वर्ड्सवर्थ का काव्य भाषा सिद्धांत

विलियन वर्ड्सवर्थ

      जन्म – 7 अप्रैल 1770 ई. में इंग्लैंड में हुआ था।

      निधन –  23 अप्रैल 1850 ई. को हुआ था।

      वर्ड्सवर्थ को कवि के रूप में विशेष ख्याति मिली। उन्हें ‘रोमानी काव्यायुग’ का प्रवर्तक कहा गया। लगभग 20 वर्ष कि अवस्था में ही उन्होंने साहित्य लिखना आरंभ कर दिया था।

      > वर्ड्सवर्थ का प्रथम काव्य संग्रह “एन इवनिंग वाक एण्ड डिस्क्रिप्टव स्कैचेज” 1793 ई. में प्रकाशित हुआ था

      > वर्ड्सवर्थ 1795 ई. में कॉलरिज के मित्र बने थे।

      > सन् 1798 ई. में उन्होंने कॉलरिज के साथ मिलकर ‘लिरिकल बैलेड्स’ नाम से कविताओं का  प्रथम संस्करण प्रकाशित करवाया।

      > ‘लिरिकल बैलेड्स’ को स्वच्छंदतावादी काव्यांदोलन का घोषणा पत्र माना जा सकता है।

      > ‘लिरिकल बैलेड्स’ के चार संस्करण प्रकाशित हुए। उनकी भूमिका को वर्ड्सवर्थ की आलोचना का मूल माना जाता है, जो निम्न है –            1798 ई. में एडवरटीजमेंट,  1800 1802 1815 – में प्रिफेस नाम से इसकी  भूमिका लिखी।

      > वर्ड्सवर्थ ने कविता को परिभाषित करते हुए लिखा है – “कविता प्रबल भावों का सहज उच्छलन है।”

वर्ड्सवर्थ ने काव्य भाषा के संदर्भ तीन मान्यताएँ दी है:

      > काव्य में ग्रामीणों की दैनिक बोलचाल की भाषा का प्रयोग होनी चाहिए।

      > काव्य और गद्य की भाषा में तात्विक भेद नहीं होना चाहिए।

      > प्राचीन कवियों का भावोद्बोध जितना सहज था, उनकी भाषा उतनी ही सरल थी।  भाषा में कृत्रिमता और आडंबर कवियों की देन है।

      > वर्ड्सवर्थ का यह मानना था कि काव्य और गद्य में अंतर केवल छंद के कारण होता है।    

      > कवि के रूप में वर्ड्सवर्थ को व्यापक प्रसिद्धि मिली इसके उन्हें 1843 ई. में इंग्लैंड  के ‘पोएट लारिएट’ पद से सम्मानित किया गया।  

      > इनका अंतिम काव्य संग्रह ‘द प्रियूल्ड’ था।

Advertisement

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.