रचना – ‘प्रेमचंद घर में ‘1944 ई, (जीवनी विधा)
रचनाकार – शिवरानी देवी
* शिवरानी देवी ने ‘प्रेमचंद घर में’ नाम से प्रेमचंद की जीवनी लिखी। उन्होंने उनके व्यक्तित्व के उस हिस्से को उजागर किया जिससे लोग अनभिज्ञ थे।
* प्रेमचंद ने अपनी पत्नी को हमेशा प्रेरित किया कि वे लिखें और सामाजिक कार्यं में भी बढ़ा-चढ़कर हिस्सा लें। अपनी पत्नी के प्रति प्रेमचंद के मन में अगाध प्रेम और सम्मान था।
* जीवन के अंतिम क्षणों में भी उन्होंने साहित्य रचना का साथ नहीं छोड़ा था। पत्नी के प्रति उनका लागाव और भी बढ़ गया था।
* प्रेमचंद की जीवनी उनके बेटे (अमृतराय) ने ‘कलम का सिपाही’ नाम से’ और मदन गोपाल ने ‘कलम के मजदूर’ नाम से लिखी, जिसमे लेखक की अपनी कल्पनाएँ भी शामिल की होगी।
* शिवरानी देवी द्वारा लिखी गई इस जीवनी का हर घटना खरा सोना की तरह है, क्योंकि शिवरानी देवी ने उनके साथ उन पलों को खुद जिया और महसूस किया है।
* प्रेमचंद के व्यक्तित्व की साफगोई को जिस तरह से उनकी पत्नी ने बयान किया है वह हिंदी साहित्य प्रेमियों के लिए पठनीय है।
* शिवरानी देवी ने अनके साथ बिताए सुनहरे पलों को बड़े ही सहजता के साथ लिखा है उसे शायद ही अन्य साहित्यकार लिख पाता। उनके लेखन में भावनाओं का कहीं अभाव नहीं है और ना ही उनके प्रवाह में कोई कमी नजर आती है।
* शिवरानी देवी को इस बात का मलाल रहा कि वे अपने पति की महानता को मरणोपरांत समझ पाई।
* प्रेमचंद के पिता का नाम अजायबराय और माता का नाम आनंदी देवी था।
* प्रेमचंद को उनके पिता मुंशी धनपत राय तथा चाचा ने मुंशी नबावराय नाम दिया था।
* इन्होंने मर्यादा, हंस तथा जागरण पत्रिकाओं का संपादन किया
* इनका पहला उपन्यास ‘प्रेम’ को माना जाता है। किन्तु इस पुस्तक के अनुसार
* इनका पहला उपन्यास ‘कृष्णा’ है जो 1905 ई. में ‘प्रयाग’ से छपा था।
* दूसरा उपन्यास ‘प्रेमा’ को माना जाता है।
* प्रेमचंद के दो बेटे श्रीपतराय (धुन्न) तथा अमृतराय (बन्नू) थे।
* प्रेमचंद 1935 ई. में प्रगतिशील लेखक संघ के सभापति बने। उनहोंने महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित होकर सेवा को मूल धर्म बनाया।
* शिवरानी देवी ने प्रेमचंद के संपूर्ण जीवन को इस पुस्तक में 88 भागों में दिखया है।
* पुस्तक की श्रद्धांजलि बनारसीदास चतुर्वेदी तथा आमुख शिवरानी देवी ने लिखा है।
* हिंदी साहित्य में प्रेमचंद की एक जीवनी ‘प्रेमचंद घर में’ (1944 ई.) है।
* दूसरी जीवनी उनके पुत्र अमृतराय ने ‘कलम का सिपाही’ (1962 ई.) लिखा था।
* तीसरी जीवनी ‘कलम का मजदूर’ (1954 ई.) में श्री मदन गोपाल (1919 -2009 ई.) ने लिखी है। मूल पुस्तक अंग्रेजी में लिखी गई थी बाद में श्री मदन गोपाल ने हिंदी में अनुबाद किया।
* प्रेमचंद की मृत्यु के बाद शिवरानी देवी का वह विलाप ह्रदय को छू लेता है कि जब-तक जो चीज हमारे पास रहती है तबतक हमें उसकी कद्र नहीं होती लेकिन वो हमसे ओझल हो जाए तो हमारा मन पछताता रहता है फिर हमारे पास दुःखी होने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता है।