-ची-मिन-ची
(iii) सो-नम्-ग्यल म छन (पुन्य ध्वज)
(iv) गेन्-दुन् छो फेल (धर्म संघन)
* लक्ष्मी रत्न जी को लोग नाती-ला के नाम से जानते थे।
* ल्हासा के बाद पहला स्थान तब चीका आया था।
* सोनम ग्यंर्ज द्वारा बताये गये मुहूर्त के आधार पर राहुल जी ने 30 जिले को 8:30 बजे ल्हासा से उत्तर की ओर अपनी यात्रा का श्री गणेश किया था।
नालंदा (तिब्बत) 31-7 1934 ई.)
* पा-या से 8:30 मिनट पर छः खच्चरों के साथ रवाना हुए
* उनके स्तूपों में युक्त लड़-थड़ (बैलों का मैदान)
* लड़-थड़ पा दोर्जे-जे-सेड-गे (ब्रजसिंह द्वारा बिहार का निर्माण)
* लड़-थड़-पा बड़ा विनायधर था, इसे जीवन में सिर्फ तीन बार हँसी आई थी।
मेरी तिब्बत यात्रा के प्रमुख पात्र:
1. लक्ष्मी रत्न – लहासा का फोटोग्राफरलोग इसे नाती-ला के नाम से जानते थे।
2. इन-ची-मिन-ची – राहुल जी का साथी, इसे आत्मरक्षा के लिए साथ लिया था यह बंदूक चलाना जानता था
3. सो-नम्-ग्याल-म्छन – (पुण्य ध्वज), खच्चरों का मालिक श्वाम, पूर्वी तिब्बत का निवासी।
4. गेन्-दुन्-छो-फेल – (संघ धर्मवर्धन), यह चित्रकार है। इतिहास और न्यायशास्त्र का जानकार भी, 7 गोलियों वली पिस्तौल और कारतूस की माला धारण किया हुआ था।
5. शाक्य श्री भद्र – कश्मीर के पंडित, विक्रमशिला के अंतिम नायक
6. ट-शी-लामा – भोट के प्रधान धर्माचार्य
7. पंडित गयाधर – वैशाली के कायस्त पंडित
8. सुमित प्रज्ञ – राहुल संकृत्यायन के स्वर्गीय मित्र
9. जोगमान – पाटन (नेपाल) का साहू जिसने राहुल जी को रहने के लिए अपनी दूकान का उपरी भाग (कोठा) दिया था।
10. सम-लो-गे-शे-ट-शी लहुन के सबसे बड़े पंडित नैयायिक अवस्था 53 वर्ष, विद्दानुरागी
11. जे-चुन-शे-ख-व्युड गनस-श-लु विहार को 1040 ई. में इन्होंने स्थापित किया था। 12. इस मठ में तिब्बत का सबसे महान विद्वान व-सतोन्-रिन छेन् अबु शिष्य हुआ था
13. कोन गर्यल- (1034 – 1108 ई.) स-क्य मठ के संस्थापक रहे।
14 दलाईमाना – 1933 ई. में फेम्बो पधारे थे।
15. लड़-थड-पा (ब्रज सिंह) लड़ थड नामक विहार का निर्माता
16. रोड्-स-तोन् शाक्य-गर्यल-म-छन – महान दार्शनिक थे।
17. छू-सिन्-शर – खच्चरों का मालिक था।
18. कोन्-चाग – मंगोल भिक्षुक था।
19. प्रशांत चंद्र चौधरी – (I. C. S) राहुल जी के लिए फोटोग्राफी के लिए कैमरा भेजा था।
20. टु-नी-छेन-पो – भोट भाषा के विद्वान थे
21. पुण्य वज्र – चीनी लामा
मेरी तिब्बत यात्रा में चित्रित स्थान:
* ल्हासा – यहाँ राहल जी 2 माह 11 दिन रहे थे।
* यहाँ विनयपिटक का अनुवाद राहुल जी द्वारा हुआ।
* तबचीका – ल्हासा के बाद यह पहला पड़ाव स्थान था।
* जोतूका (गो-ला) – यहाँ की पहाड़ी पर चढ़कर पीछे मुड़कर देखने पर ल्हासा नगरी दिखाई देती है। इसे हित का देश कहा जाता था।
* चू-ला खंड् गो (बिहार) – यहाँ बुद्ध की विशाल मूर्ति थी। जिसके सामने रोड् सुतोन की प्रतिमा थी।
* ग्य-ल्ह खंड् – (भारतीय देवालय)।
* रेडिड् विहार – इसे दीपशंकर के शिष्य डव्रोम-स-तोन-पा (1003 – 1065 ई.) में बनवाया था।
प्रमुख तथ्य:
* राहुल जी घुमक्कडी प्रवृति के थे।
* निम्न काव्य-पंक्तियों से उन्होंने प्रेरणा लेकर कहा है –
“सैर कर दुनिया की गाफिल, जिंदगानी फिर कहाँ, जिंदगानी गर रही तो, नौजवानी फिर कहाँ?”
* राहुलजी का कहना था कि – ‘उन्होंने ज्ञान को सफर में नाव की तरह लिया है। बोझ की तरह नहीं।’
* उनकी घुमक्कडी प्रवृत्ति ने कहा – “घुमक्कडों! संसार तुम्हारे स्वागत के लिए बेकरार है।”
* ‘भाषा और साहित्य’ के संबंध में राहुलजी कहते हैं – “भाषा और साहित्य, धारा के रूप में चलता है, फर्क इतना ही है कि नदी को हम देश की पृष्ठभूमि में देखते हैं जबकि भाषा देश और भूमि दोनों की पृष्ठभूमि को लेकर आगे बढती है।”