अरस्तू: विरेचन (Catharsis) सिद्धांत

विरेचन का अर्थ: यूनानी भाषा के ‘कथार्सिस’ शब्द के लिए संस्कृत एवं हिंदी में रेचन  / विरेशन शब्द का प्रयोग किया जाता है।

      विरेचन का शाब्दिक अर्थ है- ‘शुद्धिकरण’ अथार्त विचारों का शुद्धिकरण या निष्कासन करना। ‘विरेचन’ शब्द चिकित्साशास्त्र का शब्द है, जिसका अरस्तू ने काव्यशास्त्र में लाक्षणिक प्रयोग किया है।

      ‘विरेचन’ भारतीय चिकित्सा शास्त्र (आर्युवेद) का पारिभाषिक शब्द है, जिसका अर्थ है-रेचक औषधि के द्वारा शारीरिक विकारों अथार्त उदर के विकारों की शुद्धि करना। आर्युवेद के अनुसार यह त्वचारोगों के उपचार के लिए सर्वोत्तम चिकित्सा है।     

विरेचन सिद्धांत के निम्नलिखित तीन आधार हैं –

      1. प्लेटो के द्वारा काव्य पर लगाए गए आक्षेप

      प्लेटो का कहना था – “काव्य मनुष्य की वासना का पोषण कर उसे विकार ग्रस्त करता है।”

अरस्तू ने उत्तर दिया- “काव्य के अनुशीलन और प्रेक्षण से अतिरिक्त मनोविकार विरेचित होकर शमित और परिस्कृत हो जाते है।”

2. चिकित्सा शास्त्र

3. त्रासदी सिद्धांत

टिपण्णी: प्लेटो के द्वारा लगाए गए आक्षेपों का निराकरण करने के लिए अरस्तू ने विरेचन सिद्धांत का प्रतिपादन किया है।

अरस्तू ने विभन्न सन्दर्भों के आधार पर ‘विरेचन’ के निम्न अर्थ किये;

धर्मपरक अर्थ, नितिपरक अर्थ, कलापरक अर्थ, चिकित्सापरक अर्थ

धर्मपरक अर्थ- प्रो. गिलबर्ट मर्रे ने धार्मिक अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है की-” प्राचीन यूनान में ‘दी योन्युसथ’ नामक देवता से संबंधित विचारों के शुद्धिकरण के लिए एक उत्सव मनाया जाता है। यह उत्सव अपने आप में एक विशेष शुद्धि का प्रतीक था, क्योंकि इस अवसर पर देवता से प्रार्थना की जाति थी कि वह अपने उपासकों को बीते हुए वर्ष के सभी पापों और कुकर्मों से मुक्त कर आने वाले वर्षों में पापमुक्त जीवन बिताने की प्रेरणा दे। संभवतः अरस्तू को  अपने विरेचन सिद्धांत की प्रेरणा इसी प्रथा से मिली होगी।

नितिपरक अर्थ­- कारनेई, रेसिन तथा बारनेज ने अरस्तू के विरेचन सिद्धांत की नीतिपरक व्याख्या की है- इन विद्वानों के अनुसार – “मनोविकारों की उत्तेजना द्वारा विभिन्न अंतर अंतर्वृतियों का समन्वय था मन की शांति और परिष्कृति ही विरेचन है।”

कलापरक अर्थ – प्रो. बूचर वे ने अरस्तू के विरेचन सिद्धांत की कलापरक व्याख्या करते हुए कहा है- “वास्तविक जीवन में करुणा और भय के भाव कष्टप्रद तत्वों से युक्त रहते है दुखांतकीय उत्तेजना में दूषित अंश निकल जाने से वे अनंदप्रद हो जाते है।

चिकत्सापरक अर्थ – “वर्जीज, डेजेज आदि विद्वानों ने विरेचन के चिकित्सा शास्त्रीय अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा है कि जिस प्रकार ‘रेचक’ द्वारा उदर की शुद्धि होती है उसी प्रकार त्रासदी द्वारा मन की शुद्धि होती है।

अरस्तू के अनुसार विरेचन की प्रक्रिया:

त्रासदी के अनुशीलन से दूषित विकार ठीक उसी तरह शामिल हो जाते है जैसे उदर में मल आदि विकारों के उत्पन्न होने पर ‘रेचकों’ (विभिन्न कड़वी औषधियों) द्वारा उदर की शुद्धिकरण किया जात है। त्रासदी से मनुष्य की दुष्प्रवृत्तियों का समापन हो जाता है।

विरेचन सिद्धांत की विशेषताएँ:

विरेचन के लिए भय और करुणा के भावों का सम्यक नियोजन और प्रदर्शन आवश्यक है।

विरेचन द्वारा द्रवण (कोमल भावनाओं को जाग्रत करना) त्रासदी द्वारा ही हो सकता है।

घटनाओं तथा नायक के चयन के संदर्भ में सावधानी परम आवश्यक है।

विरेचन में भावानुभूति आवश्यक है।

विरेचन की समानता क्रोचे के ‘अभिव्यंजनावाद’ और अभिनवगुप्त के ‘अभिव्यक्तिवाद’ से बताई जा सकती है।

विशेष तथ्य – विरेचन सिद्धांत का वस्तृत वर्णन त्रासदी के संदर्भ में ‘पेरिपोइतिकेश’  (पोयटिक्स) के छठे अध्याय में है।  

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