कॉलरिज – समय: (1772 – 1834 ई.)
जन्म – (1772 ई.), लंदन,
पूरानाम – सैमुअल टेलर कॉलरिज, ये आत्मदार्शनिक थे।
निधन – 1834 ई.
वर्ड्सवर्थ कॉलरिज के प्रिय मित्र थे। वर्ड्सवर्थ के साथ मिलकर कॉलरिज ने ‘रोमांटिसिज्म’ का प्रवर्तन किया।
कॉलरिज की प्रमुख रचनाएँ: (कॉलरिज का सिद्धांत ‘जैववादी’ सिद्धांत पर आधारित है।)
पोयम्स (1796 ई.)
बायोग्रफिया लिट्रेरिया (1817 ई. कल्पना का सिद्धांत इसी रचना में है)
द फ्रेंड (1817 ई.)
एड्स टु रिफ्लेक्सन (1825 ई.)
चर्च एण्ड स्टेट (1830 ई.)
लैक्चर्स ऑन शेक्सपियर (1832 ई.)
कॉलरिज की कल्पना की अवधारणा:
कल्पना की व्याख्या करते हुए कॉलरिज ने लिखा है कि – “स्पष्ट रुप से संसार में दो शक्तियाँ कार्य करती हैं, जो एक दूसरे के संबंध में क्रियाशील और निष्क्रिय होती हैं और कार्य बिना किसी मध्यस्थ शक्ति के संभव नहीं है जो एक साथ सक्रिय भी है और निष्क्रिय भी है” दर्शन में इस ‘मध्यस्थ’ शक्ति को कल्पना की संज्ञा दी गई है।
कल्पना ईश्वरीय शक्ति है, जिसका प्रधान गुण सृजन है।
कल्पना सृजन के साथ-साथ विरोधी तत्त्वों में समन्वय भी करती है।
कल्पना ह्रदय और बुद्धि तथा अंतर जगत एवं बाह्य जगत में भी समन्वय करती है।
श्रेष्ठ काव्य के लिए ‘कल्पना’ परम आवश्यक है।
कल्पना के द्वारा ही काव्य ह्रदयग्राही, मर्मस्पर्शी एवं सजीव बनता है।
कल्पना के भेद-
कॉलरिज के कल्पना के निम्नलिखित दो भेद माने है:
मुख्य / प्राथमिक कल्पना (Primary Imaginaton) –
प्राथमिक कल्पना संपूर्ण मानवीय ज्ञान का मुख्य होने के कारण वस्तुओं का प्राथमिक ज्ञान कराती है।मुख्य कल्पना ज्ञान की जीवंत शक्ति और प्रमुख माध्यम होती है।
गौण कल्पना – (Secondary Imaginaton) गौण कल्पना विशिष्ट लोगों में पायी जाती है। गौण कल्पना मुख्य कल्पना की छाया मात्र है। यह कल्पना को सुंदर बनाने के लिए सहयोग करती है।
मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में अंतर:
> मुख्य कल्पना के अस्तित्व पर ही गौण कल्पना आश्रित है।
> मुख्य कल्पना अचेतन एवं अनैच्छिक है जबकि गौण कल्पना चेतन एवं ऐच्छिक है।
> मुख्य कल्पना केवल निर्माण या संगठन करती है जबकि गौण कल्पना विनाश एवं निर्माण दोनों करती है।
> मुख्य कल्पना का संबंध भौतिक जगत से है जबकि गौण कल्पना का संबंध भौतिक जगत के साथ-साथ अध्यात्मिक जगत से भी है।
> मुख्य कल्पना जनसामान्य के मष्तिष्क में भी होती है, जबकि गौण काल्पन दार्शनिक और कलाकार का विषय है।
> कॉलरिज ने गौण कल्पना को श्रेष्ठ माना है, जबकि वर्ड्सवर्थ मुख्य कल्पना को श्रेष्ठ मानते हैं।
> कॉलरिज कल्पना को आत्मा की शक्ति मानते हैं कल्पना का कार्य महत्वपूर्ण है।
फैंटसी –
फैंटसी का अर्थ- फैंटसी ‘यूनानी’ भाषा के ‘फैंटेसिया’ से बना है, जिसका अर्थ होता है तृष्णा, दिवा स्वप्न, कल्पना का उद्वेग आदि।
हरडर के अनुसार- “मनुष्य की वह क्षमता जो रचना करने के लिए सृजन प्रक्रिया का मार्ग प्रसस्त करती है, वह फैंटसी कहलाती है।”
मानविकी कोश के अनुसार – ” फैंटसी स्वप्न चित्र मूलक साहित्य है, जिसमे असंभाव्य संभावनों को प्राथमिकता दी जाती है।”
हडसन के अनुसार – “मनुष्य की वह क्षमता जो संभाव्य संसार की सर्जना करती है वह फैंटसी कहलाती है।”
हिंदी में फैंटसी का सबसे अधिक प्रयोग ‘मुक्तिबोध’ ने किया है।
मुक्तिबोध के अनुसार – “फैंटसी मन की निगूढ़ वृत्तियों का अनुभूत, जीवन की समस्याओं का और इच्छित जीवन स्थितियों का प्रक्षेप होता है।”
मुक्तिबोध के कथन से तीन बातों को समझा जा सकता है-
निगूढ़ तत्त्व, अनुभूत जीवन-समस्याएँ और इच्छित जीवन स्थिति।
मुक्तिबोध ने ‘कामायनी’ को भी फैंटसी माना है।
डॉ बच्चन सिंह के अनुसार – “कामायनी में बिंबावलियाँ विश्रृंखलितऔर विघटित नहीं है, ‘लज्जा सर्ग’ के सभी बिंब अच्छी तरह समायोजित और श्रृंखलाबद्ध है”
फैंटसी अनुभव की ‘कन्या’ है तथा कविता फैंटसी की ‘पुत्री’ है।
फैंटसी की विशेषताएँ:
> फैंटसी बेतरतीब होती है।
> फैंटसी के लिया द्वंद्व अति आवश्यक है।
> फैंटसी काल्पना पर आधारित होती है।
> फैंटसी मन की द्वंद्वों को चित्रित करने की एक साहित्यिक तकनीक है।
> फैंटसी अवचेतन में घटित होने वाली घटनाओं का बिंब है।
> फैंटसी दिवा स्वप्नात्मक मानसिक बिंब है।