प्रथम विश्वयुद्ध के समय रूस में रूपवाद का आरंभ हुआ। इसलिए इसे रुसी रुपवाद भी कहा जाता है।
रुपवाद के मुख्य दो केंद्र थे-
पहला– मॉस्को – मॉस्को में इसकी शुरुआत 1915 ई. में हुई
दूसरा- सेंट पीटर्सबर्ग – सेंट पीटर्सबर्ग में इसकी शुरुआत 1916 ई. से मानी जाती है। सोवियत संघ के गठन के पश्चात् रूपवादियों का केन्द्र चेकोस्लोवाकिया की राजधानी ‘प्राग’ बन गया था। वहाँ पर रूपवादियों ने मिलकर प्राग लिंग्विस्टिक सर्किल संगठन का गठन किया।
इस संगठन में पाँच रुपवादी लेखक शामिल हुए-
बोरिस ईकेनबाम, विक्टर श्क्लोवस्की, रोमन जैकोब्सन, रेनेवेलक, जॉन मुकारोवस्की रूपवादी लेखक हैं।
आगे चलकर रूपवाद दो धाराओं में विभक्त हो गए –
1. रूसी रूपवाद और
2. आँग्ल अमेरिकी नई समीक्षा
> दूसरे विश्व युद्ध के अंत से लेकर 1970 ई. तक रूपवाद अमेरिकी साहित्यिक अध्ययन का एक प्रभावी केंद्र बना रहा था।
> विशेष रूप से ‘रेने वेलेक’ और ‘ऑस्टिन वारेन’ के साहित्य सिद्धांतों (1948, 1955, 1962) में दिखाई पड़ता है।
> 1970 ई. के दशक के अंत में रूपवाद नए साहित्य सिद्धांतों द्वारा विस्थापित कर दिया गया।
> इन नए सिद्धांतों में कुछ राजनीतिक लक्ष्य वाले थे जबकि कुछ में यह संकल्पना निहित थी कि साहित्यिक रचनाओं को इसकी उत्पत्ति और उपयोग से पृथक करना शायद ही संभव है। बाद में रूपवाद को समाज निरपेक्ष होने जैसे नकारात्मक संदर्भ में विरोधियों के लिए प्रयुक्त किया जाने लगा।
> कुछ अकादमिक साहित्यिक आलोचना के नए प्रचलन इस बात की ओर संकेत करते हैं कि रूपवाद की पुनर्वापसी हो सकती है।
रूपवादी साहित्यिक आलोचना आगे चलकर दो धाराओं में विकसित हुई-
1. रूसी रूपवाद
2. आंग्ल अमेरिकी नई समीक्षा में।
प्राथमिक रूप से 1916 ई. ई. में बोरिस ईकेन बॉम, विक्टर श्कलोवस्की, यूरी तान्यनोव द्वारा सेंट पीटर्सबर्ग और पेट्रोग्राद में स्थापित काव्य भाषा अध्ययन समुदाय (OPOYAZ) के कार्यों को रूसी रूपवाद कहा जाता है।
> इसके अंतर्गत 1914 ई. में रोमन जैकोब्सन द्वारा स्थापित ‘द मॉस्को लिंग्विस्टिक सर्कल’ के कार्य भी शामिल किए जाते हैं।
> ‘फूकोवादी’ ब्लादिमीर पोप भी इस आंदोलन से जुड़े थे।
> ईकेन बॉम ने 1926 ई. में “रूपवादी पद्धति का सिद्धांत” (‘द थियोरी ऑफ द ‘फॉर्मल मेथड’) शीर्षक नाम से एक निबंध लिखा।
> यह रूपवादियों द्वारा प्रस्तावित की गई पद्धति का परिचय था।
> इसके अंतर्गत निम्नलिखित आधारभूत विचारों को शामिल किया गया–
> इसका लक्ष्य था “साहित्य का एक ऐसा विज्ञान जो स्वतंत्र और तथ्यपरक दोनों होगा”
जिसे कभी-कभी काव्यशास्त्र कहकर भी संबोधित किया जाता है। चूंकि साहित्य भाषा द्वारा निर्मित होता है इसलिए भाषाविज्ञान साहित्य के विज्ञान का आधारभूत तत्व होगा।
> साहित्य बाहरी स्थितियों से स्वायत्त होता है इस अर्थ में कि साहित्यिक भाषा सामान्य प्रयोगों की भाषा से विशिष्ट होती है, क्योंकि यह उस तरह पूर्णतः संप्रेषणात्मक नहीं होती है।
> साहित्य का एक अपना इतिहास है। रूपवादी संरचना में आविष्कार का इतिहास और यह बाहरी भौतिक पदार्थों के इतिहास से निर्धारित नहीं होता है। जैसा की मार्क्सवाद के कुछ क्रूर संस्करणों में बताया जाता है।
> साहित्यिक कृति जो कहती है, वह कहती है। इससे अलग नहीं जा सकता है। इसलिए रूप और वस्तु एक दूसरे के भाग होते हैं।
आइचनबॉम के अनुसार – स्कोलोवस्की इस समूह के सबसे अग्रणी आलोचक थे।
उन्होंने इससे संबंधित दो संकल्पनाएं दी हैं।
1. अपरिचितिकरण (डिफिमिलियराइजेशन)
2. कथानक का विशिष्टीकरण
रूसी रूपवादियों ने साहित्यिक आलोचना में सांस्कृतिक मूल्यों, सामाजिक प्रभावों और लेखक के जीवन की भूमिका को अस्वीकार किया। विक्टर श्क्लोवस्की के शुरुआती लेखन “कला जैसे कि एक उपकरण” ‘Iskusstvo kak priem , 1916 ई. के मुख्य तर्कों में इस सिद्धांत का स्पष्ट उल्लेख देखा जा सकता है।